के जे श्रीवत्सन, जयपुर : बहुजन समाज पार्टी (BSP) राजस्थान की राजनीती में उसे मिले घावों को नए साल में भी भूल नहीं पा रही है। बीएसपी की ओर से राजस्थान में अपने सभी 6 विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने को लेकर एक बार फिर दावंपेच तेज कर दिए हैं। बीएसपी शुरू से ही अपनी पार्टी के टिकेट पर जीतकर आये सभी 6 विधायकों के राजस्थान में सत्तारूढ़ कांग्रेस में मर्जर को असंवैधानिक बता रही थी और अब सुप्रीम कोर्ट में भी इसे लेकर यही दलील देने की कोशिश कर रही है। बीएसपी दलबदल पर उसे धोखा देने वाले सभी विधायकों की सदस्यता को रद्द करवाना चाहती है।
विधानसभा सचिव को बीएसपी की औपचारिक शिकायत
बाकायदा गुरूवार को तो बीएसपी के प्रदेश अध्यक्ष भगवान सिंह बाबा ने एक बार फिर से राष्ट्रीय नेताओं के निर्देश पर राजस्थान विधानसभा जाकर वहां सचिव को इन 6 दलबदलू विधायकों के खिलाफ नियमानुसार लिखित शिकायत दी। राजस्थान में पिछले साल आए राजनीतिक संकट के दौरान बीएसपी सीधे इस मामले को हाईकोर्ट में ले गयी तब कोर्ट कहा था कि नियमानुसार पहले विधानसभा अध्यक्ष से ही इस पर फैसला लेना होगा। उस फैसले को चाहे तो बाद में बीएसपी अदालत में चुनौती दे सकती है। साथ ही अदालत की ओर से यह भी निर्देश दिया गया था की विधानसभा अध्यक्ष को इसे लेकर आने वाली शिकायतों का निपटारा 3 महीने के भीतर ही करना होगा। ऐसे में अपने बागी विधायकों पर कारवाई की मांग को बीएसपी ने फिर से विधानसभा अध्यक्ष का दरवाजा खटखटाया है।
ये 6 विधायक बीएसपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल हुए
दरअसल जब पिछले साल जब अशोक गहलोत सरकार पर राजनीतिक संकट आया था तो उस दौरान बीएसपी के टिकट पर जीतकर आने वाले झुंझुनू के उदयपुरवाटी के राजेंद्र गुढा, भरतपुर के नगर के वाजिब अली, भरतपुर के ही नदबई के जोगिन्दर आवना, अलवर के तिजारा के संदीप यादव, अलवर के किशनगढ़ के दीपचंद खेरिया और करौली के लाखन सिंह ने बीएसपी छोड़कर कांग्रेस में शामिल होने का एलान कर दिया था। राजनीतिक संकट के वक़्त अशोक गहलोत सरकार के लिए यह सबसे बड़ी राहत की बात इसलिए साबित हुई क्योंकि विधानसभा में उनके विधायकों की संख्या 100 से बढ़कर 106 हो गयी और सरकार पर आया संकट दूर हो गया। चूंकि सभी 6 विधायक एक साथ आये थे, ऐसे में विधानसभा अध्यक्ष ने भी बीएसपी का पक्ष सुने बिना उन्हें कांग्रेस में विलय को मंजूरी दे दी थी।
राजस्थान से दूसरी बार बीएसपी को मिला ऐसा झटका
वैसे कांग्रेस के लिए इस पुरे मामले पर बीएसपी का गुस्सा इसलिए भी जायज है क्योंकि केवल इस बार ही नहीं बल्कि साल 2008 में जब अशोक गहलोत की ही सरकार अल्पमत में थी तब भी बीएसपी के टिकट पर जीतकर आये सभी विधायकों को कांग्रेस में मिला लिया था। और अब 2018 के विधानसभा चुनावों में जीतकर आये अपने सभी विधायकों को फिर से महज एक साल से कम वक़्त में ही छीन लिए जाने से खुद बीएसपी सुप्रीमो खासी नाराज हैं। जैसे ही राजस्थान के अपने सभी 6 विधायकों के कांग्रेस में शामिल होने की खबर मायावती को मिली, उन्होंने अशोक गहलोत पर फिर से धोखाधड़ी का आरोप लगाते हुए राजस्थान में राष्ट्रपति शासन तक लगाने की मांग कर दी थी।
तिलमिलाई मायावती ने राष्ट्रपति शासन की मांग कर दी थी
सभी जानते हैं की 2018 के राजस्थान विधानसभा चुनाव में बीएसपी चीफ मायावती ने खुद कांग्रेस को समर्थन देने का फैसला किया था, लेकिन चुनावों के बाद जब कांग्रेस ने मायावती को बड़ा झटका देते हुए बीएसपी के सभी 6 विधायकों का कांग्रेस में विलय करवा लिया तभी से मायावती आग बबूला हैं। और किसी भी तरह से इस मामले को इस बार आसानी से छोड़ने के मुड में नहीं है। दूसरी बार भी राजस्थान कांग्रेस से मिले इस तरह के राजनीतिक हालातों के बाद मायावती का पुराना घाव फिर हरा हो गया। यही कारण है कि सतीश मिश्रा के जरिये वे इस मामले में कानूनी लड़ाई कर रही है। यहां तक कि राजनितिक संकट के दौरान मायावती ने एक व्हीप जारी करके पार्टी छोड़ने वाले सभी विधायकों को अशोक गहलोत सरकार के खिलाफ वोट करने को भी कहा था लेकिन ऐसा नहीं हो सका।
बीएसपी से पहले बीजेपी विधायक मदन दिलावर की कवायद
वैसे बीएसपी से पहले इन विधायकों की सदस्यता को रद्द करने की मांग को लेकर बीजेपी के विधायक मदन दिलावर विधानसभा अध्यक्ष के पास पहुंचे थे। मदन दिलावर ने स्पीकर से शिकायत करते हुए इसे दल-बदल विरोधी कानून का उल्लंघन बताया। लेकिन राजस्थान के राजनितिक संकट के बीच स्पीकर सीपी जोशी ने बीएसपी विधायकों के विलय की शिकायत को यह कहकर ख़ारिज कर दिया था कि मदन दिलावर का इस मामले से कोई लेना देना नहीं है और बीएसपी को खुद इसकी शिकायत करनी चाहिए। चूंकि इन सभी विधायकों के कांग्रेस में चले जाने के चलते इस पार्टी के पास अपना कोई सचेतक या विधायक नहीं था, ऐसे में अदालत से आदेश लाकर पार्टी के जरिये शिकायत दर्ज कराने की मजबूरी आ गयी थी।
अब क्या ?
फिलहाल जहां बीएसपी अपने साथ राजस्थान में दूसरी बार हुई इस तरह की घटना को विश्वासघात बताकर कांग्रेस सरकार को माफ करने के मूड में नहीं हैं वहीं राजस्थान हाईकोर्ट के फैसले के बाद अब विधानसभा स्पीकर सीपी जोशी के सामने भी इस मामले पर तीन महीने के भीतर फैसला लेने का दबाव बन गया है। जब तक बीएसपी के इन 6 विधायकों को लेकर स्पीकर के फैसले के साथ-साथ तमाम कानूनी दावपेंच खत्म नहीं हो जाते तब तक बहुमत की कोशिशों को लेकर सरकार की मुश्किलें कम होने का नाम नहीं लेगी।
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