प्रभाकर मिश्रा, नई दिल्ली: दिल्ली में रेलवे किनारे बसी 48 हजार झुग्गियां तोड़ने को लेकर आज सुप्रीम कोर्ट में अहम सुनावाई होनी है। ये सुनवाई कांग्रेस नेता अजय माकन की याचिका पर होगी। अजय माकन में अपनी याचिका में सुप्रीम कोर्ट से रेलवे किनारे बनी 48000 झुग्गियों को तोड़ने के अपने आदेश पर पुर्णविचार और बदलाव की मांग की है। साथ ही उन्होंने दिल्ली में रेल पटरियों के किनारे करीब 48,000 झुग्गियों में रहने वाले लोगों के पुनर्वास की मांग की है।
दरअसल सुप्रीम कोर्ट ने 31 अगस्त को दिल्ली में तीन महीने के भीतर रेलवे पटरियों के पास बसी करीब 48,000 झुग्गी-बस्तियों को हटाने का आदेश दिया था और कहा था कि इस मामले में कोई राजनीतिक हस्तक्षेप नहीं किया जाएगा। अजय माकन ने एक हस्तक्षेप आवेदन में कहा है कि रेल मंत्रालय और दिल्ली सरकार ने पहले ही प्रक्रिया की पहचान करने और झुग्गियों को हटाने की पहल की है और दिल्ली में विभिन्न मलिन बस्तियों के लिए 'विध्वंस नोटिस' जारी किए हैं।
साथ ही उन्होंने कहा, 'ऐसा करते हुए उन्होंने झुग्गियों को हटाने/ढहाने से पहले झुग्गी बस्तियों के पुनर्वास के संबंध में कानून में प्रदत्त प्रक्रिया को दरकिनार किया है और दिल्ली स्लम और जेजे पुनर्वास और पुनर्वास नीति-2015 और प्रोटोकॉल (झुग्गियों को हटाने के लिए) में निर्दिष्ट प्रक्रिया की अनदेखी की है।'
कांग्रेस नेता अजय माकन की दलील है कि अगर झुग्गियों के बड़े पैमाने पर विध्वंस की कार्रवाई जारी रहती है, तो इससे लाखों लोगों के प्रभावित होने और कोविड-19 के बीच बेघर होने की संभावना है। उन्होंने अपने आवेदन में कहा, 'बेघर व्यक्तियों को आश्रय और आजीविका की तलाश में एक स्थान से दूसरे स्थान पर जाने के लिए मजबूर किया जाएगा और वर्तमान में चल रहे कोविड-19 संकट को देखते हुए यह हानिकारक होगा।' उन्होंने शीर्ष अदालत के समक्ष सुनवाई के लिए इस मामले की लिस्टिंग की मांग की।
अजय माकन का कहना है कि 31 अगस्त के आदेश को पारित करते समय शीर्ष अदालत ने सरकारी एजेंसियों (रेलवे, नगर निगम आदि) के लिए तो एक विस्तृत सुनवाई की, मगर अदालत ने झुग्गीवासियों की प्रभावित/कमजोर आबादी को पूरी तरह से नजरअंदाज कर दिया और उन्हें सुनवाई के अवसर से वंचित रखा गया। साथ ही उन्होंने कहा कि '31 अगस्त के आदेश में पारित निर्देशों का शुद्ध प्रभाव न केवल यह है कि झुग्गी-झोपड़ियों में रहने वालों को सुनवाई के अवसर से वंचित कर दिया गया है, बल्कि यह आदेश अपने आप में अमानवीय भी है।'
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