के.जे.श्रीवत्सन, जयपुर: राजस्थान में अपनी मांगों को लेकर आन्दोलन करते हुए गुर्जर एक बार फिर पटरी पर क्या आए 48 घंटे के भीतर ही मानो आम लोगों की जिन्दगी बेपटरी होती दिखाई दे रही है। जहां इस आन्दोलन के चलते पिछले 4 दिनों से 5 जिलों में इंटरनेट सेवाएं बंद हैं, वहीं कोरोनाकाल के बावजूद त्योहारों के मौसम में राहत के चलाई गईं 40 माल गाड़ियों सहित दिल्ली-मुम्बई ट्रैक पर दौड़ने वाली 60 रेलों को भी डायवर्ट या रद्द करना पड़ा है।
ऊपर से इस आन्दोलन के चलते अब इस साल की सबसे बड़ी पुलिस कोस्टेबल भर्ती परीक्षा में शामिल होने वाले 17 लाख से भी ज्यादा परीक्षाथियों की परीक्षा पर भी अनिश्चितता के बदल गहराने लग गए हैं क्योंकि 48 घंटे बाद भी सरकार की तरफ़ से कोई प्रतिनिधि आन्दोलनकारियों से बातचीत के लिए नहीं पहुंचा है।
उम्मीद की जा रही थी की रविवार से शुरू हुए गुर्जर आन्दोलन के नेताओं को मनाने के लिए सरकार कोशिश करेगी। कोशिश हुई भी, जिसके तहत राजस्थान सरकार की तरफ से गुर्जर समाज से ही आने वाले खेल मंत्री अशोक चंदना को बातचीत के लिए आन्दोलन स्थल पीलूपुरा भेजा गया। ताकि वे आन्दोलन के संयोजक कर्नल किरोड़ी बैंसला से बातचीत करके उन्हें सरकार की कोशिशों के बारे में बता सकें, लेकिन मंत्री के अन्दोलन स्थल पर पहुंचते पहुंचते शाम क्या ढली कि पहले से ही मंत्री नाराज गुर्जर युवाओं के आक्रोश के भड़कने की संभावनाओं के चलते उन्हें सोमवार सुबह 11 बजे आने को कहा गया।
विधानसभा सत्र के चलने या फिर खुफिया विभाग द्वारा मंत्रीजी आन्दोलनकारियों के बीच सुरक्षा के खतरे की रिपोर्ट का नतीजा माने जाए कि गुर्जर दिनभर सरकार के मंत्री या किसी प्रतिनिधि के आने की बाट जोहते रह गए, खुद कर्नल बैंसला अपने समर्थकों के साथ पटरियों पर आन्दोलनकारियों के साथ मौजूद रहे, लेकिन जब कोई नहीं आया तो उन्हें निराशा हुई। पूछे जाने पर कर्नल बैंसला ने न्यूज़ 24 से कहा कि अब तक के सभी आन्दोलन के दौरान उन्होंने बातचीत के जरिये हल निकालने के लिए सरकार का साथ दिया है, इस बार भी वे बातचीत के लिए तैयार हैं।
उधर अभी गुर्जर आन्दोलन को शुरू हुए 48 घंटे ही हुए हैं, लेकिन इसकी आंच अभी से महसूस होने लगी है। अपनी आदतानुसार आंदोलनकारियों ने दिल्ली-मुंबई रेलवे ट्रैक की फिश प्लेटें उखाड़ दीं। पटरियों पर कब्जा है तो रेलवे को भी इस मार्ग पर चलने वाली रोजाना की 40 मालगाड़ियों समेत दिल्ली- मुंबई समेत अन्य मार्गों की ओर जाने वाली 60 ट्रेनें डायवर्ट करनी पड़ीं।
वहीं चक्का जाम आन्दोलन की चेतावनी के चलते राजस्थान रोडवेज के पांच बड़े डिपो दौसा, हिंडौन, करौली, भरतपुर और बयाना की करीब 220 बसों को रोक दिया गया। कोरोनाकाल में वैसे ही परिवहन की गिनी चुनी सुविधाएं ही चल रही है ऊपर से त्योहारों के सीजन में जनता की एक नई परेशानी मानो फिर से शुरू हो गई। यही गुर्जर बहुल इलाके कहे जाने वाले भरतपुर, करौली, दौसा, सवाईमाधोपुर और जयपुर जिले की कई तहसीलों में पिछले 4 दिनों से इंटरनेट बंद है, जिसके चलते कारोबार के साथ साथ आनलाइन के जरिये जैसे तैसे चल रही पढ़ाई भी पूरी तरह बंद हो चुकी है।
ये है मांग
दरअसल इस बार गुर्जर उन्हें 5 फीसदी आरक्षण मिलने से तो संतुष्ट हैं लेकिन आरक्षण और कांग्रेस के चुनावी मैनिफेस्टो में वादे के मुताबिक बैकलॉग की भर्तियां की मांग कर रहे हैं। साथ ही अब तक हुए आरक्षण आंदोलन में मारे गए लोगों के परिजन को सरकारी नौकरी और मुआवजा देने, आरक्षण विधेयक को केंद्र सरकार द्वारा नवीं अनुसूची में डालने, MBC कोटे से भर्ती 1252 कर्मचारियों को रेगुलर पे-स्केल देने और देवनारायण योजना में विकास योजनाओं के लिए बजट देने की मांग कर रहे हैं।
सरकार ने इन्हें बातचीत के लिए बुलाया था लेकिन कर्नल बैंसला की तरफ से जब कोई नहीं आया तो हिम्मत सिंह गुट के 41 प्रतिनिधियों के साथ समझौता करके ज्यादातर या कहें कि कानूनी दांवपेच में फंसे दो तीन बातों को छोड़कर सभी मांगों को तत्काल मान लिया गया लेकिन इस समझौते को कर्नल बैंसला गुट मानाने को तैयार ही नहीं है।
बैंसला का कहना है कि मुझे नहीं पता कि कौन लोग हैं जो कि सरकार के साथ बातचीत के लिए गए थे और क्या समझौता हुआ? इन सबके बीच इस साल की राजस्थान की सबसे बड़ी भर्ती परीक्षा पर भी इस आन्दोलन की छाया पड़ती नजर आ रही है।
यह भर्ती परीक्षा 5438 पुलिस कॉस्टेबल के पदों के लिए 6,7 और 8 नवंबर को होनी है। सरकार की ओर से तैयारी भी पूरी है लेकिन जब आन्दोलन के चलते ट्रेने और बसें ही नहीं चल रहीं और कभी भी चक्का जाम के चलते रास्ता रुक सकता है, तो बड़ा सवाल यह है की यह है की 17 लाख से अधिक के शामिल होने वाले अभ्यर्थी को लेकर राज्य भर के सभी जिलों के 600 से ज्यादा परीक्षा केंद्र पर यह परीक्षा होगी कैसे?
बहरहाल तो खबर है कि सरकार से बातचीत के लिए गया दुसरा गुट आन्दोलनकारी गुर्जर नेताओं को समझौते के बारे में जानकारी देकर मनाने के लिए तैयार हो गया है और वहीं सरकार भी नए सिरे से कमिटी बनाकर बातचीत को आगे बढ़ने के लिए तैयार है, लेकिन लगता है की आरक्षण के हक की यह लड़ाई अब शायद गुर्जर समाज के ही कुछ लोगों के वर्चस्व की लड़ाई भी बनती जा रही है।
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