नई दिल्ली (1 अगस्त): भारत समेत दुनियाभर में आज कुर्बानी का पर्व ईद-उल-अजहा यानी बकरीद मनाया जा रहा है। इस्लाम धर्म में ईद-उल-अजहा का खास महत्व है। ईद-उल फितर के बाद मुसलमानों का ये दूसरा सबसे बड़ा त्योहार है।
इस्लामिक मान्यता के मुताबिक हजरत इब्राहिम ने अपने बेटे हजरत इस्माइल को इसी दिन खुदा की राह में कुर्बान किया था। तब खुदा ने उनके जज्बे को देखकर उनके बेटे को जीवनदान दिया था।
इस मौके पर दिल्ली के जामा मस्जिद समेत तमाम मस्जिदों में लोग सोशल डिस्टेंसिंग का ध्यान रखते हुए नमाज अदा किया। हालांकि इस दौरान कुछ लोग सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का उल्लंघन करते आए।
ईद-उल फितर पर शीर खुरमा बनाने का रिवाज है, जबकि ईद-उल जुहा पर बकरे या दूसरे जानवरों की कुर्बानी दी जाती है। हालांकि इस साल स्थिति एकदम अलग है। पूरी दुनिया कोरोना वायरस की महामारी से जूझ ही है, लिहाजा कोरोना के संक्रमण से बचने के लिए लोग सोशल डिस्टेंसिंग का सहारा ले रहे हैं।
सरकार ने भी त्योहारों पर जमा होने वाली भीड़ पर भी सरकार पाबंदियां लगा रखी है। लिहाजा लोग अपने-अपने घरों में ही इस पर्व को मना रहे हैं और बहार निकलने से बच रहे हैं।
ईद उल फितर के करीब 70 दिनों के बाद यह त्योहार मनाया जाता है। मीठी ईद के बाद यह इस्लाम धर्म का प्रमुख त्योहार है। यह फर्ज-ए-कुर्बानी का दिन है। इस त्योहार पर गरीबों का विशेष ध्यान रखा जाता है। इस दिन कुर्बानी के बाद गोश्त के तीन हिस्से किए जाते हैं। इन तीन हिस्सों में खुद के लिए एक हिस्सा रखा जाता है, एक हिस्सा पड़ोसियों और रिश्तेदारों को बांटा जाता है और एक हिस्सा गरीब और जरूरतमंदों को बांट दिया जाता है।
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