संकेत पाठक, मुंबई: एक तरफ देश में कृषि बिल को लेकर किसान आंदोलन चल रहा है तो वहीं महाराष्ट्र में किसानों की आत्महत्या रुकने का नाम नहीं ले रही हैं। पिछले साल 2020 के 11 महीनों में करीब 2270 किसानों ने महाराष्ट्र में आत्महत्या की है। यानी हर दिन लगभग 6 किसानों ने आत्महत्या की है।
हैरानी की बात ये है कि इनमें से सिर्फ आधे किसान ही सरकारी मुआवजे के लायक समझे गए हैं। महाराष्ट्र में सरकार ने भले ही कर्जमाफी समेत किसानों के लिए कई योजनाएं चला रखी हों लेकिन इसके बाद भी किसान आत्महत्या के मामलों में कमी नही आई है।
एक RTI से मिली जानकारी के मुताबिक पिछले साल के 11 महीनों यानी एक जनवरी 2020 से लेकर 30 नवंबर 2020 तक महाराष्ट्र में कुल 2270 किसानों ने अपना जीवन समाप्त कर लिया। इसमें सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र के विदर्भ इलाके के अमरावती रीजन से सामने आए हैं, जहां 990 किसानों ने आत्महत्या की है।
आंकड़ों के मुताबिक सबसे ज्यादा प्रभावित जिले यवतमाल और अमरावती हैं, जहां क्रमशः 295 और 248 किसानों ने आत्महत्या की है।गौर करने वाली बात ये है कि बीते साल 2270 किसान जिन्होंने आत्महत्या की है। उनमें से सिर्फ 920 किसानों को ही सरकार की तरफ से दिए जाने वाले 1 लाख रुपये के मुआवजे के लिए पात्र माना गया है।
विदर्भ जहां सबसे ज्यादा 990 मामले सामने आए हैं, वहां सिर्फ 348 किसानों को या तो मुआवजा मिला है या वो इसके लिए पात्र पाए गए हैं। ये आंकड़े बताते हैं कि सरकार काफी हद तक किसानों के मुद्दों को सुलझाने में विफल रही है।
RTI कार्यकर्ता जितेंद्र घाडगे ने कहा कि ये आंकड़े चौंकाने वाले है, जिससे यह पता चलता है कि किसान कर्जमाफी का किसानों को कोई खास लाभ नहीं मिला है। वहीं मौजूदा कृषि बिल किसानों की मुसीबत और बढ़ा सकता है खासकर MSP जबतक कानूनी ना कर दी जाए।
वहीं दूसरी तरफ भाजपा ने महाराष्ट्र की महाविकास अघाड़ी सरकार पर हमला बोलते हुए उसे किसानों के प्रति असंवेदनशील बताया है। भाजपा विधायक अतुल भातखलकर ने कहा कि पहले कोरोना में सरकार विफल रही और अब किसानों की आत्महत्या को लेकर असंवेदनशील दिखाई दे रही है। भाजपा ने मांग की है कि जल्द से जल्द सभी किसानों को उनका मुआवजा दिया जाए।
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