दयाकृष्ण चौहान, नई दिल्ली: देश के करीब 4 राज्यों में पहले से ही किसानों के लिए ओपन मार्केट खुला हुआ है, जहां पर वह APMC होने के बावजूद अपनी फसल को बेच सकते हैं। इनमें महाराष्ट्र, कनार्टक, दिल्ली और बिहार शामिल हैं। सबसे दिलचस्प बात यह है कि बिहार में साल 2006 में ही APMC को खत्म कर दिया था, लेकिन आपको वहां भी केंद्र सरकार के बनाए गए कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन दिखाई पड़ जाएगा।
2003 में अटल सरकार ने कृषि कानूनों में रिफॉर्म करने की तरफ कदम बढ़ाया था। अटल जी को लग गया था कि ऐसे बात नहीं बनेगी, लेकिन उनके पास इतना बड़ा क्रांतिकारी कदम उठाने के लिए बहुमत नहीं था। इसके लिए उन्होंने राज्यों से निवेदन किया और 2003 में मॉडल APMC एक्ट बनाया और सभी राज्यों को बनाया। इसमें कहा गया था कि आप अपना APMC इस तरह से डिजाइन करो और किसानों को छूट दो। इसमें यह भी कहा गया कि कम से कम फल और सब्जियों को APMC से मुक्त कर दिया जाना चाहिए, ताकि किसानों को आजादी मिलना शुरू हो जाए। अटल बिहारी वाजपेयी के इस निवेदन का असर यह हुआ कि 2015-16 तक आते-आते करीब 15 राज्यों ने इस बात को मान लिया।
दिल्ली:
दिल्ली में सब्जियों और फलों को APMC से मुक्त कर दिया और किसान मंडी आ गई, जहां पर किसान सीधे जाकर बेच सकता था।
कर्नाटक:
इसके साथ ही कनार्टक ने काफी हद तक कंप्टीशन खड़ा कर दिया और रायतु बाजार शुरू किया। इस बाजार में छोटे पैमाने पर किसान सीधे उपभोक्ताओं को बेच सकते हैं, जिससे बिचौलियों का सफाया हो सकता है, जो किसानों और उपभोक्ताओं दोनों का समान रूप से शोषण कर रहे थे। किसान यार्ड पर उगाई गई सब्जियां सीधे उपभोक्ता तक पहुंचा रहे हैं। इस सीधी बिक्री से किसान को बेहतर कीमत मिली। इसने अन्य सब्जी मंडियों और विक्रेताओं में कीमतों को कम करने में मदद की है।
महाराष्ट्र:
1: यहां पर विलास राव देशमुख की सरकार ने APMC के समांतर प्राइवेट मार्किट लाइसेंस निकाला। उसके लिए कुछ शर्ते थी और हर साल राज्य सरकार से इसका लाइसेंस रिन्यू कराना पड़ता है। अभी तक महाराष्ट्र में 18 प्राइवेट लाइसेंस हैं।
2: डायरेक्ट मार्किट लाइसेंस: इसका मतलब यह है कि कुछ ऐसे खरीददार जो चाहते हैं कि हम सीधे किसान से खरीदे। हम APMC और प्राइवेट मार्किट में भी नहीं जाएंगे। उदाहरण के लिए बिग एप्पल और रिलाइंस फ्रैश कंपनी। महाराष्ट्र सरकार ने अब तक करीब 1100 कंपनियों को यह लाइसेंस दिए हैं।
इन कंपनियों ने किसानों के खेतों के करीब अपने स्टोरेज खोले हुए हैं और किसान सीधे यहां पर आकर अपनी फसल बेच सकता है। हालांकि जब यह सिस्टम यहां पर आया तो वहां भी यह शोर मचा कि इससे APMC खत्म हो जाएगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ।
परिणाम के तौर पर देखें तो पिछले साल APMC का ट्रांजेक्शन 48 हजार करोड़ रुपये था, जबकि प्राइवेट मार्किट और डायरेक्ट मार्किट लाइसेंस से 11 हजार करोड़ रुपये हुआ, कुल मिलाकर APMC का 22 फीसदी। यहां पर अभी भी 75 फीसदी काम APMC के माध्यम पर हो रहा है, लेकिन वहां पर ओपन मार्किट भी खुला है।
बिहार:
यहां पर समस्या थी कि जो APMC के पास फसल लेकर जाता था तो कुछ चीजे MSP पर मिल जाती है।
उदाहरण के लिए इस साल गेंहू का 20 रुपये किलो है तो उसको 100 किलो गेंहू का दाम 2000 रुपये मिलेंगे। लेकिन यहां पर समस्या यह आती है कि किसानों को APMC तक ले जाने के लिए ट्रांसपोर्ट का खर्चा उठाना पड़ेगा। अगर आपकी फसल कम हैं तो अनुपात बहुत ज्यादा हो जाएगा और फसल ज्यादा है तो खर्च का अनुपात बहुत कम हो जाएगा। इसके साथ ही यहां पर फीस और सेस मिलकर 5 फीसदी देना पड़ता है और कमीश्न 3 फीसदी देना पड़ता है। इसमें अगर हम ट्रांसपोर्ट को करीब 5 फीसदी खर्च के रूप में मानकर चले तो करीब किसान को 10 से 15 फीसदी खर्च करके अपना माल APMC में बेचना पड़ता है।
इसके साथ ही APMC में लिखा है कि आपको पैसा साथ-साथ मिलेगा, लेकिन बिहार के किसानों की केस इस्टडी कहती है कि इसमें 3 से 4 महीने का समय भी लग जाते हैं।
वहीं अगर मान लिजिए कि किसान 2000 रुपये का माल बेचने के लिए यहां पर गया तो 13 फीसदी से उसके 260 रुपये तो वैसे कम मिले और वह भी 3-4 महीने बाद।
आपको यह भी पता होना चाहिए कि हमारे देश में सिर्फ 6 फीसदी किसान ही MSP पर फसल बेच पाते हैं, जबकि 96 फीसदी किसान अपने आस-पास फसल बेचते हैं और वह किसान फिर उसको लेकर APMC में जाते हैं।
ऐसे में लोगों के पास दो विकल्प होते हैं:
1: वह अपनी फसल को लेकर APMC में जाए और करीब 2000 रुपये पर 260 रुपये कमीश्न देकर 1740 रुपये का भुगतान पाए। हालांकि इस पैसे के आने में समय लग सकता है।
2: किसानों के पास कुछ ऐसे एजेंट आएंगे जो उनके पास आएंगे और कहेंगे कि आप APMC में जाकर 1740 रुपये में फसल बेचेंगे, लेकिन पेमेंट आने में समय लगेगा। इससे सही है कि हम आपको 1600 रुपये कैश देते हैं और आप अपनी फसल हमको बेच दो।
ऐसे में बहुत से छोटे किसानों को दूसरा विकल्प काफी सही लगता है, क्योंकि उनकी फसल कटी और खेत से ही बिक गई। इसके साथ ही उनको पैसा भी कैश मिल गया।
बिहार में खत्म हैं APMC
बिहार में 2006 में ही APMC को खत्म कर दिया था और वहां पर कोई क्रांति भी नहीं हुई। अधिकांश किसानों को वहां पर APMC का पता नहीं चला। इसके साथ ही अगर यह कहा जाए कि देश में बहुत से किसानों को MSP का मतलब भी नहीं पता है।
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