संजय गोदियाल, नई दिल्ली: पहले बिहार विधानसभा, फिर हैदराबाद नगर निगम चुनाव में शानदार प्रदर्शन से बीजेपी के हौसले बुलंद हैं। जीत का जोश कम होता उससे पहले ही पार्टी ने बंगाल में कमल खिलाने की तैयारी शुरू कर दी है। बंगाल में दिग्गजों का दंगल चल रहा है तो बीजेपी की नजर उत्तराखंड पर भी है। सूबे में 'आप' की एंट्री से चौकन्नी बीजेपी किसी भी हाल में उत्तराखंड पर अपनी पकड़ ढीली नहीं करना चाहती है। बीजेपी को ये तो पता है कि मुकाबला सीधा कांग्रेस से है लेकिन वो झाड़ू को भी नजरअंदाज नहीं करना चाहती।
अबकी बार किसका पहाड़ ?
2022 के विधानसभा चुनाव के लिए बीजेपी और कांग्रेस दोनों ने ही अभी से जबरदस्त तैयारी शुरू कर दी है। पहाड़ पर सफल उड़ान के लिए दोनों ही पार्टियों ने प्रदेश प्रभारियों को जिम्मा सौंप दिया है। हालांकि ये जरूर है कि बिहार में एनडीए की वापसी और मोदी मैजिक की वजह से बीजेपी में ज्यादा आत्मविश्वास दिखाई दे रहा है।
'कमल' या 'हाथ' उत्तराखंड किसके साथ ?
उत्तराखंड में त्रिवेंद्र सरकार ने 18 मार्च 2017 को सूबे की कमान संभाली थी। इसलिए अब मार्च 2022 से पहले राज्य में अगले विधानसभा चुनाव होने हैं। इस लिहाज से चुनाव को अब एक साल और कुछ महीने ही बचे हैं। उत्तराखंड में बीजेपी और कांग्रेस दोनों ही बराबर बराबर सियासत और सत्ता के केंद्र में रही हैं। यही वजह है कि लोकसभा चुनाव हो या फिर विधानसभा चुनाव मुख्य मुकाबले में यही दोनों दल ज्यादातर सीटों पर आमने-सामने होती हैं। हालांकि मायावती का 'हाथी' भी सूबे के मैदानी जिले हरिद्वार और ऊधमसिंह नगर में ठीकठाक जनाधार रखता है।
मोदी मैजिक या एंटी कंबेंसी फेक्टर ?
बीजेपी के साथ मोदी जैसा नेतृत्व है तो कांग्रेस के पक्ष में एंटी कंबेंसी फेक्टर है क्योंकि उत्तराखंड के अलग राज्य बनने के बाद से अब तक 4 विधानसभा चुनाव हुए हैं। इससे पहले राज्य गठन के वक्त अंतरिम विधानसभा भी लगभग डेढ़ साल तक रही। इस पहाड़ी राज्य के साथ एक दिलचस्प बात शुरू से ही जुड़ी है कि यहां के वोटर ने कभी भी किसी पार्टी को एक साथ 10 साल सत्ता में रहने नहीं दिया यानी एक बार कांग्रेस तो एक बार बीजेपी। दोनों ही पार्टियां बारी-बारी से सरकार बनाती रहीं हैं। उत्तराखंड को अलग राज्य का दर्जा दिलाने का श्रेय बीजेपी को जाता है। बावजूद इसके साल 2002 के पहले विधानसभा चुनाव में अवाम ने कमल को बाहर का रास्ता दिखा दिया।
सत्ता विरोधी लहर का फायदा उठा पाएगी कांग्रेस ?
लेकिन फिर 5 साल बाद यानी 2007 में हुए चुनाव में राज्य ने बदलाव को पसंद किया और बीजपी का साथ दिया। फिर 2012 में कांग्रेस के हाथ कमान सौंप दी और 2017 के चुनाव में वापिस कमल खिल गया। शायद ये ही वजह है कि कांग्रेस उत्तराखंड को लेकर पूरी तरह से आश्वस्त है कि सरकार उसकी ही बनेगी।
किसका 'चाणक्य' करेगा कमाल ?
ऐसे में कमल और हाथ का पंजा 2022 की रणनीति में जुट चुकी हैं। प्रभारियों की नियुक्ति के साथ ही दोनों पार्टियां सीटों के गुणा भाग में भी जुट चुकी हैं। दोनों पार्टियों के नेता गली-गली घूम रहे हैं। मतदाताओं को लुभाने की कोशिश कर रहे हैं ये तो नतीजों के वक्त ही दिखेगा कि किसकी बात लोगों को ज्यादा समझ आई। लेकिन इस बार ये भी देखना दिलचस्प होगा कि क्या कांग्रेस एंटी कंबेंसी फेक्टर का फायदा उठा पाती है या फिर बिहार की तरह ही इस पहाड़ी राज्य में भी मोदी का मैजिक चलता है।
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