पंकज मिश्रा, नई दिल्ली: राष्ट्रपिता महात्मा गांधी साथ-साथ आज देश अपने दूसरे प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री की भी जयंती बना रहा है। 2 अक्टूबर को देश की दो महान विभूतियों ने जन्म लिया था। एक को हम अहिंसा के पुजारी यानी की महात्मा गांधी के तौर पर जानते हैं तो दूसरे को ‘जय जवान जय किसान’ की अलख जगाने वाले पूर्व पीएम लाल बहादुर शास्त्री के नाम से जानते हैं। आज लाल बहादुर शास्त्री की 116वीं जयंती है।
उत्तर प्रदेश के मुगलसराय में 2 अक्टूबर 1904 लाल बहादुर शास्त्री का जन्म हुआ था। आज भी लोग उनकी उनकी सादगी और विनम्रता की चर्चा करते हैं। इसके साथ ही 1965 के भारत-पाक युद्ध के दौरान दिया गया 'जय जवान जय किसान' का उनका नारा आज के दौर में प्रासंगिक है। तब की पाकिस्तान से जंग में वह डटकर सेना के साथ खड़े हुए और देश के लोगों का भरोसा जीता। उनके कहने पर देश के लोगों ने एक समय का अन्न तक त्याग दिया था। इस युद्ध में भारतीय फौजों ने पाक सेना को घुटनों पर ला दिया था।
आज से तकरीबन 55 साल पहले पाकिस्तान को जो मुगालता था शायद वही मुगालता अभी तक है। 55 साल पहले छोटी कद काठी वाले प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को उदार छवि वाला नेता माना जाता था। इस उदार छवि वाले की इच्छा शक्ति इतनी मजबूत थी कि अमेरिका, चीन और यूरोपीय यूनियन के समर्थन वाले पाकिस्तानी राष्ट्रपति और सेना अध्यक्ष अय्यूब खां को भारत से युद्ध छेड़ कर मुंह की खानी पड़ी थी।
1962 के चीन से हुए युद्ध के बाद भारत अपने जख्म भरने पर लगा हुआ था। अय्यूब खां को यह उम्मीद नहीं थी कि लालबहादुर शास्त्री पाकिस्तानी हमले का जवाब भी दे पायेंगे। जनरल अय्यूब खां को लगा कि इसी वक्त कश्मीरियों को बरगला कर और कश्मीरियों के वेश में सैनिकों की घुसपैठ कराकर वो भारत से कश्मीर को छीन लेंगे।
पाकिस्तान आज भी घुसपैठियों को भेजकर भारत के सैनिक ठिकानों पर हमला करवाता है, ठीक वैसे जैसे 52-53 साल पहले अय्यूब खां करवाते थे। अय्यूब खां ने फौज के 30 हजार पाकिस्तानी सैनिकों को कश्मीरियों की वेश-भूषा में कश्मीर में भेज दिया, लेकिन भारतीय जांबाजों ने उन सब को धकेलते, रौंदते हुए हाजी पीर दर्रा तक कब्जा कर लिया था। 1965 में पश्चिमी मोर्चे पर पाकिस्तानी फौज भारी पड़ रही थी। खेमकरन तक उसका कब्जा हो चुका था।
ऐसे वक्त पाकिस्तान को कमजोर करने के लिए पंजाब फ्रंट खोलना जरूरी था। तत्कालीन भारतीय सेना अध्यक्ष जेएन चौधरी पंजाब फ्रंट नहीं खोलना चाहते थे। लेकिन, लालबहादुर शास्त्री की जिद आगे जनरल चौधरी ने फौज को हमले का आदेश दे ही दिया। नतीजा भारत के पक्ष में था। भारतीय फौजें लाहौर तक पहुंच गईं। पाकिस्तान के सामने सरैंडर के सिवाए दूसरा रास्ता न था।
ठीक उसी वक्त दुनिया की एक बड़ी ताकत ने प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री के विश्वास को ठगा। उसने लाहौर से अपने नागरिकों को निकालने और पाकिस्तानी नागरिकों को सेफ पैसेज देने के लिए 24 घंटे तक युद्ध रोकने का आग्रह किया। तब तक दुनिया के तमाम बड़े मुल्क युद्ध रुकवाने में लग गये और शास्त्री जी को युद्ध विराम के प्रस्ताव को मानना पड़ा।
उस समय पाकिस्तान की जल-थल और वायु सेना के मुकाबले भारत की सेना के मुकावले इक्कीस थी। पाकिस्तान के पास उस समय का सबसे उन्नत जल-थल और वायु बेड़ा था। जबकि भारत के पास द्वितीय विश्वयुद्धके जमाने के हथियार थे। फिर भी, लाल बहादुर शास्त्री के मजबूत मनोबल और सेना की बहादुरी से भारत ने पाकिस्तान को पीछे हटने पर मजबूर कर दिया था।
पाकिस्तान की अधिकांश सैन्य क्षमता ध्वस्त हो गयी थी। जबकि भारत का सिर्फ 14 फीसदी हिस्सा भी उपयोग में नहीं आया था। 1965 के मुकाबले, आज सैन्य संतुलन भारत के पक्ष में है। अंतर्राष्ट्रीय राजनीति और कूटनीति में भारत के मुकाबले पाकिस्तान से कहीं टिकता नजर ही नहीं आता।
1965 का अमेरिका आज भारत के साथ है। रूस भारत के साथ है। यूरोप के अधिकांश देश भारत के साथ हैं। यहां तक कि सऊदी अरब और अन्य अरब देश और ईरान भारत के साथ हैं। पाकिस्तान के साथ आज सिर्फ चीन है। बाकी लोग उससे छिटक चुके हैं।
इन परिस्थितियों में युद्ध होता है भी तो भारत हर तरह से पाकिस्तान से इक्सीस नहीं है बल्कि 200 फीसदी भारी है। और अब, उदार छवि वाले लाल बहादर शास्त्री नहीं, ईंट का जवाब पत्थर से देने की क्षमता रखने वाले नरेंद्र मोदी हैं।
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