प्रभाकर मिश्रा, नई दिल्ली: सभी धर्मों के लिए तलाक और गुजारा भत्ता के लिए एक समान नियम की मांग वाली याचिका पर सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया। बीजेपी नेता और सुप्रीम कोर्ट के वकील अश्विनी उपाध्याय की याचिका पर कोर्ट ने ये नोटिस जारी किया है। याचिका में कहा गया है कि मौजूदा परिस्थितियों में हिंदू, बौद्ध, सिख और जैन समुदाय के लोगों को हिंदू मैरिज एक्ट के तहत तलाक मिलता है, जबकि मुस्लिम, पारसियों, ईसाइयों के अपने पर्सनल लॉ है , जिसके चलते बहुत सारे आधार मसलन Adultery , कोढ़, नपुंसकता, कम उम्र में शादी जैसे जो आधार हिंदू मैरिज एक्ट के अंतर्गत तलाक़ का आधार बनते है, वो बाकी धर्म के पर्सनल लॉ में नहीं है।
जनहित याचिका में भरण-पोषण एवं गुजारा भत्ता के संबंध में सभी नागरिकों के लिए समान आधारों वाली ऐसी व्यवस्था बनाए जाने का अनुरोध किया गया है, जो ‘लैंगिंक एवं धार्मिक रूप से तटस्थ’ हो और संविधान एवं अंतरराष्ट्रीय संधियों के अनुरूप हो। अश्विनी उपाध्याय ने अपनी याचिका में केंद्रीय गृह एवं कानून मंत्रालयों को यह निर्देश देने का अनुरोध किया गया है कि, वे भरण-पोषण एवं गुजारा भत्ता के आधारों में मौजूदा विसंगतियों को दूर करने के लिए उचित कदम उठाएं और इन्हें धर्म, जाति, नस्ल, लिंग या जन्म स्थान के आधार पर भेदभाव किए बिना सभी नागरिकों के लिए समान बनाएं.
याचिका में कहा गया है, ‘हिंदू, बौद्ध, सिख एवं जैन समुदाय के लोगों पर हिंदू विवाह कानून 1955 और हिंदू दत्तक एवं भरण पोषण कानून 1956 लागू होता है. मुसलमानों के मामले वैध विवाह और विवाहपूर्व समझौते की स्थिति के अनुसार निपटाए जाते हैं और उन पर मुस्लिम महिला कानून 1986 लागू होता है. ईसाई भारतीय तलाक कानून 1869 और पारसी लोग पारसी विवाह एवं तलाक कानून 1936 के अधीन आते हैं, लेकिन इनमें से कोई भी कानून लैंगिक रूप से तटस्थ नहीं है.’
Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 and Download our - News24 Android App. Follow News24 on Facebook, Telegram, Google News.