प्रभाकर मिश्रा, नई दिल्ली: कृषि कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे किसान और केंद्र सरकार के बीच गतिरोध को खत्म करने के प्रयास में सुप्रीम कोर्ट ने किसान संगठनों की तरफ से पेश किए वकील प्रशांत भूषण से इस मामले का हल पूछा। इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने पिछले सप्ताह गठित कमेटी की आलोचना करने वाले लोगों फटकार लगाते हुए कहा कि कमेटी के पास कानूनों पर निर्णय लेने की कोई शक्ति नहीं है।
मुख्य न्यायाधीश एसए बोबडे ने कहा, "हमने (कमेटी को) सभी को सुनने और हमें रिपोर्ट सौंपने की शक्ति दी है। पक्षपात का सवाल कहां है? (वहां) लोगों को ब्रांड बनाने और उन्हें बदनाम करने की कोई आवश्यकता नहीं है।"
चीफ जस्टिस ने प्रशांत भूषण से पूछा कि इस मामले का हल क्या है। किसानों को सलाह है कि कोर्ट ने मामले का संज्ञान लिया है, कोर्ट इसे देख रहा है।
जिसपर प्रशांत भूषण ने दोहराया कि वे चाहते हैं कि कानूनों को निरस्त किया जाए, इसलिए आगे कोई चर्चा नहीं होगी।
CJI ने कहा कि एक लोकतंत्र में निरसन अदालत के अलावा विभिन्न मुद्दों को जब्त कर लिया जाता है। निरस्त करने की अदालत की शक्ति में नहीं है। हम एक बात बताना चाहते हैं कि हमें चिंता हो रही है।
कमेटी पर सवाल उठाना सही नहीं
चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया ने कहा, 'ये आरोप लगाना ठीक नहीं है कि किसी ने किसी मामले में अपनी राय दी है तो वह कमेटी का सदस्य नहीं हो सकता। सबकी अपनी-अपनी राय हो सकती है। जजों की भी अपनी राय होती है। हमने कमेटी को कोई पावर नहीं दी है। फिर पूर्वाग्रह का क्या मतलब है। आपको कमेटी के सामने नहीं पेश होना है, मत होइए। लेकिन इस तरह से कमेटी के सदस्यों और कोर्ट पर सवाल मत उठाइये। किसी को कमेटी के सदस्यों को इस तरह से बदनाम करने का कोई अधिकार नहीं है। कमेटी के सदस्यों के बारे में जिस तरह से बोला जा रहा है, यह गलत है। कमेटी के सदस्य अपने क्षेत्र के विशेषज्ञ हैं।'
इसके साथ ही सुप्रीम कोर्ट ने भूपिंदर सिंह मान की जगह पर नए सदस्य की कमेटी में नियुक्ति को लेकर केंद्र को नोटिस जारी किया है।
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