कुन्दन सिंह, नई दिल्ली: लंबे इंतजार के बाद आखिरकार देश की पहली सेमी हाई स्पीड ट्रेन 'वंदे भारत एक्सप्रेस' के निर्माण से चीन तो बाहर हो गया, पर उसके बनने के रास्ते में लगा ब्यूरोक्रेसी का रोड़ा अभी खत्म नहीं हुआ है।
वन्दे भारत के टेंडर में चीन की कंपनी सीआरआरसी ने भारत की कंपनी पायनियर इलेक्ट्रिक (इंडिया) प्राइवेट लिमिटेड के साथ मिलकर बिड किया था। जिसे रद्द कर दिया गया था। जिसके बाद सिर्फ़ दो ही कंपनियां मैदान में रह गई हैं। ये कंपनियां हैं मेधा सर्वो ड्राइव्स और भेल। मेधा को देश की पहली दो वन्दे भारत ट्रेन सेट को आईसीएफ़ चेन्नई के साथ मिलकर काफ़ी कम क़ीमत में बनाने का अनुभव भी हासिल है।
फिनांशियल बिड खुलने के बाद भी रेलवे बोर्ड की डिपार्टमेंटल राईवरली की वजह से प्रोजेक्ट अवार्ड नहीं हुआ है। जिसकी वजह से पहले से ही 2 साल देर हो चुके इस प्रोजेक्ट में और देरी होने की संभावना है। वैसे सीआरबी ने बताया कि जल्द की इसके काम को अवार्ड कर दिया जाएगा। चीनी कंपनी के आउट होने के बाद जो दो कम्पनियों का बिड में रह गया था। उनमें सूत्रों की मानें तो मेधा सबसे लोएस्ट वीडर होने की वजह से वंदे भारत बनाने का काम उसी को मिलेगा।
मेक इन इंडिया और लोकल इज वोकल के तहत बनी वंदे भारत एक्सप्रेस को देश की पहली सेमी हाई स्पीड ट्रेन होने का गौरव हासिल है। पर 2 ट्रेनों के सफल संचालन के बाद वंदेभारत का इंतजार लंबा हो गया था, वजह थी इस ट्रेन को बनाने वाली आईसीएफ की टीम के ऊपर लगा भ्रष्टाचार और विजिलेंस की जांच। जिसकी वजह से प्रोजेक्ट में देरी हुई।
बाद में रेलवे बोर्ड ने ट्रेन की नई लॉट के लिए उसके टेक्निकल स्पेसिफिकेशन में बदलाव किया गया। तर्क दिया गया कि नई रैक पहले से ज्यादा लाइट वेट और एनर्जी सेविंग होगी। उसके लिए फिर से टेंडरिंग प्रोसेस की गई।
पर डिपार्टमेंटल उठापटक के बाद आखिरकार जो डिजाइन फाइनल किया गया। उसमे पहले की तुलना में मामूली बदलाव ही हो पाया है। जिसके बाद लगातार टेंडर की तारीखों में बदलाव के बाद भी अब फाइनल होने के स्टेज में आया है। अब एक बार फिर से वही मेधा ग्रुप फिर से टेंडर में लोएस्ट बोली लगाकर सबसे बड़ी दावेदार है। जिसने पहले दो रैक की डिजाइन बनाई थी।
देश की पहली सेमी हाई स्पीड ट्रेन सेट की बात जब मंत्रालय में की गई थी तब बोर्ड के भीतर भी इस बात पर सहमति नहीं थी कि इसको खुद के यहाँ बनाया जाय। कि इम्पोर्ट किया जाय। तब उस समय इंटीग्रल कोच फैक्टरी चेन्नई की टीम ने लीड लेते हुए रिकॉर्ड टाइम 18 महीने में देश की पहली ट्रेन सेट का निर्माण कराया था। जिसे पीएम ने अपने लोकसभा क्षेत्र वाराणसी के लिए हरी झंडी दिखाई थी।
जिसके बाद रेलवे ने 44 नई ट्रैन बनाने की घोषणा की थी। पर डिपार्टमेंटल रस्साकसी और आईसीएफ टीम पर लगे करप्शन के आरोप में विजिलेंस जांच गठित किये जाने के बाद प्रोजेक्ट में देरी हो गई थी। वहीं डिजाइन को लेकर भी सवाल उठाए गए कि कैसे ये ट्रेन ज्यादा वजनी और ऊर्जा की खपत 40 फीसदी ज्यादा लेती है। ऐसे में डिजाइन में बदलाव जरूरी है।
वंदे भारत के कुल 44 ट्रैन सेट को जल्द से जल्द पूरा करने के लिए रेलवे के तीनों प्रोडक्शन यूनिट मॉर्डन कोच फ़ैक्टरी राय बरेली , रेल कोच फ़ैक्टरी कपूरथला और इंटिग्रल कोच फ़ैक्टरी चेन्नई में डिब्बे बनाए जाएंगे। जिससे जल्द से जल्द काम पूरा किया जा सके।
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