प्रभाकर मिश्रा, नई दिल्ली: लोन मोरोटोरियम मामले में सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार की 2 करोड़ तक के ऋण पर ब्याज माफी पर सरकार की तरफ से एक महीने के समय वाली याचिका को खारिज कर दिया। सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि जब सरकार पहले ही निर्णय ले चुकी है, तो इसे लागू करने में इतना समय क्यों लगना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार से कहा कि दो करोड़ तक के लोन पर ब्याज पर ब्याज की छूट जल्दी से जल्दी लागू किया जाए। जस्टिस अशोक भूषण, आर सुभाष रेड्डी और एमआर शाह की तीन जजों की बेंच ने बुधवार को कहा कि सरकार को इसे लागू करने में देरी नहीं करनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट की पीठ ने कहा, "हम आम लोग चिंतित हैं। हम 2 करोड़ तक के ऋण वाले लोगों को लेकर चिंतित हैं।''
सॉलिसिटर जनरल ने कहा कि इसे 15 नवंबर तक लागू कर दिया जाएगा। तो अदालत ने कहा, "जब आपने निर्णय ले लिया है तो एक महीने के लिए देरी क्यों हो रही है?"
वहीं इस मामले में बैंक असोसिएशन की तरफ से हरीश साल्वे ने कहा कि यह किया जा रहा है और बैंक इस सीमा का पालन करेगी। जो भी सरकार कह रही है उसका पालन किया जाएगा।
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह लोन पर ब्याज पर ब्याज की छूट का फैसला जल्द ले और इस बाबत सर्कुलर जारी करे। अदालत ने कहा कि आम आदमी की दिवाली अब सरकार के हाथों में है। इसके साथ ही सुनवाई दो नवंबर के लिए टाल दी गई।
केंद्र सरकार ने 3 अक्टूबर को सुप्रीम कोर्ट में कहा
3 अक्टूबर को केंद्र सरकार ने कहा कि वह अगस्त के अंत तक छह महीने के लिए 2 करोड़ तक के ऋण पर 'ब्याज पर ब्याज' देगी। सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि बैंक ब्याज पर छूट देंगे और फिर सरकार द्वारा मुआवजा दिया जाएगा और गणना के अलग-अलग तरीके होंगे। हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि बैंक हमें एक उचित प्रारूप प्रदान करे।
आरबीआई ने मार्च में तीन महीने के लिए लोन जमा की अदायगी को टालने की घोषणा की थी, जिसे बाद में इसे 31 अगस्त तक बढ़ा दिया गया था। इस कदम का मकसद कर्जदारों को COVID-19 महामारी के दौरान राहत प्रदान करना था और उन्हें अपने भुगतान को मंजूरी देने के लिए और समय देने की उम्मीद थी।
3 सितंबर को शीर्ष अदालत ने एक अंतरिम निर्देश पारित किया कि 31 अगस्त को एनपीए घोषित नहीं किए गए खातों को अगले आदेश तक एनपीए घोषित नहीं किया जाएगा। मार्च में भारतीय रिज़र्व बैंक ने 1 मार्च से 31 मई के बीच अवधि के अन्य ऋणों पर तीन महीने की मोहलत दी थी, बाद में इसे 31 अगस्त तक बढ़ा दिया गया था।
10 अक्टूबर को भारतीय रिज़र्व बैंक ने सर्वोच्च न्यायालय को सूचित किया कि यदि एनपीए खाता वर्गीकरण पर रोक तुरंत नहीं हटाई जाती है, तो यह आरबीआई के नियामक आदेश को कम करने के अलावा बैंकिंग प्रणाली के लिए बहुत बड़ा प्रभाव पड़ेगा।
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