मनीष कुमार, दिल्ली: पूर्व आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन और आरबीआई के पूर्व डिप्टी गवर्नर विरल आचार्य ने बड़े कॉरपोरेट घरानों को बैंकिंग लाइसेंस दिए जाने का विरोध किया है। दोनों ने आरबीआई की इंटरनल वर्किंग कमिटी द्वारा देश के बड़े कॉरपोरेट घरानों को बैंकिंग लाइसेंस दिए जाने की सिफारिश को विनाशकारी करार दिया है।
Linkdin में लिखे साझा ब्लॉग में रघुराम राजन और विरल आचार्य ने कॉरपोरेट घरानों को बैंकिंग लाइसेंस दिए जाने की सिफारिश पर हैरानी जताई है। उन्होंने अपने ब्लॉग में लिखा कि कॉरपोरेट घरानों को बैंकिंग लाइसेंस देने से देश की आर्थिक और राजनीतिक ताकत कुछ कॉरपोरेट घरानों के हाथों में पहुंच जाएगी। इस सिफारिश का बड़ा फायदा कर्ज में डूबे कॉरपोरेट घरानों और राजनीतिक दलों के साथ घनिष्ठ संबंध रखने वाले कॉरपोरेट को होगा।
राजन और आचार्य ने पेमेंट बैंक के लिए बैंकिग लाइसेंस हासिल करने के लिए जरूरी बतौर पेमेंट बैंक ऑपरेशन के सर्विस की सीमा को 5 साल से घटाकर 3 साल करने की सिफारिश पर हैरानी जताई है।
गौरतलब है कि शुक्रवार को ही निजी क्षेत्र के बैंकों में मालिकाना हक के गाइडलाइंस और कॉरपोरेट स्ट्रक्चर को लेकर आरबीआई के इंटर्नल वर्किंग ग्रुप ने जो रिपोर्ट सौंपी थी उस रिपोर्ट को आरबीआई ने सार्वजनिक किया था। इस कमिटी ने बैंकिंग रेगुलेशन एक्ट 1949 में संशोधन कर बड़े कॉरपोरेट और इंडस्ट्रियल हाउसेस को बैंकिंग लाइसेंस देने की वकालत की है।
आरबीआई के इंटर्नल वर्किंग ग्रुप ने अपनी रिपोर्ट में बैंक के प्रोमोटर की हिस्सेदारी को मौजूदा 15 फीसदी से बढ़ाकर 26 फीसदी करने और वैसे गैर बैंकिंग फाइनेंस कंपनी (एनबीएफसी) जिनकी पूंजी 50,000 करोड़ रुपये से अधिक है और 10 साल कारोबार में पूरा हो चुका है उनको भी बैंकिंग लाइसेंस देने की वकालत की है।
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