के जे श्रीवत्सन, जयपुर: तीनों कृषि कानून के विरोध में किसानों के आन्दोलन को खुलकर अपना समर्थन देते हुए राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी (RLP) ने NDA से अपना संमर्थन वापस ले लिया है। नागौर से सांसद हनुमान बेनीवाल इस पार्टी के इकलौते सांसद हैं। जिन्होंने राजस्थान- हरियाण के शाहजहांपुर बोर्डर पर NDA से अलग होने का ऐलान किया। बेनीवाल ने 7 दिन पहले ही किसान कानून के विरोध में संसद की तीनों समितियों से अपना इस्तीफा देकर केंद्र को इस कानून को वापस लेने के लिए आज तक का अल्टीमेटम दिया था।
राजस्थान विधानसभा चुनावों के एन पहले बनी RLP ने आखिरकार NDA से अपना समर्थन वापस लेने का ऐलान कर ही दिया। लोकसभा चुनावों के दौरान ही हनुमान बेनीवाल की पार्टी ने NDA से गठबंधन किया था। बेनीवाल के तेवर शुरू से ही इस मुद्दे को लेकर बागी बने हुए थे। ऐसे में नागौर सांसद हनुमान बेनीवाल ने अपने इस बड़े एलान के लिए राजस्थान- हरियाणा बोर्डर पर स्थित उस शाहजहांपुर किसान आन्दोलन स्थल को ही चुना, जहां से होते हुए शनिवार को उन्होंने अपने 2 लाख समर्थकों के साथ किसान आन्दोलन के समर्थन में दिल्ली कूच का एलान किया था।
बेनीवाल जयपुर, जोधपुर, कोटपुतली, अलवर, नागौर, जैसलमेर, जोधपुर समेत राजस्थान के कई जिलों से सैकड़ों की संख्या में किसानों और समर्थकों के साथ के साथ हरियाणा बॉर्डर पर पहुंच भी गए। उन्होंने यह बड़ा ऐलान किया।
हनुमान बेनीवाल की मानें तो वे कभी भी NDA से फेविकोल की तरफ चिपके नहीं रहे और किसानों का स्वाभिमान ही उनकी ताकत है। बेनीवाल की मानें तो उन्होंने बार बार पीएम मोदी से किसानों के लिए विरोधी साबित होने वाले कृषि कानून को वापस लेने की मांग की, बेनीवाल ने यह भी सफाई दी की कोरोना रिपोर्ट के नाम पर उन्हें कृषि बिल पर चर्चा में शामिल ही नहीं होने दिया गया वर्ना उसी दिन वे संसद में उसे फाड़ भी डालते।
दरअसल जाट नेता हनुमान बेनीवाल का बड़ा वोट बैंक किसान और युवा ही हैं, ऐसे में दिल्ली में चल रहे किसान आन्दोलन के चलते उन पर लगातार इस मुद्दे पर आर पार के फैसले का दबाव बन रहा था। 7 दिन पहले ही उन्होंने इसी शाहजहांपुर बोर्डर पर जाकर सरकार को किसानों को मनाकर इस कानून को वापस लेने के लिए अल्टीमेटम दिया था। इसके बाद जाट नेता हनुमान बेनीवाल संसद की उद्योग संबंधी स्थायी समिति, याचिका समिति तथा पेट्रोलियम व गैस मंत्रालय की परामर्श समिति से इस्तीफा देकर अपने तेवर भी साफ़ कर दिए थे।
वैसे यह भी सच है की पहले विधानसभा और फिर लोकसभा चुनावों में गठबंधन होने का फायदा हनुमान बेनीवाल और बीजेपी दोनों को ही मिला, लेकिन वसुंधरा राजे सहित राजस्थान के कई बीजेपी नेताओं के धुर विरोधी होने के चलते सूबे में हमेशा दोनों पार्टियों के नेताओं के बीच अनबन ही रही।
बेनीवाल के बयानों ने राजस्थान बीजेपी के अंदरूनी सियासत को भी कई बार हिलाकर रख दिया था। ऐसे में हनुमान बेनीवाल के इस फैसले के बाद जहां राजस्थान में दोनों ही पार्टी के नेताओं ने इससे शायद राहत महसूस की होगी लेकिन यह भी तय है की केंद्र में NDA के एक और साथी के अलग होने से जुड़े सवालों का जवाब देना बीजेपी नेताओं क एलिए थोड़ा मुश्किल जरूर हो जाएगा।
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