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प्रभाकर मिश्रा, नई दिल्ली: मुफ्तखोरी का वादा करने वाली राजनीतिक पार्टियों की मान्यता रद्द करने की मांग वाली जनहित याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और चुनाव आयोग को नोटिस जारी कर 4 हफ्ते में जवाब मांगा है। मुख्य न्यायधीश की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय बेंच ने नोटिस जारी किया है।
याचिका में कहा गया है कि चुनावों के दौरान मतदाताओं से अनुचित राजनीतिक लाभ हासिल करने के लिए ऐसे लोकलुभावन तरीकों पर पूरी तरह से प्रतिबंध होना चाहिए, क्योंकि यह संविधान का उल्लंघन है। चुनाव आयोग को इस संबंध में उचित कदम उठाने चाहिए। यह याचिका एडवोकेट अश्विनी कुमार उपाध्याय द्वारा दायर की गई है।
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चुनावों को प्रभावित करते हैं ‘वादे’
कोर्ट में याचिका के जरिए कहा गया है कि चुनावों के मद्देनदर मुफ्तखोरी के वादे मतदाताओं को प्रभावित करते है। राजनीतिक दलों की यह प्रवृत्ति लोकतांत्रिक मूल्यों के अस्तित्व के लिए खतरा है। साथ ही इससे संविधान की भावना को भी चोट पहुंचती है। राजनीतिक दलों द्वारा सत्ता हासिल करने की यह प्रथा, एक तरह से रिश्वतखोरी ही है। लोकतंत्र के सिद्धांतों को बचाने के लिए इस तरह इस पर रोक लगाने की जरूरत है।
याचिका में चुनाव चिन्ह (आरक्षण और आवंटन) आदेश 1968 के प्रासंगिक पैराग्राफ में एक अतिरिक्त शर्त डालने के लिए चुनाव आयोग को एक निर्देश देने की भी मांग की गई है, जो एक राज्य पार्टी के रूप में मान्यता के लिए शर्तों से संबंधित है, कि एक राजनीतिक दल चुनाव से पहले सार्वजनिक निधि से तर्कहीन मुफ्त उपहार वितरित करने का वादा नहीं करेगा।''
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