प्रशांत देव, नई दिल्ली : कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का आज 32वां दिन है। कड़ाके की सर्दी और गिरते पारे के साथ-साथ कोरोना के खतरों के बीच 26 नवंबर से बड़ी तादाद में किसान दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर डटे हैं। लेकिन किसान और सरकार के बीच अबतक इस मसले पर अबतक कोई सहमति नहीं बन पाई है। बड़ी तादाद में प्रदर्शनकारी किसान सिंधु, टिकरी, पलवल, गाजीपुर सहित कई बॉर्डर पर डटे हुए हैं। इस आंदोलन की वजह से दिल्ली की कई सीमाएं सील हैं।
इस बीच अच्छी खबर ये है कि एकबार फिर किसान संगठनों और सरकार के बीच 29 दिसंबर को सुबह 11 बजे अगले दौर की बातचीत हो सकती है। जिसमें कुछ हल निकलने की उम्मीद है।
स्वराज इंडिया के अध्यक्ष योगेंद्र यादव ने कहा है कि हम संयुक्त किसान मोर्चा की ओर से सभी संगठनों से बातचीत कर ये प्रस्ताव रख रहे हैं कि किसानों के प्रतिनिधियों और भारत सरकार के बीच अगली बैठक 29 दिसंबर 2020 को सुबह 11 बजे आयोजित की जाए।
वहीं गृहमंत्री अमित शाह ने शनिवार को एकबार फिर किसानों से अपनी अपील दोहराई। उन्होंने आंदोलनकारी किसानों से उनकी चिंताओं को सुलझाने के लिए सरकार के साथ बातचीत करने का अनुरोध किया।
फिलहाल मसले का कोई समाधान निकलता नहीं दिख रहा है। सरकार और किसानों के बीच बातचीत भी हुई लेकिन तमाम कोशिशें बेनतीजा रहीं। किसान तीन नए कृषि कानूनों को पूरी तरह हटाने की मांग कर रहे हैं। सरकार कानूनों को हटाने की जगह उनमें संशोधन करने की बात कह रही है। जिद पर अड़े किसान संगठन कानून वापसी से कम पर मानने को तैयार नहीं हैं। वे सरकार के साथ वार्ता तक को तैयार नहीं हो रहे हैं।
किसानों अरियल रुख का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सरकार को छठे दौर की बातचीत के न्यौते के बावजूद किसान संगठन अबतक तैयार नहीं हुए है। किसान संगठन कृषि कानूनों को रद करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी देने की मांग से नीचे आने को तैयार नहीं हैं। सरकार के प्रस्तावों को उन्होंने पहले ही गुमराह करने की चाल बताकर खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा, 'हम वार्ता को तैयार हैं, लेकिन इसके लिए सरकार की ओर से कुछ ठोस प्रस्ताव तो आए।'
किसानों के इस अडि़यल रवैये से वार्ता में गतिरोध बने रहने की आशंका और बढ़ गई है। वहीं कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एकबार फिर कहा है कि किसी भी आंदोलन का समाधान तो वार्ता की मेज से ही निकल सकता है। बातचीत के लिए किसी शर्त का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा कि 'कृषि क्षेत्र में जरूरी सुधार लंबे समय से लंबित थे। अब इस दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं।'
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