नई दिल्ली: बिहार में ओवैसी की पार्टी की जीत का आंकड़ा भले ही बड़ा नहीं है, लेकिन सियासत में संदेश बहुत अहम होते हैं। सिर्फ़ पांच सीटें जीतने वाले ओवैसी ने जिस तरह से बंगाल में पूरी ताक़त के साथ चुनाव लड़ने का फ़ैसला किया है, उसने मुस्लिम वोटर्स को तीसरा विकल्प दे दिया है। अगर कुछ फीसदी मुस्लिम वोटर्स तीसरे विकल्प को चुनते हैं, तो ओवैसी का खेल बने ना बने, लेकिन टीएमसी और कांग्रेस दोनों का खेल काफ़ी हद तक बिगड़ सकता है।
पश्चिम बंगाल में ओवैसी फैक्टर का चुनावी असर क्या होगा, ये तो अगले साल साफ हो जाएगा। लेकिन उनका चुनावी ऐलान सीधे तौर पर ममता सरकार के वोटबैंक को चुनौती है। बंगाल में मुस्लिम वोटर्स का गणित सरकार बनाने में बहुत अहम भूमिका निभाता है।
बंगाल में ओवैसी और ‘मुस्लिम फैक्टर’
मुस्लिमों के निर्णायक असर वाली लोकसभा सीटों की संख्या 20 है
मुर्शिदाबाद, मालदा, उत्तरी दिनादपुर में मुस्लिमों की आबादी 50% से ज़्यादा है
14 लोकसभा सीटों पर मुस्लिमों की आबादी 30% से ज़्यादा है
असदुद्दीन ओवैसी ने CAA-NRC को लेकर हमेशा खुलकर विरोध किया है
ओवैसी CAA-NRC के मुद्दे पर बंगाल में मुस्लिमों के ध्रुवीकरण की कोशिश करेंगे
वो बांग्लादेशियों की घुसपैठ के मुद्दे पर अक्सर नरम रुख़ अपनाते हैं
वो TMC और कांग्रेस समेत सभी दलों पर मुस्लिम वोटबैंक के शोषण का आरोप लगाते रहे हैं
ओवैसी मुस्लिमों से जुड़े मुद्दों पर बीजेपी के ख़िलाफ़ सबसे मुखर आवाज़ बनने की कोशिश करते हैं। इसलिए, बंगाल में मुस्लिमों के बीच ओवैसी फैक्टर चर्चा का विषय है।
यूं तो बिहार में भी मुस्लिम वोटबैंक पर महागठबंधन ने दांव लगाया था, लेकिन पश्चिम बंगाल में ये वोटबैंक काफ़ी बड़ा है। इतना बड़ा कि किसी भी पार्टी की संपूर्ण जीत-हार में बहुत अहम भूमिका निभाता है। इसलिए जब से ओवैसी ने बिहार के बाद बंगाल के मुसलमानों पर चुनावी दांव लगाने का ऐलान किया है, तब से टीएमसी, कांग्रेस और लेफ्ट समेत सभी दल परेशान हैं।
पश्चिम बंगाल में शून्य से शुरुआत करने वाले असदुद्दीन ओवैसी की पार्टी का कोई व्यक्तिगत जनाधार नहीं है, लेकिन बंगाल के चुनावी खेल में उनका हर कदम टीएमसी, कांग्रेस और लेफ्ट के राजनीतिक हालात को बदलने का काम करेगा। बीजेपी इस बदलाव को साफतौर पर देख रही है।
ओवैसी के ऐलान ने पश्चिम बंगाल की सियासी जंग को काफ़ी दिलचस्प मोड़ दे दिया है। टीएमसी, कांग्रेस और बीजेपी के लिहाज़ से अब तक मुक़ाबला त्रिकोणीय रहता था, लेकिन ओवैसी की एंट्री से ये लड़ाई चार कोण वाली बन गई है। इसमें भी ख़ास बात ये है कि जिन सीटों पर टीएमसी या कांग्रेस की जीत लगभग एकतरफ़ा होती थी, वहां अब उनका रास्ता रोकने के लिए ओवैसी की पार्टी आ गई है।
बंगाल में चुनाव लड़ने के ऐलान के साथ ही ओवैसी और उनकी पार्टी के लोग सक्रिय हो गए हैं। AIMIM की राजनीतिक ज़मीन मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्र हैं। ऐसे में टीएमसी और कांग्रेस के अलावा अब ओवैसी की पार्टी की नज़रें भीं उन 10 ज़िलों पर टिक गई है, जहां मुस्लिम वोटर्स हर चुनाव का नतीजा तय करते हैं।
बंगाल में मुस्लिम फैक्टर
राज्य में कुल 294 विधानसभा सीटें
करीब 90 सीटों पर मुस्लिम वोटर निर्णायक
मुर्शिदाबाद ज़िले में 66% मुस्लिम वोटर्स
मालदा ज़िले में 51% मुस्लिम वोटर्स
दक्षिणी दिनाजपुर में 49% मुस्लिम मतदाता
कूचबिहार ज़िले में 25 मुस्लिम वोटर्स
बीरभूम ज़िले में 37 मुस्लिम वोटर्स
साउथ 24 परगना ज़िले में 35 मुस्लिम मतदाता
दक्षिणी 24 परगना में 25 मुस्लिम वोटर्स
हावड़ा ज़िले में 26 मुस्लिम मतदाता
नदिया ज़िले में 26 मुस्लिम वोटर्स
करीब 16 ज़िलों में 10% से ज़्यादा मुस्लिम वोटर्स हैं
AIMIM ने मुस्लिम बाहुल्य क्षेत्रों में सक्रियता बढ़ाई
बिहार के चुनाव नतीजों ने मुस्लिम वोटर्स के बीच ओवैसी की लोकप्रियता, उनकी सीटें और वोटबैंक को बढ़ाने का काम किया है। बंगाल में यही तस्वीर दोहराई गई, तो वहां मुस्लिम वोटर्स के बंटने का ख़तरा है और इस हालात में सबसे ज़्यादा नुकसान टीएमसी को हो सकता है। इसीलिए, टीएमसी के लोग ओवैसी और उनकी पार्टी की जमकर मुख़ालफत कर रहे हैं।
पश्चिम बंगाल में ओवैसी की एंट्री की ख़बर से इतनी खलबली क्यों?
ममता का ‘मुस्लिम फैक्टर’
2011 विधानसभा चुनाव
मुस्लिम बाहुल्य इलाकों में 30 सीटों पर विजयी
मुस्लिम बाहुल्य सीटों पर 29.3% वोट मिले
2016 विधानसभा चुनाव
ममता पर मुस्लिम वोटर्स का विश्वास बढ़ा
मुस्लिम बहुल इलाकों में 38 सीटें पर जीत मिली
41% मुस्लिम वोट हासिल करने में सफलता
बंगाल में कांग्रेस का मुस्लिम फैक्टर
2011 विधानसभा चुनाव
मुस्लिम बहुल इलाकों में 16 सीटें मिलीं
मुस्लिम बहुल इलाकों में 14.4% वोट मिले
2016 विधानसभा चुनाव
मुस्लिम बहुल इलाकों में 18 सीटें मिलीं
मुस्लिम बहुल इलाकों में 19% वोट मिले
पश्चिम बंगाल में वामपंथी दलों के लिए भी मुस्लिम वोटबैंक अपनी सियासी ज़मीन बचाने के लिए बहुत अहम है।
लेफ्ट का ‘मुस्लिम फैक्टर’
2011 विधानसभा चुनाव
मुस्लिम बहुल इलाकों में 18 सीटें मिलीं
मुस्लिम बहुल इलाकों में 41.7% वोट मिले
2016 विधानसभा चुनाव
मुस्लिम बहुल इलाकों में 8 सीटें मिलीं
मुस्लिम बहुल इलाकों में 24% वोट मिले
बीजेपी को मुस्लिम बहुल सीटों पर 2011 विधानसभा चुनाव में एक भी सीट नहीं मिली थी। मुस्लिम बहुल इलाकों में सिर्फ़ 4.6 प्रतिशत वोट ही मिले थे, लेकिन 2016 विधानसभा चुनाव में बीजेपी ने मुस्लिम बहुल इलाकों में एक सीट जीती और उसका वोट प्रतिशत बढ़कर 9.6 प्रतिशत हो गया यानी मुस्लिमों के बीच बीजेपी की छोटी बढ़त और ओवैसी की एंट्री दोनों ही ममता और कांग्रेस को मुस्लिम वोटबैंक से दूर करेंगे।
ओवैसी और उनकी पार्टी अच्छी तरह जानते हैं कि पश्चिम बंगाल के चुनाव में उनका बहुत कुछ हासिल करना बहुत मुश्क़िल है, लेकिन टीएमसी, कांग्रेस और लेफ्ट के लिए मुश्क़िलें बढ़ाना बहुत आसान। ओवैसी का निशाना भले ही मुस्लिम फैक्टर है, लेकिन उससे घायल तो टीएमसी ही होगी।
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