के जे श्रीवत्सन, जयपुर: राजस्थान में सरकार बदलते ही मानों सरकारी स्कूल भी प्रयोगशाला बन जाते हैं। स्कूल पाठ्यक्रम और साइकल का रंग बदलने के बाद इस बार भी सरकार ने विद्यार्थियों की स्कुल पोषक को बदलने का एलान कर दिया है। साल 2017 में ही तत्कालीन वसुंधरा सरकार ने पोशाकों का रंग बदला था और अब कोरोना काल के बाद स्कूल खुलने के साथ ही अभिभावकों पर नए युनिफोर्म सिलवाने का अतिरिक्त खर्चा आ जाएगा। जानकारों की मानें तो राजस्थान के सरकारी स्कूलों में पढने वाले 75 लाख बच्चों के अभिभावकों पर इस फैसले से 450 करोड़ रूपये का भार आएगा। लेकिन बड़ा सवाल यह भी है की इन 75 लाख बच्चों के लिए एक ही रंग वाले कपडे को बनाने में लगने वाला 3 करोड़ मीटर कपड़ा आखिरकार इतनी जल्दी कैसे तैयार हो पायेगा ?
राजस्थान में कोरोना काल के बाद जब स्कुल खुलेंगे तो यहां के बच्चे एक नए रंग रूप में आपको स्कूलों में बैठे नजर आयेंगे। राजस्थान सरकार ने इस बार 5 साल की बजाय महज तीन साल में ही सरकारी स्कुल के बच्चों की पोषक के रंग को बदलने का एलान कर दिया है। अब बच्चे फिर से नीली शर्ट और खाखी रंग की पेंट पहने नजर आयेंगे। सरकार की मानें तो साल 2017 में तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने जो कत्तई रंग की पेंट और हलके ब्राउन रंग की शर्ट को स्कूली पोषक के रूप में चुना था वह दो समुदायों के बीच बांटने वाला रंग था। अभिभावक भी लगातार इस रंग में बदलाव की मांग कर रहे थे और उन्हीं सुझावों के आधार पर ऐसे में अब फिर से सरकार ने स्कूली पोषक के रंग को बदलने का फैसला लिया है।
पूरे मामले पर राज्य के शिक्षामंत्री गोविन्द सिंह डॉटासरा का कहना है कि सत्ता में आने के साथ ही कई बार सरकारी स्कूलों की ड्रेस बदलने को लेकर मांग उठ रही थी और अब इसी मांग के अनुरूप ड्रेस बदलने का फैसला लिया गया है। वैसे भी पुरानी बीजेपी सरकार ने स्कूलों के बच्चों के लिए जो रंग चुना था वह दो समुदायों में विभाजन लाने वाला था जिसे हम बदल रहे हैं। अभिभावक भी यही चाहते हैं। इसको लेकर विभाग के अधिकारियों को मत सहित पत्रावली भेजने के निर्देश दिए गए हैं।
वैसे सरकार ने तो यह फैसला कर लिया लेकिन सरकारी स्कूलों में पढने वाले 75 लाख छात्र- छात्राओं के पोशाक को महज 3 साल में ही बदलने जाने के इस फैसले के चलते अभिभावकों पर करीब 450 करोड़ रूपये का अतिरिक्त भार पढने की संभावना है। कोरोना काल में आर्थिक संकट के बीच पोषक के रंग बदलने पर इसी के चलते सवाल भी उठाने लगे हैं। जिसका कारण भी है। राजस्थान में करीब 3 महीनों में कपड़ा कारखाने बंद रहे और अब भी वहां पर 40 से 50 फीसदी क्षमता के साथ ही कामकाज जैसे तैसे चल रहा है, ऐसे में इन 75 लाख बच्चों के लिए समान रंग वाले 3 करोड़ मीटर कपडा की जरुरत होगी।
एक अनुमान के मुताबिक राजस्थान में 34 लाख छात्र हैं जिनके कम से कम दो जोड़ी कपडे सिलवाने पर अभिभावकों को 200 करोड़ रूपये और 41 लाख छात्राओं के अभिभावकों को करीब 270 करोड़ रूपये खर्च करने पड़ेंगे। अनुमान के मुताबिक एक छात्रा की स्कुल पोषक सिलवाने पर 650 रूपये के करीब का खर्चा और छात्रों की पोषक पर 600 रूपये तक का खर्चा आयेगा। वैसे भी छात्राओं की पोषक पर छात्रों की तुलना में 50 रूपये तक अधिक खर्च आता है। ऊपर से सर्दियों का मौसम भी आ रहा है तो स्कूलों के खुलने की सूरत में उसी रंग के स्वेटर और दुसरे गर्म कपड़े भी खरदने पड़ेंगे। ऐसे में पहले से ही आर्थिक संकट का सामना कर रहे गरीब परिवारों की मुश्किलें और भी बढ़ जायेंगी। वैसे भी साल 2017 में तय किये गए स्कूली पोषक के रंग के दो समुदाय को बाटने वाले आरोपों से खुद पूर्व शिक्षा मंत्री तक इत्तेफाक नहीं रखते।
राज्य के पूर्व शिक्षा मंत्री वासुदेव देवनानी का कहना है कि गहलोत सरकार ने राज्य के 77 लाख से अधिक अभिभावकों पर ड्रेस बदलने का फैसला थोपा है। कोरोना काल में 460 करोड़ जितना बड़ा खर्चा निंदनीय है। बच्चों की ड्रेस 20 सालों तक लगातार नीली शर्ट और खाखी पेंट थी। जिसके चलते उनके हीन भावना था। सभी इसे बदलना चाहते थे और हमने तीन साल पहले ही सबकी राय से इसे बदला था। लेकिन अब वर्तमान शिक्षा मंत्री अपने आकाओं को खुश रखने के लिए ही ड्रेस बदल रहे हैं। इन्हें हर चीज में आरएसएस और बीजेपी की गंध आती हैं। पहले इन्होंने पाठयक्रम को बदला और फिर महापुरुषों के नाम से बनी योजनाओं और फिर साईकल का रंग बदला। शिक्षा के खराब हालत को सुधरने की बजाय इस तरह की हरकत उनकी असंवेदंशीत और दिवालियापन का प्रतिक है।
ऐसा ही कुछ मानना आरएसएस विचारधारा वाले लोगों का भी है और उनका कहना है की सरकार को स्कूलों को अपनी विचारधारा थोपने की प्रयोगशाला नहीं बनाना चाहिए। जाहिर है की राजस्थान में सरकार बदलने के साथ ही स्कूल और उससे जुड़े पाठ्यक्रम भी हर साल विवाद और राजनीतिकरण का कारन बन जाते हैं। ड्रेस बदलने को लेकर राजनीतिक विवाद भी देखने को मिला।
जहां पूर्व में वसुंधरा राजे की बीजेपी सरकार ने छात्राओं को दी जाने वाली साईकल के रंग को भगवा करने के साथ अकबर को महान बताये जाने सहित कई महापुरुषों के जुड़े अध्ययय को हटाने और जोड़ने को लेकर बड़ा कदम उठाया था। वहीं अब कांग्रेस सरकार अपने हिसाब से पाठयक्रमों में बदलाव कर रही है।
ऐसे में साइकिलों के रंग और इतिहास में बदलाव के साथ ही सरकारी स्कूलों की ड्रेस में भी बदलाव भी जल्द ही राजस्थान में देखने को मिलेगा। लेकिन एक बड़ा सवाल यह भी है की जब निजी स्कुलों को 5 साल तक ड्रेस नहीं बदलने का नियम सरकार ने बनाया है तो आखिरकार एसा क्या कारन है की वह सरकारी स्कूलों में महज 3 साल में ही इन पोशाकों को बदलना चाहती है।
Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 and Download our - News24 Android App. Follow News24 on Facebook, Telegram, Google News.