संजय गोदियाल, नई दिल्ली: पश्चिम बंगाल में 2021 का राजनीतिक रण कुछ ख़ास नारों के ज़रिये लड़ा जाएगा। अभी से प्रचार अभियान में बीजेपी और टीएमसी के बीच अपने-अपने नारों को रैलियों से लेकर जनसंपर्क के दौरान प्रचारित किया जा रहा है। एक-दूसरे के सियासी गढ़ को हथियाने के लिए दोनों पार्टियों ने बहुत ख़ास तरीके से अपने-अपने नारे गढ़े हैं।
बंगाल में जिसका नारा असरदार, वही बनाएगा 2021 में सरकार?
पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने एक अभियान शुरू किया है। दुआरे-दुआरे सरकार यानी घर-घर सरकार। ये सिर्फ़ लोगों तक पहुंचने का सरकारी अभियान नहीं बल्कि टीएमसी का मुख्य नारा भी है। 2021 की चुनावी जंग जीतने के लिए सीएम ममता ने एक करोड़ लोगों तक पहुंचने के लिए ‘दुआरे-दुआरे सरकार’ मिशन शुरू किया है। इसके ज़रिये कोशिश है कि अगले दो महीने में यानी फरवरी तक टीएमसी के लोग एक करोड़ लोगों तक 10 साल की उपलब्धि का प्रचार कर सकें। लेकिन, टीएमसी के इस अभियान को फेल करने के लिए बीजेपी ने ‘आर नोय अन्याय’ यानी अन्याय अब और नहीं। इसके तहत बीजेपी बंगाल में 10 साल के ममता राज को अन्याय वाला शासन बताकर प्रचारित कर रही है। ये नारा भी वो एक करोड़ लोगों के बीच प्रचारित करेगी।
टीएमसी-बीजेपी में नारों की जंग
2021 के लिए बीजेपी ने 200 प्लस सीटें जीतने का मिशन तय किया है। इसके लिए पार्टी ने 'ई बार बांग्ला,पारले सांभला' यानी 'इस बार बंगाल, हो सके तो संभाल' को धार देते हुए ममता सरकार को चुनौती दे रही है।
ममता की दहाड़- ‘बंग ध्वनि’
2021 के विधानसभा चुनाव में टीएमसी ने राज्य को बीजेपी से बचाने की अपील करते हुए नारा दिया है- बंगध्वनि यानी बंगाल की दहाड़। मुख्यमंत्री ममता ने कई राजनीतिक मंचों से बंगाल की दहाड़ नारे का प्रचार शुरू कर दिया है।
सियासी नारों का इतिहास और अहमियत
2009 के लोकसभा चुनाव में टीएमसी ने तत्कालीन लेफ्ट सरकार के खिलाफ नंदीग्राम और सिंगूर में आंदोलन के दौरान 'मां, माटी और मानुष' यानी मातृभूमि, खेत और आम जनता का नारा दिया था। ये नारा काफ़ी लोकप्रिय हुआ और ममता सरकार को राज्य में अपनी पैठ मज़बूत करने में मदद मिली।
2011 में टीएमसी ने नया नारा दिया, पोरिबोर्तन चाइ यानी बदलाव चाहिए। इस नारे ने 34 साल से सत्ता पर आसीन वामदलों की सरकार को बदलने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। बताया जाता है कि बंगाल की सिविल सोसायटी और बुद्धिजीवियों की तरफ से ये नारा आया था। टीएमसी ने 2011 के विधानसभा चुनाव में सत्ता परिवर्तन की अपील की, जिसके बाद टीएमसी सत्ता में आ गई। इसके अलावा वाम मोर्चा सरकार को हटाने में टीएमसी का एक और नारा लोकप्रिय हुआ। ‘चुप चाप फूले छाप’ यानी शांति से तृणमूल के दो फूलों वाले निशान पर वोट करो। लेफ्ट के गढ़ में इसी नारे के दम पर शांत तरीके से लेफ्ट विरोधी लहर को बढ़ाने में मदद मिली।
2014 के आम चुनाव में ‘बांग्लार दिशा, भारोतर पोत, तृणमूल गोरबे भारोतर भोबिष्योत’ यानी तृणमूल बंगाल की दिशा और देश के भविष्य का रास्ता तय करेगी.. इस नारे के जरिये ममता ने अपनी राष्ट्रीय महत्वाकांक्षाएं पेश कीं। इसका असर ये हुआ कि 2014 के चुनाव में टीएमसी को 42 में से 34 सीटें मिलीं।
2016 के विधानसभा चुनाव में ममता ने ‘ठंडा ठंडा कूल कूल, ऐबार जितबे तृणमूल’ का नारा दिया ताकि ये संदेश दिया जा सके कि सरदा और नारदा घोटालों के आरोपों और लेफ्ट-कांग्रेस के गठबंधन की चुनौतियों के बावजूद उनकी पार्टी बहुत आसानी से चुनाव जीतने जा रही है।
2019 के लोकसभा चुनाव में पहली बार ममता के नारे बेअसर रहे। ‘बेयालिशे बेयालिश’ यानी सभी 42 लोकसभा सीटों पर जीत। इसके जवाब में बीजेपी ने नारा दिया ‘उनीशे हाफ, एकुशे साफ’ यानी 2019 में टीएमसी की ताकत आधी रह जाएगी और 2021 में पार्टी साफ हो जाएगी। ये नारा काफ़ी असरदार रहा और 2014 में 2 लोकसभा सीटों से बढ़कर बीजेपी 2019 में 18 सीटों तक पहुंच गई। यानी बंगाल में नारों की सियासत बहुत अहमियत रखती है। जिस पार्टी ने अपने नारे को जनता के बीच बेहतर और प्रभावी तरीके से प्रचारित कर दिया, उसके जीतने की उम्मीदें उतनी ही बढ़ जाती हैं।
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