नई दिल्ली: भारतीय सेना का पराक्रम दुनिया देख चुकी है। जोश, जुनून और अपनी मातृभूमि के लिए जान देने वाले जांबाज सैनिकों को देश नमन करता है। देश में हर सैनिक पराक्रम से भरा है। तभी तो चीनी सेना लद्दाख में कोई दुस्साहस नहीं कर पा रही है।
भारत-चीन सीमा विवाद के बीच भारतीय सेना ने गुरुवार को चो ला दिवस मनाया। यह दिवस 1967 में चो ला पास (Cho La Pass) में झड़प के दौरान चीनी पीपुल्स लिबरेशन आर्मी (PLA) के सैनिकों को नाकों चने चबवाने वाले भारतीय जवानों की बहादुरी को याद करने के लिए मनाया गया। यह आखिरी बार था, जब दोनों सेनाओं के सैनिकों के बीच बड़े पैमाने पर एक हिंसक झड़प हुई थी। इस झड़प में चीन के 300 सैनिक मारे गए थे।
चो ला की घटना 11 सितंबर से 14 सितंबर 1967 के बीच घटी थी, जब भारतीय और चीनी सेनाओं के बीच बड़ी लड़ाई देखने को मिली थी। सिक्किम सीमा में नाथू ला सेक्टर में चीनी घुसपैठ को रोकने के लिए भारतीय सेना ने एक लोहे की बाड़ के निर्माण क्षेत्र पर चीनी सेना को सबक सिखाया था।
उस समय ब्लैक कैट डिवीजन के अध्यक्ष लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह (lt general sagat singh) थे, जो बाद में पाकिस्तान के साथ 1971 के युद्ध के नायक बने। राजस्थान के चूरू में जन्मे परम विशिष्ट सेवा मैडल और पद्मभूषण से सम्मानित सगत सिंह का पराक्रम ऐसा था कि चीन उनके नाम से भी खौफ खाता है। ये वही सगत सिंह हैं, जिन्होंने चीनी सेना पर तोप के गोले बरसा दिए थे। जिन्होंने बांग्लादेश को आजाद कराने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। चीन ने 1965 में भी नाथू ला पर कब्जा करने का प्रयास किया था, लेकिन लेफ्टिनेंट जनरल सगत सिंह ने उनके प्रयासों को विफल कर दिया।
चीन से हुई लड़ाई में जब सगत सिंह ने देखा कि चीनी फायरिंग कर रहे हैं। उस समय तोप की फायरिंग का हुक्म देने का अधिकार सिर्फ प्रधानमंत्री के पास था। यहां तक कि सेनाध्यक्ष को भी ये फैसला लेने का अधिकार नहीं था। लेकिन जब ऊपर से कोई हुक्म नहीं आया और चीनी दबाव बढ़ने लगा तो जनरल सगत सिंह ने तोपों से फायर खुलवा दिया। इसके बाद लड़ाई शुरू हो गई जो तीन दिन तक चली।
जनरल सगत सिंह ने नीचे से मध्यम दूरी की तोपें मंगवाईं और चीनी ठिकानों पर गोलाबारी शुरू कर दी। भारतीय सैनिक ऊंचाई पर थे और उन्हें चीनी ठिकाने साफ नजर आ रहे थे, इसलिए उनके गोले निशाने पर गिर रहे थे। जवाब में चीनी भी फायर कर रहे थे। उनकी फायरिंग अंधाधुंध थी, क्योंकि वे नीचे से भारतीय सैनिकों को नहीं देख पा रहे थे। इससे चीन को बहुत नुकसान हुआ और उनके 300 से ज्यादा सैनिक मारे गए।
चीन ने संघर्ष के ठीक पहले हुई कुछ घटनाओं के बाद भारतीय सैनिकों को चुनौती दी। बीजिंग स्थित भारतीय दूतावास के दो भारतीय राजनयिकों पर कम्युनिस्ट सरकार ने जासूसी के झूठे आरोप लगाए, जिसे भारत ने खारिज कर दिया था। जब दोनों राजनयिक भारत लौटे तो उनका एक नायक के तौर पर स्वागत किया गया, विशेष रूप से लोगों ने नई दिल्ली में चीनी दूतावास की प्रॉपर्टी को नुकसान पहुंचाया गया और चीनी ध्वज को भी फाड़ दिया गया।
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