के जे श्रीवत्सन, जयपुर: राजस्थान में पेट्रोल और डीजल के दामों में लगातार हो रही बढोत्तरी ने लोगों को बेहाल कर रखा है। जयपुर में एक लीटर पेट्रोल का दाम 95 रूपये 75 पैसे हो गया है। डीजल का दाम 88 रूपये 20 पैसा तक पहुंच गया है। चौंकाने वाली बात यह है की पिछले 14 दिनों में ही पेट्रोल के दाम को तेल कंपनियों ने जहां 2 रूपये 10 पैसे तक बढ़ा दिया है वहीं डीजल की कीमत 2 रूपये 40 पैसे तक की बढ़ोतरी कर दी है। वैसे सीमावर्ती इलाकों में परिवहन चार्ज को जोड़कर तेल कम्पनियां पेट्रोल को 100 रूपये प्रति लीटर की दर से बेच रही है।
तेल कंपनियों द्वारा ईंधन के दामों में हर रोज की जा रही बढोत्तरी अब आम आदमी को बेहाल करने लगी है। लगातार 8 दिनों से हर रोज पेट्रोल डीजल के दाम बढ़ रहे हैं। हालांकि राजस्थान सरकार ने करीब 10 दिन पहले ही वैट में 2 फीसदी तक की कमी की थी लेकिन तेल कंपनियों के हर रोज दाम बढाए जाने के कारण इस कमी का फायदा 7 दिन तक भी जनता को नहीं मिल पाया।
जयपुर में मंगलवार को एक लीटर पेट्रोल का दाम 95 रूपये 75 पैसे हो गया है, वहीं डीजल का दाम 88 रूपये 20 पैसा तक पहुंच गया है। जानकारों की मानें तो जिस तरह से लगातार तेल के दाम बढ़ रहे हैं उसके हिसाब से अगले 10 दिन के भीतर पेट्रोल के दाम सभी जगह 100 रूपये के आंकड़े को छू सकते हैं।
तेल के लगातार बढ़ते दामों पर अब राजस्थान सरकार भी साफ कर चुकी है कि अब उसके लिए भी टैक्स को और कम करना संभव नहीं है। क्योंकि 2 फीसदी वैट कम करने से राज्य सरकार अबतक 1000 करोड़ रूपये का नुकसान हो चुका है और राजस्व की कमी से विकास योजनाएं प्रभावित होंगी। उधर आम आदमी इससे काफी परेशान है। लोगों का कहना है कि कोरोना की वजह से तेल की बढ़ती कीमत के खिलाफ सड़कों पर उतर कर प्रदर्शन करना संभव नहीं है और उनकी इसी बेबसी का तेल कंपनिया फायदा भी उठा रही है।
सदन में राज्यपाल के अभिभाषण पर सरकार की ओर से जवाब देते हुए सीएम गहलोत ने कहा कि पेट्रोल-डीजल की ज्यादा कीमतों के लिए केंद्र जिम्मेदार है। सीएम गहलोत ने कहा कि यूपीए के शासन काल में कच्चे तेल की रेट 135 डॉलर प्रति बैरल थी ,जबकि आज 40 डॉलर प्रति बैरल है, फिर भी रेट बढ़ती जा रही है। उन्होंने कहा कि हम कम करेंगे तो हमारा रेवेन्यू कम हो जाएगा। हमने कोविड के बावजूद जनभावनाओं को देखते हुए वैट 2 फीसदी कम किया। लेकिन केंद्र सरकार ने पेट्रोल-डीजल पर वे सब ड्यूटी बढ़ा दी हैं, जिनका राज्यों को हिस्सा नहीं मिलता। जीएसटी पर लिखित समझौता होने के बावजूद 10 हजार करोड़ काट लिए।
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