नई दिल्ली: सीरम इंस्टीट्यूट की कोविशील्ड वैक्सीन के ट्रायल में हिस्सा लेने वाले तमिलनाडु के एक 40 वर्षीय व्यक्ति ने वैक्सीन के प्रतिकूल प्रभाव की वजह से संस्थान को कानूनी नोटिस भेजा है। इसके साथ ही उसने आईसीएमआर, डीसीजीआई, एस्ट्रेजेनेका और आक्सफोर्ड वैक्सीन और श्री रामचंद्र इंस्टीट्यूट को भी नोटिस भेजा है।
इकोनॉमिक टाइम्स की खबर के मुताबिक, यह शख्स तीसरे चरण के ट्रायल का हिस्सा था। ये ट्रायल श्री रामचंद्र इंस्टीट्यूट ऑफ हायर एजुकेशन एंड रिसर्च चेन्नई में आयोजित किए जा रहे थे। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर एस्ट्राज़ेनेका द्वारा विकसित वैक्सीन का निर्माण भारत में देश के सबसे बड़े वैक्सीन निर्माता सीरम संस्थान पुणे द्वारा किया जा रहा है।
मीडिया रिपोर्ट्स में कहा गया है कि टीका लगाए जाने के बाद प्रतिभागियों को गंभीर दुष्परिणामों का सामना करना पड़ा और इसका सार्वजनिक खुलासा नहीं किया गया। प्रतिभागी ने मुआवजे के रूप में 5 करोड़ रुपये की मांग की है।
ये साइड इफेक्ट ऐसे समय में सामने आए, जब यूके में प्रतिकूल प्रभाव की सूचना मिलने के बाद सीरम संस्थान ने तुरंत अपने परीक्षणों को रोक दिया था और काम जारी रखने से पहले एक नियामक मंजूरी मांगी गई थी। वकील आर राजाराम द्वारा 21 नवंबर को भेजा गया कानूनी नोटिस अभी भी वैक्सीन निर्माता की प्रतिक्रिया का इंतजार कर रहा है और अगले हफ्ते अदालत में इस पर याचिका की संभावना है।
मीडिया रिपोर्ट में कहा गया है कि श्री रामचंद्र इंस्टीट्यूट के प्रधान अन्वेषक एसआर रामकृष्णन का कहना है कि एक व्यापक जांच की गई थी और हमें नहीं लगता है कि प्रतिकूल प्रभाव वैक्सीन से संबंधित था। रिपोर्ट डेटा, सुरक्षा निगरानी बोर्ड, SII और दवा नियामक को निर्धारित समय के भीतर प्रस्तुत की गई थी।
नोटिस में उल्लेख किया गया है कि प्रतिभागी ने 1 अक्टूबर को वैक्सीन प्राप्त की और 11 अक्टूबर को गंभीर सिरदर्द का सामना करना शुरू कर दिया। उसे तीव्र न्यूरो इन्सेफैलोपैथी का सामना करना पड़ा और 26 अक्टूबर को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई। वह व्यक्ति अभी भी स्थिर नहीं है, गंभीर मिजाज, समझ में समस्या और नियमित चीजें करने में मुश्किल हो रही है।
मामले में वकील का कहना है कि क्लाइंट को यह विश्वास करने के लिए प्रेरित किया गया था कि कोविशील्ड टेस्ट लेना सुरक्षित है और इससे जुड़े जोखिम शायद ही किसी भी दुष्प्रभाव को जन्म देंगे।
राजाराम का कहना है कि जो प्रतिभागी को अभी तक अस्पताल, कंपनी, दवा नियामक प्राधिकरण या प्रायोजकों से कोई फॉलोअप प्राप्त नहीं हुआ है। द प्रिंट की की खबर के मुताबिक, प्रतिभागी ने वैक्सीन का वितरण रोकने की भी मांग की है। हालांकि सीरम की ओर से दिए गए कंसेंट फॉर्म में कहा गया कि यदि आप अध्ययन के दौरान बीमार हो जाते हैं, तो हम आपको एक उचित उपचार प्राप्त करने में मदद करेंगे।
वॉलेंटियर के दावे पर सीरम संस्थान का बयान सामने आया है। सीरम संस्थान पुणे का कहना है कि नोटिस में आरोप दुर्भावनापूर्ण और गलत हैं। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया स्वयंसेवक की चिकित्सा स्थिति के साथ सहानुभूति रखता है। हालांकि वैक्सीन ट्रायल और स्वयंसेवक की चिकित्सा स्थिति के साथ कोई संबंध नहीं है। स्वयंसेवक COVID वैक्सीन परीक्षण पर अपनी चिकित्सा समस्याओं के लिए झूठा दोष लगा रहा है।
यह दावा दुर्भावनापूर्ण है, क्योंकि वॉलेंटियर को विशेष रूप से मेडिकल टीम द्वारा सूचित किया गया था कि उन्हें जो जटिलताएं हुई थीं, वे टीका परीक्षण के लिए स्वतंत्र थीं।
विशेष रूप से अपनी मेडिकल कंडीशन के बारे में जागरुक करने के बजाय वह सार्वजनिक रूप से लोगों के पास गए और उन्होंने कंपनी की प्रतिष्ठा को खराब करना चुना।
यह स्पष्ट है कि इस तरह की दुर्भावनापूर्ण जानकारी के प्रसार के पीछे का उद्देश्य एक अजीबोगरीब मकसद है। सीरम इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया, इसके लिए 100 करोड़ से अधिक के नुकसान की मांग करता है और इस तरह के दुर्भावनापूर्ण दावों का बचाव करता है।
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