के.जे.श्रीवत्सन, जयपुर: राजस्थान में सरकारी अफसरों की इंसानियत को कुएं में दफन करने का दिल दहला देने वाला मामला सामने आया है। दरअसल 27 सितम्बर से एक श्रमिक मिट्टी धंसने के चलते कुएं में गिर गया था, लेकिन आज 15 दिन बाद भी उसे केवल इसलिए नहीं निकाला जा पा रहा है, क्योंकि इसके लिए सरकार के पास बजट नहीं है। और तो और अब कुएं को ही इस श्रमिक की कब्र मानकर प्रसाशन मुआवजे का आश्वासन देकर राहत कार्यों को बंद कर चुका है। लोगों की भीड़ और चल रहा राहत का काम ऊपर से सबके चेहरे पर चिंता की रेखाएं .. यह बताने के लिए काफी है कि पिछले दिनों से लगातार चल रही कोशिशों के बावजूद भी किसी को एक शख्स की जान बचाने में कोई सफलता नहीं मिल रही है।
हालांकि शुरू के एक दो दिन तक इस 80 फीट गहरे कुएं में गिरने वाले शख्स की कुछ हलचल महसूस की जा रही थी लेकिन जब तक उसे बचाने का काम शुरू हो पाता, शायद तब तक बहुत देर हो चुकी थी। नतीजा सुमेरपुर जिले के शिवगंज के मूपाराम मीणा की देह अब हमेशा के लिए कानपुरा के इसी कुएं में मानों दफन हो गई है। होती भी क्यों ना! राहत और बचाव के अधूरे संसाधनों के चलते प्रशासन शव को कुएं से इतने दिनों बाद भी निकाल ही नहीं पाया है। मृतक के भाई के अनुसार उसका भाई कुआं खोदने गया था, मिट्टी ढहने से उसमें दब गया, बाद में बताया गया की उसकी मौत हो गई, लेकिन शव को नहीं निकाला जा सका है। ऐसे में अब कुएं को ही मृतक की कब्र मान लिया है।
मृतक के भाई दुदाराम का कहना है कि प्रशासन की ओर से मदद नहीं की जा रही है। तीन दिन हो गए सभी राहत के काम बंद हो गए हैं, किस हालत में है वो अन्दर यह भी हमें सही तरीके से नहीं पता है एक बूंद मिटटी भी नहीं निकाली गई है। सिर्फ आश्वासन ही दिया जा रहा है। राहत का यदि यहां पर कोई काम चल रहा होता तो वह दिखता, लेकिन आप खुद ही देख लीजिये सभी मशीनें तो बंद ही पड़ी है।
सुमेरपुर के शिवगंज के कानपुरा गांव में कुएं के पक्के निर्माण के दौरान मिट्टी धंसने से श्रमिक मूपाराम अन्दर गिर गया था, सूचना मिलने पर अंदर दबे शव को निकालने के लिए 5 दिन तक दिन के उजाले में प्रयास करने के बाद अब अफसरों ने हाथ खड़े कर लिए। इस दौरान फटी आंखों से दिन-रात परिजन कुएं के पास ही बैठकर मूपाराम के अंतिम दर्शन व सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार के लिए ताकते रहे। जब कुएं में गिरे मूपाराम के जिन्दा बचाने की कोई संभावना नहीं दिखाई दी तो प्रशासन ने हाथ खड़े करते हुए मृतक के परिजनों को सरकारी मुआवजा दिलाने का कहते हुए उनसे लिखित में रजामंदी करवा दी।
मामला 27 सितम्बर का है जब कुछ लोग इस कुएं की खुदाई कर रहे थे, तभी दो लोग अन्दर गिर गए जिसमें से एक तो किसी तरह रस्सी पकड़ कर बाहर आ गया, लेकिन दूसरा श्रमिक अभी तक अन्दर ही धंसा हुआ है। राहत कार्य शुरू हुए, लेकिन उसकी रफ्तार इतनी धीमे हो गई है कि दिन बीत गए लेकिन कुएं में गिरे श्रमिक का आज तक कोई पता नहीं चल सका। अब प्रशासन का मानना है की कुएं में गिरे शख्स के जान बचने की संभावना बिल्कुल भी नहीं है। ऐसे में उसे निकालने के लिए किसी जिन्दा शख्स की जान को खतरे में नहीं डाला जा सकता। ऊपर से इस पर आने वाला खर्चा का बजट भी अभी पास ही नहीं हुआ है। शव को बाहर निकालने के लिए प्रयास किए गए। एसडीआरएफ की टीम तथा भीलवाड़ा से एक्सपर्ट को बुलाया गया, मगर कामयाबी नहीं मिली।
कलेक्टर पाली अंशदीप का कहना है कि परिजन पूरी प्रक्रिया में हमारे साथ थे। सभी लोग भी देख रहे थे, उस वक्त बताना चाहिए, उनके पास यदि कोई समाधान है तो बताना चाहिए। प्रसाशन के तौर हमारी जिम्मेदारी है कि किसी एक शव को निकालने के चक्कर में हम जीवित आदमी की जान नहीं गंवा सकते। यदि वे बता सकते हैं कि प्रेक्टिकली कोई तरीका है तो बताएं प्रशासन उसे करने के लिए तैयार है, लेकिन यही बिंदु बड़ा रहेगा की जो राहत बचाव कार्य में लगा है उसकी जिंदगी खतरे में ना आ जाए।
कहा यह भी जा रहा है की केवल 5 लाख रूपये का बजट के इंतजार में कुवे से लाश निकलने के काम में देरी हो रही है क्योंकि लोहे के फारमे बनाकर उसमें रेत भरकर शव को निकाले जाने का काम शुरू होना है। लेकिन सरकारी दफ्तरों में फाईल की मंजूरी की रफ्तार किसी की जान के आगे कुछ भी नहीं है। जब फाईल को मंजूरी मिलेगी तो ही कलेक्टर साहब के आदेश के बाद शव को निकालने का काम आगे शुरू हो पाएगा। हैरत की बात तो यह है कि 5 दिन के ऑपरेशन के दौरान जमींदोज हुए एक इंसान को जिंदा या मृत बाहर निकालने के लिए कलेक्टर भी मौके पर करीब 6 दिनों बाद ही पहुंचे।
इस दौरान पांच दिन तक मृतक का पूरा परिवार मूपाराम मीणा के अंतिम दर्शन व सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार के लिए बिलखता रहा, प्रशासन के शव निकालने में हाथ ऊंचे करने के बाद अब उनका धैर्य भी टूटा। परिवार वाले भी बेबस हो गए, अब उनको आंसुओं और उसकी तस्वीर के अलावा मूपाराम की स्मृतियों के अलावा कुछ भी नहीं बचा।
इस पूरे मामले में बड़ा सवाल यह है कि जब 200 फीट गहरे बोरवेल से किसी को निकाला जा सकता है तो 80 फीट गहरे कुएं से प्रशासन कैसे हार मान सकता है? वैसे प्रशासन का यह भी कहना है कि अभी उसने पूरी तरफ से हिम्मत नहीं हारी है, लेकिन एसा कोई तरीका उसे नहीं सूझ रहा है कि वह अपने राहत अभियान को आगे बढ़ा सके।
कलक्टर का कहना है कि जब यह मामला सामने आया था तब हमने अपने स्तर पर लोगों को कुएं के अन्दर जेसीबी मशीनों की सहायता से भेजकर काम किया था, राजसमन्द और भीलवाड़ा से भी इंजीनियर्स को बुलाया। टेंकर को काटकर डाला भी था सब कुछ करके देख लिया गया उसके बाद भी वह अनसेफ मिला तो एक कमिटी बनाई। दो दिन पहले टीम को भेजा गया तो एक्सईएन साहब ने विडियोग्राफी कराई। यह कुआं 60 फीट नीचे हैं, इसके नीचे नदी भी चल रही है। यदि किसी को भी अन्दर भेजा जाता है तो उसकी जान खतरे में आ जाएगी। कुआं कभी भी गिर सकता है। बस यही पता चल रहा है की आज की तारीख में यदि किसी को कुएं के अन्दर उतारते हैं तो उसकी जान ही खतरे में आ जाएगी। इसीलिए काम को रोके हुआ है।
Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 and Download our - News24 Android App. Follow News24 on Facebook, Telegram, Google News.