विजय शंकरः दुनिया के जेहन में हमेशा के लिए 2020 की खौफनाक यादें छोड़ गया। दुनिया के हर हिस्से में इस उम्मीद के साथ 2021 का इस्तकबाल हुआ कि शायद नया साल पिछले की तुलना में बेहतर होगा। लोगों को कोरोना महामारी के खौफ से छुटकारा मिल जाएगा, कहा जाता है कि उम्मीद पर दुनिया कायम है, लेकिन एक बड़ा सच ये भी है कि आनेवाला समय हमेशा अपने साथ सुनहरे सपने और पहाड़ जैसी चुनौतियां लेकर आता है। ऐसे में सवाल उठता है कि 2021 की चुनौतियां क्या हैं? सरकार, समाज और सिस्टम उन चुनौतियों से कैसे निपटेगा?
हजार ख्वाहिशें और सीमित संसाधन
एक फरवरी को देश का आम बजट आनेवाला है। बजट निर्माण की प्रक्रिया लगातार जारी है। वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण को हाल में आए अर्थव्यवस्था से जुड़े आंकड़ों से थोड़ा सुकून जरुर मिला होगा। लेकिन, 2020 में कोरोना के खौफ के बीच लॉकडाउन लगाना पड़ा, जिससे अर्थव्यवस्था को तगड़ा झटका लगा।
लॉकडाउन की वजह से सरकार को करीब 30 लाख करोड़ रुपये के राहत पैकेज का ऐलान करना पड़ा, जिससे सरकार पर बड़ा अतिरिक्त बोझ पड़ा। निर्मला सीतारमण अच्छी तरह जानती हैं कि कोरोना के साए के बीच 2021 में सरकार की आदमनी कम रहने की आशंका है तो अर्थव्यवस्था को पटरी पर लाने और अहम सेक्टर्स को गति देने के लिए ज्यादा खर्च करने पड़ेंगे।
विनिवेश से पैसा जुटाने की तैयारी
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने पहली बड़ी चुनौती वित्त वर्ष 2021.22 के लिए ज्यादा से ज्यादा पैसा जुटाने की है। ऐसे में सरकार की योजना सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनियों के विनिवेश के जरिए करीब 2 लाख करोड़ रुपये जुटाने की है। मोदी सरकार 25 से अधिक कंपनियों के विनिवेश को मंजूरी दे चुकी है।
पैसा जुटाने का विकल्प चुनेगी सरकार
सरकार के पास एक विकल्प लंबी अवधि के लिए कोरोना बॉन्ड जारी करने का है। कोरोना बॉन्ड खरीदने के लिए प्रोत्साहित करने के लिए सरकार को कुछ खास छूट भी देनी चाहिए।
इससे वो कारोबारी अपना पैसा कोरोना बॉड में लगा सकेंगे, जो जोखिम को देखते हुए अपना पैसा बाजार में नहीं लगा रहे हैं। लॉकडाउन में सामान्य मिडिल क्लास के पास खर्च के लिए ज्यादा मौके नहीं रहे, ऐसे में कुछ आंकड़े बचत की ओर इशारा कर रहे हैं। सरकार कोरोना बॉन्ड में मिडिल क्लास की बचत को देश अर्थव्यवस्था को गति देने में इस्तेमाल कर सकती है।
ज्यादा निवेश से लाइन पर आएगी अर्थव्यवस्था
देश की अर्थव्यवस्था का पाहिया तब तक रफ्तार नहीं पकड़ सकता है, जब तक की बड़े पैमाने पर निवेश नहीं आता है। निवेश के लिए जरूरी है, कारोबारी घरानों का देश की अर्थव्यवस्था और आर्थिक नीतियों में भरोसा मजबूत होना। ऐसे में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण अपने बजट भाषण में देशी विदेशी निवेशकों को लुभाने के लिए कुछ बड़े ऐलान कर सकती हैं।
सरकार के लिए एक अच्छी खबर जीएसटी के मोर्चे से भी आई। जीएसटी लागू होने के बाद पहली बार एक लाख पंद्रह हजार करोड़ रुपये की वसूली हुई है। अक्टूबर और नवंबर में भी ये आंकड़ा एक लाख करोड़ के निशान को पार कर गया। वहीं, अप्रैल 2020 में जीएसटी क्लेक्शन गिर कर 32 172 करोड़ रुपये पर पहुंच गया था। आज की तारीख में लगातार सरकार उन विकल्पों पर गुना भाग कर रही है, जिससे ज्यादा से ज्यादा पैसा जुटाया जा सके।
आम आदमी की बजट से उम्मीदें
कोरोना काल में लॉकडाउन ने जिंदगी का तौर तरीका बदल दिया । फिक्की के मुताबिक 53 प्रतिशत कारोबार प्रभावित हुए । छोटी.छोटी फैक्ट्रियों के शटर धड़ाधड़ गिरे। लॉकडाउन ने सर्विस सेक्टर के बड़े हिस्से को आईसीयू में पहुंचा दिया।
अब धीरे धीरे हालात सुधरने के संकेत मिलने लगे हैं । ऐसे में छोटी और मझोली कंपनियों के साथ साथ सामान्य मिडिल क्लास का नौकरीपेशा आदमी भी बड़ी उम्मीदों के साथ बजट का इंतजार कर रहा है।
देश की अर्थव्यवस्था के गति और बड़े पैमाने पर रोजगार देने में अहम किरदार निभानेवाले एमएसएमई सेक्टर की कंपनियां चाहती हैं कि कच्चे माल पर इम्पोर्ट ड्यूटी में राहत मिले यानी टैक्स का बोझ थोड़ा कम किया जाए। मैन्यूफैक्चरिंग सेक्टर की बड़ी कंपनियां भी सरकार से और राहत की उम्मीद संजोए हुए हैं।
कोरोना की वजह से घरेलू बजट में सैनिटाइजर और मॉस्क जरुरी हो गए हैं। प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए सेहत को लेकर जागरुकता बढ़ने से मेडिकल कॉस्ट में इजाफा हुआ है। ऐसे में लोगों की ख्वाहिश है कि सरकार बजट में इस खर्चे को स्टैंडर्ड डिडक्शन का हिस्सा मानते हुए पहले से तय स्टैंडर्ड डिडक्शन की राशि को बढ़ा कर डबल कर दे।
कोरोना वायरस के दौर में वर्क फ्रॉम होम कल्चर अब सामान्य जीवन का हिस्सा बन चुका है। ऐसे में लोगों का इंफ्रास्ट्रक्चर यानी इंटरनेटए मोबाइल और बिजली का खर्च बढ़ा है। लोग चाहते हैं कि सरकार बजट में टैक्स छूट तो बढ़ाए ही साथ ही वर्क फ्रॉम होम से आए इंफ्रास्ट्रक्चर कॉस्ट में बढ़ोत्तरी को देखते हुए छूट की सीमा बढ़ाए। एक फरवरी को पेश होनेवाले बजट का इंतजार देश के करोड़ों बेरोजगार भी कर रहे हैंए जिनकी कोरोनाकाल में नौकरियां चली गई।
वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण के सामने एक ऐसा बजट तैयार करने की चुनौती हैए जिससे हिंदुस्तान के एक अरब तीस करोड़ लोगों को महसूस हो कि सरकार उनके साथ हर कदम पर खड़ी है। वित्त मंत्री के सामने एक ओर जहां कारोबारी, किसान, नौकरीपेशा और बेरोजगारों को साधने की चुनौती है तो दूसरी ओर देश के खजाने पर पड़ रहे अतिरिक्त बोझ को कम करने की।
निर्मला सीतारमण के दिमाग में ये बात भी जरूर होगी कि कोरोना की चुनौतियों के बीच दुनिया में सप्लाई चेन का समीकरण तेजी से बदला है । नए साल में भारत के सामने चुनौतियां भी हैं और अवसर भी। ख्वाहिशों की कोई सीमा नहीं पर वहीं ख्वाहिशें एक खूबसूरत अंजाम तक पहुंची हैंए जिन्हें हासिल करने के लिए पूरी शिद्दत के साथ संघर्ष किया जाता है ।
(लेखक डिप्टी एग्जीक्यूटिव प्रोड्यूसर हैं और ये उनके निजी विचार हैं)
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