आमतौर पर वसंत पंचमी को मां सरस्वती के पूजा के लिए जाना जाता है। लेकिन इस दिन भगवान विष्णु की भी पूजा का खासा महत्व है। लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि वसंत पंचमी को काम के देवता कामदेव की भी पूजा की जाती है। कहते हैं कि वसंत और कामदेव गहरे मित्र हैं इसलिए ही वसंत पंचमी के बाद मौसम इतना सुहावना हो जाता है। और यही वजह है कि वसंत पंचमी को कामदेव और रति की खास पूजा की जाती है। भारत ही नहीं बल्कि वसंत पंचमी की तर्ज पर बाकी देशों में भी प्रेम से जुड़े अलग-अलग त्योहार मनाए जाते हैं। वेलेंटाइन भी इसी कड़ी में शामिल माना जा सकता है। जिस तरह पश्चिमी देशों में क्यूपिड और यूनानी देशों में इरोस को प्रेम का प्रतीक माना जाता है, उसी तरह हिन्दू धर्मग्रंथों में कामदेव को प्रेम और आकर्षण का देवता कहा जाता है। मान्यता है कि वसंत ऋतु को कामदेव मन को प्रेम से भर देते हैं।
धर्मग्रंथों में कामदेव को सुनहरे पंखों से युक्त एक सुंदर नवयुवक की तरह प्रदर्शित किया गया है जिनके हाथ में धनुष और बाण हैं। ये तोते के रथ पर मकर (एक प्रकार की मछली) के चिह्न से अंकित लाल ध्वजा लगाकर विचरण करते हैं। कामदेव का विवाह रति से हुआ था, जो प्रेम और आकर्षण की देवी मानी जाती है। कुछ कथाओं में यह भी उल्लिखित है कि कामदेव स्वयं ब्रह्माजी के पुत्र हैं और इनका संबंध भगवान शिव से भी है। वहीं कुछ दंत कथाों के मुताबिक कामदेव भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी के पुत्र हैं।
कामदेव का धनुष मिठास से भरे गन्ने का बना होता है जिसमें मधुमक्खियों के शहद की रस्सी लगी है। उनके धनुष का बाण अशोक के पेड़ के महकते फूलों के अलावा सफेद, नीले कमल, चमेली और आम के पेड़ पर लगने वाले फूलों से बने होते हैं।
कामदेव के पास मुख्यत: 5 प्रकार के बाण हैं: मारण, स्तम्भन, जृम्भन, 4. शोषण, 5. उम्मादन (मन्मन्थ)।
इस तरह की जाती है कामदेव की पूजा
कामदेव और रति देवी की पूजा-अर्चना से पति-पत्नी के बीच कभी कोई मतभेद नहीं होता और दोनों के बीच उत्तम प्रणय संबंध पैदा होते हैं जो कि एक खुशहाल शादीशुदा जीवन के लिए अति आवश्यक भी हैं। वसंत पंचमी को उत्तम वेदी पर उत्तम वस्त्र बिछाएं और अक्षत से उस पर कमलदल बनाएं। उसके अग्र भाग में गणेश जी और पिछले भाग में कामदेव और रति को स्थापित करें। यदि कामदेव की प्रतिमा उपलब्ध न हो तो भगवान श्रीकृष्ण की भी प्रतिमा स्थापित की जा सकती है। दरअसल श्रीमद्भगवत गीता में भगवान श्रीकृष्ण खुद कहते हैं कि देवताओं में वे कामदेव हैं। इसके अलावा ये भी माना जाता है कि जब भगवान शिव ने रुष्ट होकर कामदेव को भस्म कर दिया था, तब उन्हें वरदान दिया था कि वे भगवान श्रीकृष्ण के पुत्र प्रद्युम्न के रूप में जन्म लेंगे।
उसके बाद गणेश जी का पूजन करें उसके बाद पीछे वाले पुंज में रति और कामदेव जी की पूजा करें। पहले उस पर अबीर और पुष्प चढ़ाएं। फिर कामदेव के मंत्रों का जाप कर विधिवत फल-फूल चढ़ाकर बेदी को वसंत सदृश्य बनाएं।
कामदेव मंत्र - ओम कामदेवाय विद्महे, रति प्रियायै धीमहि, तन्नो अनंग प्रचोदयात्।'
आप चाहें तो कामदेव के शाबर मंत्र का जप भी कर सकते हैं-
'ऊँ नमो भगवते कामदेवाय यस्य यस्य दृश्यो भवामि यस्य यस्य मम मुखं पश्यति तं तं मोहयतु स्वाहा।'
माना जाता है कि इस मंत्र के जप से व्यक्ति में आकर्षण शक्ति बढ़ जाती है और साथी को मनाने में सफल होता है।
ॐ एं ह्रीं क्लीं श्रीं
क्लीं— इसे काम बीज कहते हैं— इसका तात्पर्य हुआ—कामदेव रूप श्रीकृष्ण मुझे सुख-सौभाग्य दें। क्लीं एकाक्षर बीज मंत्र है , इसे काम बीज कहा जाता है। लेकिन इसे अकेले नहीं जपा जाता है। इसके आगे ॐ ह्रीं क्लीं श्रीं लगाकर या अन्य रूप में जपा जाता है। इसके देवता काली, श्री कृष्ण, एवं काम देव है। इन तीनो के मिश्रण से जप करने में जल्दी लाभ होता है । इस मन्त्र को अंत में फट स्वाहा लगाकर जपा जाता है। यदि किसी देवता का ध्यान लगाकर मंत्र जपना हो , तो उस देवता का नाम जैसे कृष्णाय , कालिकाय, कामदेवाय आदि। यह मंत्र अनेक देवी देवताओं के नाम से जपा जाता है। क्योंकि इसमें माया (सारे शरीर कि ऊर्जा / सहस्त्रार केंद्र), अग्नि, लक्ष्मी यानी श्री , काम और अनुस्वार के रूप में इन सब को परमात्मा का परमसार प्राप्त होता रहता है। इसे तंत्र में शिवसार कहा जाता है।
क्लीं’ बीजमन्त्र का प्रयोग लक्ष्मी प्राप्ति के लिए भी हो सकता है। लक्ष्मी के लिए ‘क्लीं’ की उपासना करनी हो तो आकृति के भीतर लाल के बदले पीला रंग भरना चाहिए और ध्यान के समय “ॐ क्लीं नमः” का जप करते रहना चाहिए। इस अभ्यास के पूरा होने पर लक्ष्मी की प्राप्ति में वृद्धि होती है।
कामदेव गायत्री मंत्र:-
ॐ क्लीं कामदेवाय विघ्नहे पुष्प बाणाये धीमहि तन्नो अनंग प्रचोदयात
इस मंत्र की विधि अत्यंत सरल एवं सुविधाजनक है इसके लिए आपको सुबह उठकर स्नान कर स्वच्छ वस्त्र धारण कर सफेद आसन लगाकर भगवान कृष्ण की प्रतिमा के समक्ष बैठ जाना चाहिए तथा प्रतिदिन 108 बार मंत्र जाप निरंतर 6 मास तक करना चाहिए । इसका आपको चमत्कारी प्रभाव देखने को मिलेगा। ये मंत्र पारस्परिक प्रेम में वृद्धि करता है एवं दांपत्य जीवन में प्रेम का संचार कर उसे और मजबूत बनाता है।
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