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News24
भोपाल: मध्यप्रदेश में OBC वर्ग को लुभाने की होड़ अब काफी आगे निकल चुकी है। बीजेपी और कांग्रेस दोनों किसी से कम पड़ते नज़र नहीं आना चाहते, यही वजह है कि मध्यप्रदेश में होड़ लगी है। पंचायत चुनाव में 27 फीसदी OBC reservation पर सुप्रीम कोर्ट की रोक के बाद, बीजेपी नहीं चाहती कि इसका ठीकरा उस के सिर फूटे। कांग्रेस ने भी वक्त की नजाकत को समझते हुए अपनी पुरानी गलती को सुधारने का मौका बना लिया। दोनों पार्टियों ने लगभग एक ही वक्त पर ऐलान कर दिया कि वो निकाय चुनाव में 27 फीसदी टिकट OBC वर्ग के उम्मीदवारों को देंगे।
बीजेपी ने एक कदम आगे बढ़कर कहा कि हम 27 फीसदी से ज्यादा टिकट इस वर्ग को देंगे तो कांग्रेस बोली कि 27 फीसदी की सीमा हमारी भी न्यूनतम है। कम से कम इतना तो देंगे या इससे ज्यादा भी दे सकते हैं। मतलब साफ है कि दोनों दलों ने OBC को रिझाने के लिए बड़ा दांव चल दिया है। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये है कि क्या अब देश में राजनीतिक पार्टियां जातिगत आधार पर आरक्षण देने का मन बना चुकी हैं। आने वाले दिनों में क्या BJP - CONGRESS में हर जाति के अनुपात के हिसाब से टिकटों का बंटवारा होगा।
अब सवाल ये है कि क्या ये कवायद सचमुच होने जा रही है या ये फार्मूला सिर्फ एमपी के निकाय चुनाव तक ही सीमित होगा। मामले के दो पहलू हैं, पहला ये कि पंचायत चुनाव पार्टी के सिम्बल पर नहीं होता तो पंचायत चुनावों में टिकट देने का सवाल नहीं उठता। लेकिन ये भी जगजाहिर है कि पंचायत चुनाव में किसी उम्मीदवार को बाहर से समर्थन देने का मतलब उस पार्टी का कैंडिडेट होना ही माना जाता है। निकाय चुनाव में घोषणा के अनुरूप टिकट दिए भी जा सकते हैं, लेकिन विधानसभा में भी क्या ये घोषित फार्मूला होगा?
इस तरह के ऐलान की क्रोनोलॉजी समझें तो सबसे पहले बिहार के सीएम नीतीश कुमार ने पंचायत चुनावों में महिलाओं को 50 फीसदी टिकट देने का ऐलान किया लेकिन विधानसभा चुनाव में इस फार्मूले से दूरी बना ली। वहीं उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में प्रभारी प्रियंका गांधी ने 40 फीसदी युवाओं को टिकट देने का वादा किया और निभाया भी, लेकिन इस दौरान पंजाब और उत्तराखंड जैसे राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों में इस फैसले को लागू नहीं किया। इन दो उदाहरणों से साफ है कि पार्टियों के लिए इस तरह के ऐलान तात्कालिक नफे नुकसान के पैमाने पर तय होते हैं। वक्त के साथ इनका बदलना आम बात है।
अब बात करते हैं इस मामले के कानूनी पहलू की। कानूनविद् मानते हैं कि राजनीतिक पार्टियां के पास ये आजादी है कि वो अपने टिकटों को किसी भी वर्ग के बंटवारे का हिसाब तय कर सकते हैं। न्यूज 24 ने जब सुप्रीम कोर्ट के वरिष्ठ अधिवक्ता और कानूनविद् संजय चड्ढा से इस बारे में बात की तो उन्होंने एक महत्वपूर्ण जानकारी साझा की। 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने जाति, क्षेत्र या धर्म के आधार पर टिकटों के बंटवारे को गैर कानूनी करार दिया है। कोर्ट ने इस तरह की किसी भी कोशिश को जनप्रतिनिधि अधिनियम का उल्लंघन माना है। हालांकि संजय ये भी बताते हैं कि इस तरह के मामलों में वोट बैंक के नुकसान के डर के चलते कोई दल इस कोर्ट में नहीं ले जाना चाहता।
साफ है कि सरकारी क्षेत्र के बाद अब राजनीतिक दलों के अंदर टिकट बंटवारे में जातिगत आरक्षण की जो बयार एमपी से चली है, वो पूरे देश की सियासी हवा को गर्माएगी। आरक्षण के नाम पर सियासत करने वालों को लिए फिलहाल मुफीद भी यही जान पड़ता है कि वो इस फार्मूले को जल्द से जल्द अपना कर सियासी नफा पुख्ता कर लें।
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