केजे श्रीवत्सन, जयपुर: इन दिनों देशभर में लव-जिहाद को लेकर राजनीति गरमाई हुई है, लेकिन राजस्थान सरकार ने करीब 12 साल पहले ही विधानसभा में जबरन धर्म परिवर्तन रोकने के लिए जो विधेयक पास किया था, आज भी दिल्ली और राजस्थान के बीच की राजनीति के चलते मंजूरी के लिए अटका हुआ है।
इस विधेयक को विधानसभा में पास करके उसे राष्ट्रपति के पास मंजूरी के लिए भेज दिया था, जिसे आज तक मंजूरी नहीं मिली है। राजस्थान सरकार की तरफ से पारित इस बिल को “राजस्थान धर्म स्वतंत्रता विधेयक-2008” नाम दिया गया है, जिसमे जबरन या प्रलोभन के जरिये धर्म परिवर्तन करने वालों के खिलाफ 3 साल तक की अधिकतम सजा और जुर्माने का प्रावधान है। हालांकि अब बीजेपी एक बार फिर से उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश की तरह ही कानून बनाने की मांग करने लगी है।
राजस्थान विधानसभा ने करीब 14 साल पहले ही पास कर दिया, लेकिन एक नहीं दो-दो बार विधानसभा से पास होने के बावजूद भी आज तक इसे राष्ट्रपति की मंजूरी नहीं मिली है। पहली बार जब साल 2006 में पास किये गए इसके सवैधानिक और क़ानूनी प्रारूप को ही लेकर ही सवाल उठाने लगे, तो तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार ने दूसरी बार एक नया बिल लाकर फिर से इसी विषय को इसे विधानसभा में नए रंग रूप में साल 2008 में दोबारा पेश किया।
पहली बार की तरह ही दूसरी बार भी इसे लेकर विधानसभा में जबरदस्त हंगामा मचा और उस वक़्त भी विपक्ष के बायकाट के बावजूद भी बहुमत के साथ पारित कर दिया गया। कांग्रेस विधायकों ने बाद में इसके प्रावधानों के दुरूपयोग होने की आशंका को लेकर राज्यपाल के साथ ही राष्ट्रपति तक को ज्ञापन भेजा था। वहीं दूसरी तरफ़ सत्ता में रहने के दौरान राजभवन से लेकर केन्द्रीय गृह मंत्रालय और फिर राष्ट्रपति तक इसे जल्दी मंजूर करने की वसुंधरा राजे सरकार ने गुहार लगानी शुरू कर दी। हालांकि 21 मार्च 2008 में राज्य सरकार द्वारा पुराने विधेयक के स्थान पर नया विधेयक पारित किये जाने के बाद उसे भी राज्यपाल के माध्यम से राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया।
क्या था राजस्थान विधानसभा द्वारा पारित विधेयक:
तत्कालीन वसुंधरा राजे सरकार द्वारा पारित इस विधेयक में जबरन अथवा प्रलोभन देकर धर्म परिवर्तन कराने को दण्डनीय एवं गैरजमानती अपराध की श्रेणी में रखते हुए एक से तीन साल तक की सजा और 25 हजार रुपये तक के जुर्माने का प्रावधान किया गया है। साथ ही किसी अवयस्क, महिला अथवा अनुसूचित जाति एवं जनजाति के व्यक्ति का धर्म परिवर्तन कराने पर दो से पांच साल तक की सजा व 50 हजार रुपये जुर्माने का प्रावधान है। इस तरह करवाए गए धर्म परिवर्तन को मान्यता भी नहीं मिलने की बात कही गयी है।
विधेयक में कहा गया है कि धर्म परिवर्तन करने का इच्छुक व्यक्ति कम से कम तीस दिन पहले जिला मजिस्ट्रेट को सूचना देगा, किंतु मूल धर्म में वापस लौटने पर सूचना देने की कोई जरूरत नहीं है। इस तरह के प्रावधानों के चलते और मूल धर्म में लौटने सम्बन्धी इसी प्रावधान पर एतराज उठने लगा है। आरोप लगा कि यह प्रावधान हिन्दूवादी संगठनों द्वारा घर वापसी कार्यक्रम के तहत चलाए जाने वाले धर्म परिवर्तन अभियान को मदद देने के लिए किया गया है। तमाम ख़बरों के बीच केन्द्रीय गृह मंत्रालय और एटार्नी जनरल ने फिर से इस पर आपत्ति लगा दी और दशकों से यह बिल अभी भी मंजूरी के इंतजार में हैं।
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