प्रभाकर मिश्रा, नई दिल्ली : कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के आंदोलन का आज 31वां दिन है। लेकिन किसान और सराकर के बीच अबतक बात नहीं बन पाई है। कृषि कानून में सरकार और किसानों के बीच गतिरोध लगातार बना हुआ है। कड़ाके की सर्दी और गिरते पारे के साथ-साथ कोरोना के खतरों के बीच 26 नवंबर से बड़ी तादाद में किसान दिल्ली के अलग-अलग बॉर्डर पर डटे हैं। प्रदर्शनकारी किसान सिंधु, टिकरी, पलवल, गाजीपुर सहित कई बॉर्डर पर डटे हुए हैं।
खबरों के मुताबिक किसान आज सरकार से बातचीत के न्योते पर फैसला ले सकते हैं। आज उनकी एक और बैठक होगी जिसमें बातचीत को फिर से शुरू करने के सरकार के न्यौते पर कोई औपचारिक फैसला लिया जा सकता है। इस बैठक के दौरान शुक्रवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी द्वारा दिए गए भाषण और सरकार की और से भेजी गई चिट्ठी पर भी चर्चा होगी। संगठनों में से कुछ ने संकेत दिया कि वे मौजूदा गतिरोध का हल खोजने के लिए केंद्र के साथ बातचीत फिर से शुरू करने का फैसला कर सकते हैं।
इससे पहले किसान संगठनों ने गुरुवार को आरोप लगाया कि वार्ता के लिए सरकार का नया पत्र कुछ और नहीं, बल्कि किसानों के बारे में एक दुष्प्रचार है ताकि यह प्रदर्शित किया जा सके कि वे बातचीत को इच्छुक नहीं हैं।
सरकार और किसानों के बीच बातचीत भी हुई लेकिन तमाम कोशिशें बेनतीजा रहीं। किसान तीन नए कृषि कानूनों को पूरी तरह हटाने की मांग कर रहे हैं। सरकार कानूनों को हटाने की जगह उनमें संशोधन करने की बात कह रही है। जिद पर अड़े किसान संगठन कानून वापसी से कम पर मानने को तैयार नहीं हैं। वे सरकार के साथ वार्ता तक को तैयार नहीं हो रहे हैं।
किसानों अरियल रुख का अंदाजा इस बात से भी लगाया जा सकता है कि सरकार को छठे दौर की बातचीत के न्यौते के बावजूद किसान संगठन अबतक तैयार नहीं हुए है। किसान संगठन कृषि कानूनों को रद करने और न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) की गारंटी देने की मांग से नीचे आने को तैयार नहीं हैं। सरकार के प्रस्तावों को उन्होंने पहले ही गुमराह करने की चाल बताकर खारिज कर दिया था। उन्होंने कहा, 'हम वार्ता को तैयार हैं, लेकिन इसके लिए सरकार की ओर से कुछ ठोस प्रस्ताव तो आए।'
किसानों के इस अडि़यल रवैये से वार्ता में गतिरोध बने रहने की आशंका और बढ़ गई है। वहीं कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने एकबार फिर कहा है कि किसी भी आंदोलन का समाधान तो वार्ता की मेज से ही निकल सकता है। बातचीत के लिए किसी शर्त का कोई औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा कि 'कृषि क्षेत्र में जरूरी सुधार लंबे समय से लंबित थे। अब इस दिशा में कदम उठाए जा रहे हैं।'
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