नई दिल्ली: तीन कृषि कानूनों को लेकर किसान और सरकार के बीच जारी गतिरोध के बीच सुप्रीम कोर्ट में आज फिर सुनवाई होगी, जिसमें कोर्ट आज कोई फैसला सुना सकता है। इसके साथ ही समिति को लेकर भी कोई ऐलान हो सकता है। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को इस मामले पर केंद्र सरकार को लताड़ लगाई और कहा कि वह बातचीत से "बेहद निराश" है।
सुप्रीम कोर्ट ने गतिरोध को समाप्त करने में विफल रहने के लिए केंद्र को इस मामले का समाधान खोजने में मदद करने के लिए भारत के एक पूर्व मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक विशेषज्ञ समिति के गठन का प्रस्ताव रखा।
अदालत ने केके वेणुगोपाल से कहा, “हमने आपको लंबा समय दिया है, मिस्टर अटॉर्नी जनरल, कृपया हमें धैर्य से व्याख्यान न दें। हम यह नहीं जानते हैं कि आप समाधान का हिस्सा हैं या समस्या का हिस्सा हैं। हमें नहीं लगता कि आप प्रभावी हो रहे हैं।” सुनवाई की अध्यक्षता मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे, जस्टिस एएस बोपन्ना और वी रामसुब्रमण्यम की तीन-न्यायाधीश पीठ ने की थी।
समिति के सामने पेश होने से किसानों ने किया इनकार
संयुक्त किसान मोर्चा ने एक बयान में कहा कि सभी संगठनों ने कृषि कानूनों पर रोक लगाने के सुप्रीम कोर्ट के सुझाव का स्वागत किया है, लेकिन किसी समिति के सामने कार्यवाही में हिस्सा लेना उनको मंजूर नहीं है। किसान संगठनों ने कहा कि सरकार के अड़ियल रवैये की वजह से उन्हें किसी भी समिति के सामने पेश होना मंजूर नहीं है, भले ही उसकी नियुक्ति सुप्रीम कोर्ट द्वारा ही की जाए।
संयुक्त किसान मोर्चा के बैनर तले किसानों के कई संगठनों की अगुवाई में 26 नवंबर से दिल्ली की सीमाओं पर किसानों का आंदोलन चल रहा है। संयुक्त किसान मोर्चा ने बयान में कहा कि सभी किसान संगठनों का यह फैसला है कि कृषि कानूनों को अवश्य निरस्त किया जाना चाहिए। हालांकि संगठनों ने किसानों के लिए सुप्रीम कोर्ट द्वारा अभिव्यक्त विचार के लिए अदालत का आभार जताया है।
उनका कहना है कि सरकार के रवैये को देखते हुए यह स्पष्ट है कि वे समिति के सामने कानूनों को निरस्त करने पर चर्चा नहीं करेंगे।
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