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प्रभाकर मिश्रा, नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को सरकार की मौजूदा नीति पर सुनवाई के दौरान कहा कि किसी भी व्यक्ति को टीकाकरण के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता क्योंकि "शारीरिक अखंडता अनुच्छेद 21 के तहत जीवन के मौलिक अधिकार का एक हिस्सा है"।
कोर्ट ने कहा कि यह वैज्ञानिक साक्ष्यों पर आधारित है, लेकिन किसी को टीका लगवाने के लिए बाध्य नहीं किया जा सकता। कोर्ट ने कहा कि बीमारी की गंभीरता, ऑक्सीजन के स्तर में कमी, मृत्यु दर और विशेषज्ञ की राय को देखते हुए सरकार की मौजूदा वैक्सीन नीति को अदालत ने सहीं पाया है।
सुप्रीम कोर्ट ने सुझाव दिया कि कोविड टीका न लगवाने वाले लोगों को सार्वजनिक सुविधाओं के इस्तेमाल से रोकने के आदेश राज्य सरकारों को हटा लेने चाहिए। कोर्ट ने केंद्र को लोगों और डॉक्टरों से टीकों की प्रतिकूल घटनाओं पर रिपोर्ट सार्वजनिक रूप से सुलभ प्रणाली पर प्रकाशित करने का भी निर्देश दिया।
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बच्चों के लिए टीकों का जिक्र करते हुए अदालत ने 18 साल से कम उम्र के लोगों को टीका लगाने की नीति को मंजूरी दी, लेकिन केंद्र को सभी नैदानिक परीक्षणों, प्रमुख निष्कर्षों और टीकों के परिणामों" को सार्वजनिक करने का निर्देश दिया, जिन्हें पहले ही मंजूरी दे दी गई है।
प्रतिकूल प्रभावों से जुड़े मामलों के बारे में बात करते हुए, अदालत ने केंद्र सरकार से कहा है कि "आभासी मंच पर सभी संदिग्ध प्रतिकूल प्रभावों की जानकारी की सुविधा के लिए, जो जनता के लिए आसानी से सुलभ है।"
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