नई दिल्ली: प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) के बांग्लादेश दौरे का आज दूसरा और आखिरी दिन है। पीएम मोदी सबसे पहले जेशोरेश्वरी काली मंदिर पहुंचे जहां उन्होंने पूजा अर्चना की। योशोरेश्वरी काली मंदिर को 51 शक्तिपीठों में से एक माना जाता है। प्रधानमंत्री मोदी ओरकांडी मंदिर में भी पूजा-अर्चना करेंगे। पहला दिन कूटनीतिक लिहाज से अहम था जबकि आज का दिन राजनीतिक संदेश भरा रहने वाला है।
पूजा करने के बाद प्रधानमंत्री ने कहा कि मुझे मां काली के चरण में पूजा करने का सौभाग्य मिला है। हमने कोरोना से उबरने के लिए मां काली से प्रार्थना की। उन्होंने आगे कहा कि मां काली के इस मंदिर में दोनों देशों के श्रद्धालु आते हैं। मंदिर परिसर में कम्युनिटी हॉल की जरूरत है। इसके निर्माण की जिम्मेदारी भारत निभाएगा। उन्होंने कहा कि जब मां काली के लिए यहां मेला लगता है तो दोनों देशों के भक्त यहां आते हैं। एक सामुदायिक हॉल की आवश्यकता है, जो बहुउद्देश्यीय होना चाहिए ताकि जब लोग काली पूजा के दौरान यहां आएं, तो यह उनके लिए उपयोगी हो। यह सामाजिक, धार्मिक और शैक्षिक कार्यक्रमों के लिए भी उपयोगी होना चाहिए। सबसे महत्वपूर्ण बात, यह चक्रवात जैसी आपदाओं के समय सभी के लिए एक आश्रय के रूप में कार्य करना चाहिए। भारत सरकार इसका निर्माण कार्य करेगी। मैं बांग्लादेश सरकार का आभारकरता हूं कि उन्होंने इसके लिए हमें शुभकामनाएं दी है।
जेशोरेश्वरी काली मंदिर (Jeshoreshwari Kali Temple)
यह प्राचीन मंदिर पश्चिम बंगाल सीमा के पास सतखीरा के श्यामनगर उपजिला स्थित इश्वरीपुर गांव में स्थित है। जेशोरेश्वरी काली मंदिर शक्ति देवी को समर्पित है। ‘जेशोरेश्वरी’ नाम का मतलब ‘जेशोर की देवी’ से है। इस मंदिर को भारतीय उपमहाद्वीप में मौजूद शक्ति पीठों में से एक माना जाता है। हिंदू मान्यता के अनुसार यह मंदिर 51 शक्तिपीठों में से एक है, इसलिए इसे हिंदू समुदाय में एक पवित्र स्थल माना जाता है।
माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण अनारी नामक एक ब्राह्मण ने करवाया था। उसने जेशोरेश्वरी पीठ के लिए 100 दरवाजों वाला मंदिर बनाया। हालांकि, निर्माण की असल तारीख के बारे में किसी को जानकारी नहीं है। 13वीं शताब्दी में लक्ष्मण सेन और प्रतापादित्य के शासनकाल के दौरान इस मंदिर में मरम्मत का काम करवाया गया। वहीं, 1971 के बाद मंदिर का ढांचा जरजर हो उठा। अब सिर्फ वास्तविक मंदिर के पिलर ही मौजूद है।
दुनियाभर से हिंदू श्रद्धालु इस मंदिर में दर्शन के लिए पहुंचते हैं। हर शनिवार और मंगलवार को दोपहर के समय पुजारी यहां पूजा-अर्चना करते हैं। 1971 से पहले तक यहां हर रोज पूजा की जाती थी। हर साल काली पूजा के दिन इस मंदिर का रख रखाव करने वाले लोग यहां एक कार्यक्रम का आयोजन करते हैं। मंदिर के प्रांगण में इस दौरान एक मेले का आयोजन किया जाता है।
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