विजय शंकर: क्या आपने कभी सोचा है कि भारतीय लोकतंत्र को सबसे ज्यादा मजबूती कहां से मिलती है? वो कौन सी ऐसी अदृश्य ताकत है, जो कश्मीर से कन्याकुमारी तक और कच्छ से कामरुप तक को एक किए हुए है? आज दिल्ली के राजपथ पर बुलंद गणतंत्र की आन-बान और शान की भव्य तस्वीर पूरी दुनिया ने दिखी। लेकिन, भारत के साथ ही एक और मुल्क आजाद हुआ था- पाकिस्तान, जहां लोकतंत्र पर हमेशा खतरे के बादल मंडरते रहे हैं, जो कंगाली की कगार पर खड़ा है।
पाकिस्तान में कई बार लोकतांत्रिक सरकारों का फौजी तानाशाहों ने गला घोंट दिया या कठपुलती सरकारें रहीं । ऐसे में सवाल उठता है कि भारत ने लोकतंत्र और गणतंत्र को मजबूत रखने के लिए क्या किया और पाकिस्तान क्या नहीं कर पाया, जिसकी कीमत वहां के करोड़ों लोग चुका रहे हैं ।
संविधान सबसे बड़ी ताकत
भारत की सबसे बड़ी ताकत संविधान है। भारत में सब कुछ संविधान के हिसाब से होता और चलता है । संविधान बनाते समय हिंदुस्तान के नेताओं ने हर तरह के विचारों को आत्मसात किया। ज्यादातर मुद्दों पर मतभेद थे। लेकिन, उन मतभेदों को मनभेद नहीं बनने दिया। हिंदुस्तान की विभिन्नता में एकता का पहला लिटमस टेस्ट संविधान सभा में हुआ, जिससे एक मजबूत लोकतंत्र का ढ़ांचा तैयार हुआ ।
हिंदुस्तान में लोकतंत्र के तीनों स्तंभ विधायिका, कार्यपालिका और न्यायपालिका तेजी से मजबूत हो रहे थे। स्वतंत्र मीडिया भी बुलंद गणतंत्र के लोकतंत्र को मजबूती देने में लगा हुआ था । पंडित नेहरू की अगुवाई में आधुनिक भारत के मंदिर यानी कल-करखाने तेजी से बैठाए जा रहे थे। दूसरी ओर, पाकिस्तान में सत्ता के लिए खींच -तान जारी थी । ऐसे में आवाम और आइन की ओर कोई ध्यान नहीं देना चाहता था ।
मोहम्मद अली जिन्ना के सपनों के पाकिस्तान में संविधान तैयार करने को लेकर कोई तत्परता नहीं दिखाई गयी । वहां 1956 तक जाकर संविधान तैयार हुआ । उससे पहले ही 1954 में पाकिस्तान के गर्वनर जनरल गुलाम मोहम्मद और जस्टिस मुनीर एक खास कानून लॉ ऑफ नेसेसिटी लेकर पहली बार सामने आए, इस कानून से सेना को लोकतांत्रिक सरकार को बर्खास्त करने और हटाने की ताकत मिल गई । करीब 2 साल ही पाकिस्तान में हुकूमत संविधान के मुताबिक चली। 1958 में जनरल अयूब खान ने तख्तापलट कर सत्ता हथिया ली और संविधान को भंग कर दिया ।
1962 में जनरल अयूब खान ने नया संविधान बनवाया । इसे पाकिस्तान के इतिहास में दूसरा संविधान माना जाता है। इसमें इस्लामिक मुल्यों को बरकरार रखा गया । लेकिन, राष्ट्रपति को बहुत ताकतवर बना दिया गया। उसके बाद जनरल याह्या खान ने अपने हिसाब से संविधान में बदलाव करवाया। मतलब पाकिस्तान के हुक्मरान अपनी सहूलियत के हिसाब ने संविधान से खेलते रहे ।
हुक्मरानों की महत्वाकांक्षा और आवाम की अनदेखी की वजह से पाकिस्तान के दो टुकड़े हो गए । बाद में पाकिस्तान के लोगों की नब्ज को टलोटते हुए जुल्फिकार अली भुट्टो से सैन्य तानाशाही के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। टूट चुके पाकिस्तान में फिर से संविधान बनाने की 1971 में कोशिश शुरू हुई। करीब 2 साल बाद पाकिस्तान को तीसरा संविधान मिला, संसदीय व्यवस्था को अपनाया गया। प्रधानमंत्री को सरकार का प्रमुख बनाया गया और ऊर्दू को मुल्क की राष्ट्रीय भाषा ।
बड़ा सच यही है कि कभी पाकिस्तान आइन यानी संविधान के हिसाब से चला ही नहीं । हुक्मरानों ने हमेशा संविधान को अपनी सहूलियत के हिसाब के इस्तेमाल किया, जिससे पाकिस्तान बर्बादी की कगार पर खड़ा है और भारत का मजबूत लोकतंत्र पूरी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित कर रहा है ।
समस्याओं को सुलझाने का अंदाज
भारत ने अपनी क्षेत्रीय, भाषा और दूसरी समस्याओं को संविधान के दायरे में सुलझाने की कोशिश की तो पाकिस्तानी हुक्मरानों ने मुल्क की समस्याओं को सुलझाने के लिए अपने-अपने तरीके आजमाए । इससे पाकिस्तान खंड-खंड होने की कगार पर खड़ा है। उन इलाकों के लोगों ने तो पहले से ही इस्लामाबाद के खिलाफ ऐलान-ए-जंग कर रखा है, जिन पर पाकिस्तान ने अवैध रुप से कब्जा कर रखा है । सिंध हो या बलूचिस्तान चारों ओर बगावत की आग धधक रही है। दरअसल, 60 के दशक में ही पाकिस्तान के बंगाल, सिंध और बलूचिस्तान में भाषा को लेकर बड़ा आंदोलन चल रहा था ।
बात 1962 की है । तब पाकिस्तान की कमान जनरल अयूब खान के हाथों में थी। पश्चिमी पाकिस्तान के स्वात घाटी में कई कबाइली इलाके थे, जिनकी अपनी संस्कृति थी। बलूचिस्तान और पख्तूनिस्तान की आजादी छीन ली गयी । इस्लामाबाद की दादागिरी और भाषा के नाम पर पूर्वी पाकिस्तान (बंगाल) में लोग सड़कों पर उतर गए । पाकिस्तान में सिर्फ पंजाबी मुसलमानों का दबदबा दिख रहा था ।
पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में इस्लामाबाद और रावलपिंडी में बैठे हुक्मरानों के इशारे पर जुल्म शुरू हो गया । बांग्ला भाषी मुसलमानों ने बगावत का झंडा बुलंद कर दिया। भारत ने पूर्वी पाकिस्तान में आजादी और मानवता के नाम पर लड़ाई लड़ी। भारत के खिलाफ पाकिस्तान संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद तक गया । पाकिस्तान को सरेंडर करना पड़ा । बांग्लादेश एक आजाद मुल्क बना। पाकिस्तान टूट गया ।
भाषा से जुड़ी समस्याएं और आंदोलन भारत में भी हो रहे थे । लेकिन, हिंदुस्तान ने उसे बहुत संजीदगी से सुलझाया । लोगों की भावनाओं और भाषा दोनों का ध्यान रखा। इसी वजह से एक सौ तीस करोड़ आबादी वाला भारत मजबूती के साथ खड़ा है । क्योंकि, भाषा से लेकर क्षेत्रीय भावनाओं को संविधान के हिसाब से साधने की लगातार कोशिश हुई है।
निष्पक्ष चुनाव और मजबूत लोकतंत्र
पूरी दुनिया में भारतीय लोकतंत्र के मजबूती दुहाई दी जाती है । यहां के पॉलिटिकल सिस्टम की तारीफ की जाती है । क्योंकि, भारत का पॉलिटिकल सिस्टम आजादी की बात करता है । समानता की बात करता है । निष्पक्ष चुनाव की बात करता है । 1977 में इंदिरा गांधी सत्ता से बेदखल हुईं । लेकिन, दो साल बाद ही वोट के जरिए दोबारा उनकी सत्ता में वापसी हुई । भारतीय लोकतंत्र में सिस्टम सबसे ऊपर है । वहीं, पाकिस्तान में कोई भी सिस्टम को पलट देता है। लेकिन, वहां सेना किसी भी लोकतांत्रिक सरकार को सत्ता से बेदखल कर देती है। पाकिस्तान के जन्म को 73 साल हो गए हैं, जिसमें से वहां 33 साल तो सेना का ही शासन रहा।
भारत में सरकार चुनने और हटाने की असली ताकत लोगों के हाथों में है और सभी ने सत्ता तक पहुंचने के लिए इसी गेटवे को अपनाया है । वहीं, पाकिस्तान में लोगों द्वारा चुनी गयी सरकार को बाइपास करने की स्क्रिप्ट फौज और नौकशाही लिखती रही है। विदेश नीति से लेकर हर बड़े मसले पर पाकिस्तानी फौज का दखल रहता है। यहां तक की पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आईएसआई भी हमेशा किसी का खेल बनाने और बिगाड़ने में व्यस्त रहती है ।
पहले अयूब खाना तख्तापलट कर सत्ता में आए, फिर याह्या खान सत्ता में आए । 1971 की जंग के बाद सत्ता में जुल्फिकार अली भुट्टो आए, उनकी चुनी हुई सरकार का जनरल जिया-उल-हक ने तख्ता पलट दिया । नवाज शरीफ सरकार को जनरल परवेज मुशर्रफ ने बेदखल कर दिया । सत्ता की इस लड़ाई में पाकिस्तान की संस्थाएं लगातार कमजोर होती गयीं, इस प्रवृति ने पाकिस्तान को एक नाकाम राष्ट्र की श्रेणी में खड़ा कर दिया है ।
निष्पक्ष न्यायपालिका
भारत में न्यायपालिका बहुत सक्रिय है और संविधान की संरक्षक यानी कस्टोडियन है। भारत में लोकतंत्र और आजादी के नाम पर न्यायपालिका और सरकारों के बीच कई मौकों पर टकराव भी दिखा। लेकिन, ये भारतीय संविधान की मजबूती है कि न्यायपालिका ने प्रधानमंत्री तक को कोर्ट में बुला दिया और उनका चुनाव रद्द कर दिया । वहीं, पाकिस्तान की न्यायपालिका में पंजाबी मुस्लिमों का वर्चस्व है । न्यायपालिका पर सेना का इतना प्रभाव है कि अपने ही प्रधानमंत्री यानी जुल्फिकार अली भुट्टो को फांसी पर लटकाने का फैसला सुना देती है ।
स्वतंत्र विदेश नीति
आजादी के बाद हिंदुस्तान ने हमेशा अपने पैरों पर खड़े होने वाली नीति को अपनाया, एक ऐसी विदेश नीति बनी, जिस पर राजनीतिक सर्वसम्मति थी । इसके ठीक उलट आजाद पाकिस्तान हथियार और पैसे के लिए हमेशा किसी न किसी का पिछलग्गू बना रहा है । एक जमाने में अमेरिका की गोद में था, अब चीन की गोद में पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान बैठे हुए हैं ।
पाकिस्तानी हुक्मरान हमेशा सत्ता के नशे में भूल गए कि मुल्क लोगों से बनता है। जमीन के टुकड़े से नहीं...सत्ता सहयोग और सरोकार से चलती है- हेकड़ी से नहीं। लेकिन, भारत में समानता के आधार पर लोगों के एक-एक वोट से चुनकर संसद या विधानसभा पहुंचे हुक्मरानों ने कभी वो गलती नहीं की जो पाकिस्तान में हुई।
(लेखक News 24 के डिप्टी एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर हैं और ये उनके निजी विचार हैं)
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