न्यूज 24, नई दिल्ली (10 अगस्त): देशभर में जन्माष्टमी (Janmashtami) की तैयारी जोरों पर है। हालांकि इस बार जन्माष्टमी धूमधाम से नहीं मनायी जाएगी। कोरोना संकट का असर जन्माष्टमी पर भी देखने को मिलेगा। दरअसल कोरोना वायरस संकट के कारण कृष्ण जन्माष्टमी का पर्व इस साल फीका पड़ जाएगा। श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर 10 अगस्त की दोपहर से 13 अगस्त दोपहर बाद तक सभी श्रद्धालुओं के प्रवेश पर प्रतिबंधित रहेगा, लेकिन सभी मंदिरों में भगवान के जन्म एवं नन्दोत्सव कार्यक्रम विधिवत सम्पन्न किए जाएंगे। इस पावन पर्व पर देश-विदेश से आने वाले उनके असंख्य श्रद्धालु इस बार 12 अगस्त को श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के जश्न में शामिल नहीं हो सकेंगे, लेकिन जन्मोत्सव का सीधा प्रसारण दिखाए जाने की व्यवस्था की जाएगी।
दरअसल मथुरा में श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के मौके पर कान्हा की मोहक छवि देखने के लिए देश ही नहीं विदेशों से भी कृष्ण भक्त पहुंचते हैं। श्रीकृष्ण जन्मोत्सव पर पूरी मथुरा और वहां पहुंचे श्रद्धालु कृष्णमय हो जाते है। मंदिरों को खास तौर पर सजाया जाता है। मथुरा में जन्माष्टमी के दिन महिलाएं और पुरुष बारह बजे तक व्रत रखते हैं। इस दिन मंदिरों में झांकियां सजाई जाती है और भगवान कृष्ण को झूला झुलाया जाता है और रासलीला का आयोजन होता है। द्वारकाधीश, बिहारीजी एवं अन्य सभी मन्दिरों में इसका भव्य आयोजन होता हैं, जिनमें भारी भीड़ होती है। लेकिन कोरोना संकट के कारण इस साल लोगों को ऐसा मोहक दृष्य देखने को नहीं मिलेगा। हालांकि कई जगहों पर श्रीकृष्ण जन्मोत्सव के मौके पर लाइव प्रसारण की व्यवस्था की जा रही है।
जन्माष्टमी व्रत और पूजा विधि
- जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण की पूजा और भक्ति के लिए उपवास करें।
- इसके बाद अपने घर की विशेष सजावट करें।
- घर के अंदर सुन्दर पालने में बालरूप श्रीकृष्ण की मूर्ति स्थापित करें।
- रात्रि बारह बजे श्रीकृष्ण की पूजन के पश्चात प्रसाद का वितरण करें।
- जन्माष्टमी पर भगवान कृष्ण को दक्षिणावर्ती शंख से अभिषेक कर पंचामृत अर्पित करना चाहिए।
- माखन मिश्री का भोग लगाएं।
- विद्वानों, माता-पिता और गुरुजनों के चरण स्पर्श कर उनसे आशीर्वाद लें।
- इसके साथ ही यह ध्यान रखें कि परिवार में कोई भी किसी भी प्रकार के नशीले पदार्थों का सेवन बिल्कुल न करें।
इस बार जन्माष्टमी 11 और 12 अगस्त को मनाई जाएगी। इस साल कुछ जगहों पर 11 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी मनाई जाएगी तो कुछ हिस्सों में जन्माष्टमी का त्योहार 12 अगस्त को मनाया जाएगा। मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद यानी कि भादो माह की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को हुआ था, जो इस साल 11 अगस्त को है। वहीं कुछ जगहों पर ये भी मान्यता है कि भगवान श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद यानी कि भादो महीने की कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में हुआ था। इस वजह से यदि अष्टमी तिथि के हिसाब से देखा जाए तो 11 अगस्त को जनमाष्टमी होनी चाहिए, लेकिन रोहिणी नक्षत्र के हिसाब से देखें तो फिर कृष्ण जन्माष्टमी 12 अगस्त को होनी चाहिए। ऐसे में कुछ लोग जहां 11 अगस्त को तो वहीं जगहों पर 12 अगस्त को कृष्ण जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जाएगा। हालांकि, मथुरा, वृंदावन और द्वारका में 12 अगस्त को जन्माष्टमी मनाई जाएगी। जन्माष्टमी पर राहुकाल दोपहर 12 बजकर 27 मिनट से लेकर 02 बजकर 06 मिनट तक रहेगा। इस बार जन्माष्टमी पर कृतिका नक्षत्र रहेगा, उसके बाद रोहिणी नक्षत्र रहेगा, जो 13 अगस्त तक रहेगा। पूजा का शुभ समय रात 12 बजकर 5 मिनट से लेकर 12 बजकर 47 मिनट तक है। जन्माष्टमी के पूरे दिन सर्वार्थ सिद्धि योग है।
दरअसल इस साल अष्टमी तिथि दो दिन चलेगी। इसलिए लोग तिथि को समझ नहीं पा रहे हैं। हिंदू धर्म में सभी तीज-त्योहार तिथि के अनुसार मनाए जाते हैं। तिथि को गलत समझने पर व्रत और पूजन करने में भी दिक्कत आ सकती है। इस साल जन्माष्टमी 12 अगस्त को मनाई जाएगी। जबकि 11 अगस्त को ही अष्टमी तिथि लग जाएगी। इसके पीछे एक कारण यह है कि हिंदू धर्म में पूरा दिन वो तिथि मानी जाती है, जिस तिथि में सूर्योदय होता है यानी अगर सूर्योदय 5 बजे हुआ और उस समय द्वितीया तिथि चल रही है, तो पूरा दिन द्वितीया तिथि ही मानी जाएगी। चाहे 7 बजे से तृतीया तिथि क्यों न लग जाए। लेकिन वह पूरा दिन द्वितीया तिथि ही मानी जाएगी। 11 अगस्त, मंगलवार को सुबह 09:06 मिनट से अष्टमी तिथि शुरू होगी। जो कि 12 अगस्त, बुधवार को सुबह 11:16 मिनट तक चलेगी। ऐसे में अष्टमी तिथि का सूर्योदय 12 अगस्त को हो रहा है। इसलिए जन्माष्टमी 12 अगस्त को ही मनाई जाएगी। इस दिन ही जन्माष्टमी मनाने को श्रेष्ठ माना जाएगा।
सूर्योदय से तिथि मानने के एक तर्क के अलावा एक तर्क यह भी है कि दो प्रकार के भक्त होते हैं- स्मार्त और वैष्णव। इनमें से स्मार्त वो भक्त हैं जो अपने गृहस्थ जीवन का सुख लेते हुए। सुबह-शाम धूप और अगरबत्ती जलाकर भगवान के विग्रह या प्रतिमा का पूजन किया करते हैं। जबकि वैष्णव भक्त वो होते हैं, जिन्होंने अपना जीवन भगवान विष्णु या श्री कृष्ण के नाम कर दिया है। जो सोते, उठते, जागते, बैठते या बोलते समय भगवान का स्मरण किया करते हैं। स्मार्त भक्तों का यह मानना होता है कि जिस समय जो तिथि चल रही है। वही तिथि उस समय मनाई जाए। स्मार्त भक्त सूर्योदय को तिथि के साथ जोड़कर नहीं देखते हैं। जबकि वैष्णव भक्त वो होते हैं, जो तिथि को सूर्योदय के जोड़ते हैं और उसी तिथि के अनुसार व्रत, पूजन और अभिषेक आदि करते हैं।
Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 and Download our - News24 Android App. Follow News24 on Facebook, Telegram, Google News.