नई दिल्ली: आज तेजस्वी बिहार के सियासी पटल पर छा गए हैं। बिहार के लिए एक नई उम्मीद बन चुके हैं, लेकिन इतनी तेज दौड़ लगाने वाले तेजस्वी के बीते हुए पन्ने पर एक नजर डालिए। कभी 22 गज की पट्टी पर दौड़ लगाने वाले तेजस्वी ने बिहार सियासी पिच पर ऐसी दौड़ लगायी है कि सधे हुए विरोधियों को भी हकीकत पर यकीन नहीं हो रहा है।
कभी 22 गज की क्रिकेट पट्टी पर सचिन और सहवाग जैसा बनने का सपना संजोने वाले एक नौजवान को बिहार की सियासी पिच पर बल्लेबाजी करने करने पड़ेगी, किसने सोचा था। किसने सोचा था कि जिसके पास कभी दिल्ली की क्रिकेट टीम की कमान थी, उसे एक दिन राजनीति के मंझे हुए महानुभावों की सियासी गुगली का सामाना करना पड़ेगा।
क्रिकेट की पिच से सियासत के मैदान में उतरने के एक ऐसे ही दुर्लभ संयोग और शख्सियत का नाम तेजस्वी यादव है। तेजस्वी आईपीएल के चार सीजन तक दिल्ली की टीम के साथ जुड़े जरूर, मगर कभी पिच पर उतरने का मौका नहीं मिल पाया। तेजस्वी का क्रिकेट करियर तो बहुत ज्यादा आगे नहीं बढ़ा, लेकिन साल 2015 में जब वो पहली बार बिहार की राजनीति में सक्रिय भूमिका में दिखे तो पहली ही बाजी में जेडीयू के साथ गठबंधन वाली सरकार में डिप्टी सीएम बन गए।
करीब 20 महीने तक चली उस सरकार में तेजस्वी सबसे कम उम्र के डिप्टी सीएम बनने का रिकॉर्ड अपने नाम किया। तेजस्वी अभी सियासत और सत्ता का ककहरा सीख ही रहे थे कि जेडीयू के साथ उनकी पार्टी का गठबंधन टूट गय़ा और तेजस्वी एक झटके में सबसे कम उम्र के डिप्टी सीएम से सबसे कम उम्र के नेता विपक्ष बन गए। मां और पिता के मार्गदशन में तेजस्वी अब बिहार की सियासी पिच पर टिककर खेलने का हुनर सीखने लगे, मगर चारा घोटाले में दोषी साबित हो चुके लालू को जेल जाना पड़ा।
विरोधियों के विरुद्ध अकेले पड़ने के बावजूद सियासी मैदान में तेजस्वी ने कभी हार नहीं मानी। जल्द ही इन्होंने सत्ता पर हमलावर होना और सियासी मुद्दों को भुनाने का गुर सीख लिया। तेजस्वी का पहला इम्तिहान साल 2019 का लोकसभा चुनाव था, जहां आरजेडी पहली बार लालू यादव के बिना चुनावी मैदान में उतरी। युवा तेजस्वी जोश से तो लबरेज थे, मगर अनभुव की कमी ने कारण उनकी पार्टी पूरी तरह चुनाव में चित हो गई। लोकसभा चुनाव में लालटेन का खाता तक नहीं खुला।
केंद्र में एनडीए फिर सत्ता पर काबिज हो गई। तेजस्वी के सियासी भविष्य को लेकर सियासी गलियारों में तरह तरह की बातें होने लगी। तब सियासत के कुछ जानकारों ने तो तेजस्वी की राजनीतिक समझ पर सवाल उठाने शुरू कर दिए थे। साल बदल गया और हालात भी। देखते ही देखते सारी दुनिया कोरोंना की चपेट में आ गई। इसी दौर में बिहार में विधानसभा चुनाव की आहट सुनाई देने लगी। नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी लगातार चुनाव कराने का विरोध करते रहे। मगर जोरदार प्रतिरोध के बावजूद बिहार के सबसे बड़े चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया गया।
सियासी बहस में लालू राबड़ी और जंगलराज के मुद्दों से खुद को अलग करते हुए इस बार तेजस्वी एक अलग अंदाज में नजर आए। जाति पॉलिटिक्स से अलग तेजस्वी ने इस बार विकास, रोजगार और पलायन को मुद्दा बनाया, इसका असर भी दिखा। तेजस्वी की रैलियों में भीड़ ने इस बात पर अपनी सहमति दे दी थी कि बिहार को एक और नेता मिल गया है।
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