दयाकृष्ण चौहान, नई दिल्ली: लंबे समय से दिल्ली के बॉर्डर पर किसान जिन तीन नए कृषि कानूनों का विरोध कर रहे हैं, उनमें दूसरा एक्ट कृषक (सशक्तीकरण और संरक्षण) कीमत आश्वासन और कृषि सेवा पर करार अधिनियम, 2020 [Farmers (Empowerment and Protection) Agreement on Price Assurance and Farm Services Act, 2020] है।
इस दूसरे एक्ट पर मोटे तौर पर लोगों की तरफ से कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग एक्ट कहा जा रहा है। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग का मतलब होता है किसी से कॉन्ट्रैक्ट करके उसके लिए फार्मिंग करना। कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग की परमिशन हमारे देश में पहले नहीं थी, इसके पीछे APMC एक्ट था।
Farmers (Empowerment and Protection) का अर्थ है कि किसानों का सशक्तीकरण करना है और इनको सुरक्षा देनी है। हालांकि अब बात यह उठती है कि किसानों को सुरक्षा किस चीज पर देनी है तो वह Agreement (एग्रीमेंट)। अब यह समझ लिजिए कि किसान किस चीज का एग्रीमेंट करेंगे तो वह है Price Assurance (कीमत आश्वासन) and Farm Services (फार्म सेवा)।
1: Price Assurance (कीमत आश्वासन)- इसका मतलब होता है कि जब कोई किसान कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग करेगा तो उसको उसकी कीमत की गारंटी मिलनी चाहिए।
2: Farm Services (फार्म सेवा)- इसका अर्थ है कि खेती के उत्पादन के अलावा जो दूसरी चीजे हैं, उन सर्विस के बदले उसको क्या मिलेगी या वह क्या कीमत देगा। इसका सबसे सीधा उदाहरण है- बीज लेना, फर्टिलाइजर्स लेना, कृषि वैज्ञानिक की सेवा लेना और ट्रांसपोर्ट की सेवा आदि।
इस एक्ट के मुख्य प्रावधान:
1: Agreement (एग्रीमेंट) - किसान अब अपनी फसल का एग्रीमेंट कर सकेंगे, क्योंकि पहले एक्ट में APMC की अनिवार्यता खत्म हो चुकी है। इसमें दो लोग होंगे, जिसमें पहला होगा किसान और दूसरा होगा उससे सामान खरीदने वाला या एग्रीमेंट करने वाला। दोनों के बीच दो बातों को लेकर एग्रीमेंट हो सकता है, पहला खेती के उत्पाद और दूसरा उसकी सर्विस को लेकर।
2: Period- इसमें साफ लिखा है कि इस एग्रीमेंट की समय सीमा एक फसल के सीजन से लेकर 5 साल तक के लिए हो सकता है। ऐसा ही अगर पशुपालन के लिए भी है, जिसके अनुसार एक पैदाइश के साथ 5 साल तक का किया जा सकता है।
3: Model Contract (मॉडल अनुबंध)- यह किसानों और व्यापारियों के बीच होने वाले एग्रीमेंट की भाषण को लेकर है, जिसमें किसान को पता नहीं रखता कि व्यापारी ने अंग्रेजी में क्या लिख दिया और ऐसे में उसके साथ धोखा हो सकता है। हालांकि सरकार ने इसमें साफ लिखा है कि इसके लिए सरकार एक मॉडल कॉन्ट्रैक्ट बना सकती है। मॉडल कॉन्ट्रैक्ट का अर्थ है कि यह पहले से बना होगा और सिर्फ किसान और व्यापारी को अपना नाम भरना होगा, जबकि इसमें लिखे हुए नियम और कानून पहले से ही लिखे होंगे। वहीं दूसरा प्रावधान यह भी लिखा गया है कि सरकार इसके लिए गाइडलाइंस भी जारी कर सकती है।
Model Contract (मॉडल अनुबंध) पर विवाद- इसमें सरकार ने लिखा है कि सरकार ऐसा कर सकती है, जबकि सरकार को लिखा चाहिए था कि सरकार ऐसा करेगी।
4: Price Fixing Mechanism (मूल्य निर्धारण तंत्र)- इसमें सरकार ने दो तरीके दिए है, जिसमें पहला है कि किसान और व्यापारी फसल का दाम पहले ही तय कर ले।
उदाहरण: किसान ने आलू की फसल को व्यापारी के साथ समझौता कर लिया। व्यापारी ने कहा कि हमें इस क्वालिटी का आलू चाहिए और हम आपको 20 रुपये प्रति देंगे, जिसके बाद किसान फसल उगाकर व्यापारी को इस तय कीमत पर देगा।
दूसरा है कि एक दाम तय करने के साथ ही उसमें लचीलापन भी रख सकते हैं। इसका अर्थ यह है कि किसान को तय दाम तो मिलेगी ही, उससे कम नहीं हो सकता, लेकिन उसमें कुछ कीमत अधिक जुड़ सकती है। क्योंकि APMC में उस सफल की कीमत ज्यादा है या दाम बढ़ गए हैं।
उदाहरण: किसान ने आलू की फसल को व्यापारी के साथ समझौता कर लिया। व्यापारी ने कहा कि हमें इस क्वालिटी का आलू चाहिए और हम आपको 20 रुपये प्रति देंगे। इसके लिए आपको हम कई सारी सुविधाएं भी उपलब्ध कराएंगे, क्योंकि इस साइज का आलू आसानी से नहीं बनता है और हम आपसे 500 किला लेंगे। ऐसे में अगर जब तक आलू तैयार होते हैं और नॉर्मल आलू की कीमत ही 20 रुपये किलो हो गई, जबकि किसान ने जो आलू उगाया है वह काफी बेहतर है तो उसे लगेगा कि उसका नुकसान हो गया और वह तो उस समय 35 रुपये का बेच रहा होता। ऐसे में दूसरा आप्शन भी किसानों को दिया गया है।
5: Delivery Payment Mechanism (डिलिवरी भुगतान तंत्र)- इसका अर्थ है कि किस तरह से फसल की डिलिवरी होगी और किसान को कैसे भगुतान किया जाएगा। हालांकि कॉन्ट्रैक्ट फार्मिंग के समय जो एडवांस दिया है, वह दिया है, लेकिन इसमें साफ लिखा है कि जिस दिन डिलिवरी होगी उसी दिन सारा भुगतान होगा। हालांकि इसमें कहा गया है कि अगर बैंक की छुट्टी या दूसरे किसी प्रोसीजर प्राब्लम में भी व्यापारी को अधिकतम 3 दिन का ही समय मिलेगा।
इसमें यह भी लिखा है कि अगर भुगतान में देरी होती है तो व्यापारी को डिलिवरी लेते समय यह साफ लिखना होगा कि हमें डिलिवरी मिल गई है और इतने पैसे बाकी है, जिसे हम इतने समय के अंदर देंगे।
6: Farmers Land (किसानों की जमीन)- इस एक्ट में बार-बार कहा जा रहा है कि किसानों की जमीन पर कब्जा कर लिया जाएगा। लेकिन इस एक्ट में साफ-साफ लिखा है कि किसी भी फार्मिंग कॉन्ट्रैक्ट में उस जमीन को एग्रीमेंट में कोई कंडीशन बनाया ही नहीं जा सकता। अगर बनाएंगे तो उस एग्रीमेंट का उतना हिस्सा नहीं शून्य हो जाएगा।
नहीं बना सकते स्थायी स्ट्रक्चर
इसके साथ ही जिसके साथ एग्रीमेंट हुआ है, वह किसान की जमीन पर कोई स्थायी स्ट्रक्चर भी नहीं खड़ा करेगा। लेकिन इसमें यह कहा गया है कि अगर दोनों की सहमति हैं और एग्रीमेंट में फायदा है तो ही स्थायी स्ट्रक्चर खड़ा किया जा सकता है। हालांकि इसमें यह भी लिखा है कि दोनों के बीच का कॉन्ट्रैक्ट खत्म होने के साथ ही व्यापारी अपने खर्चे पर उस स्ट्रक्चर को हटाएगा और यदि वह ऐसा नहीं करता है तो यह स्थायी स्ट्रक्चर अपने आप ही किसान की संपत्ति हो जाएगी।
7: Registration (रजिस्ट्रेशन)- इसमें लिखा है कि हर राज्य सरकार को यह अधिकार है कि वह अपनी समझ के अनुसार, एक ऐसी अथोरिटी बना सकती है जोकि ऐसे सभी फार्मिंग कॉन्ट्रैक्ट का रजिस्ट्रेशन करेगी, ताकि उसकी वैधता सुनिश्चित रहे। इसमें कितने अधिकारी होंगे, उनकी सैलरी, हर जिले में होगा या तहसील में होगा, यह सभी राज्य सरकार तय करेगी।
8: Force majeure (किसी उपयुक्त कारण से न करने)- यदि किसान और व्यापारी ने आपस में कॉन्ट्रैक्ट किया, लेकिन किसान किसी उचित कारण से कॉन्ट्रैक्ट को पूरा नहीं कर पा रहा है और कंपनी कोर्ट में चली जाती है तो वह मान्य नहीं होगा। Force majeure का मतलब है कि यदि कोई ऐसी घटना घट जाए जोकि प्राकृतिक दुर्घटना है या ईश्वरीय घटना है, जिसकी वजह से किसी एक या दोनों पक्ष के लिए उस कॉन्ट्रैक्ट का पालन करना असंभव हो गया है तो किसी व्यक्ति को उसके लिए दंडित नहीं किया जा सकेगा। आमतौर पर हर अच्छे कॉन्ट्रैक्ट पर ऐसा क्लॉज लिखा जाता है।
9: Dispute Settlement (विवाद निपटारा)- इसमें साफ कहा गया है कि जितने भी एग्रीमेंट किए गए हैं, उनमें समझौता बोर्ड की व्यवस्था अनिवार्य होगी। एग्रीमेंट में ही लिखा होगा कि अगर कोई विवाद हो गया तो उसको इन दो या चार लोगों के बीच समझौते के आधार पर निपटाया जाएगा, जिसके बाद सेटलमेंट हो जाएगा।
मान लिजिए कि किसी एग्रीमेंट में ऐसा लिखा छूट गया तो यह एसडीएम के पास जाएगा तो वह भी समझौता बोर्ड बनाएगा और 30 दिन के अंदर फैसला सुना देगा। अगर वहां भी बात नहीं बनेगी तो मामला डीएम के पास जाएगा और वह भी 30 दिन के अंदर फैसला सुनाएगा। इसमें भी मामला किसी भी कोर्ट के पास नहीं जाएगा, क्योंकि कोर्ट के पास बहुत काम है तो ऐसे में मामला लंबा चल सकता है।
10: Penalty (जुर्माना)- अगर किसान और व्यापारी दोनों में एक-दूसरे के नुकसान को लेकर विवाद हो गया तो ऐसे में व्यापारी पर किसान को देने वाले पैसे का डेढ़ गुना जुर्माना लगाया जा सकता है। लेकिन किसी भी तरह से अगर किसान की गलती से नुकसान हुआ है, तो उसपर कोई जुर्माना नहीं लगेगा, उसको वहीं जुर्माना देना होगा, जो व्यापारी ने खर्च की है।
11: Aggregator (समूहक)- इसमें बहुत सारे किसान एक साथ मिलकर संस्था बना ले और उन्होंने किसी कंपनी के साथ समझौता कर लिया। ऐसे में इन सभी के साथ बात करने वाले को ऍग्रीगेटर कहा जाता है।
Farm Services Provider - इसमें लिखा है कि एग्रीमेंट में किसान और कंपनी के अलावा कुछ दूसरे पक्ष भी शामिल हो सकते हैं। अगर दोनों के बीच समझौता हुआ और कंपनी चाहती है कि वह फसल को बेहतर बनाने के लिए एक कृषि वैज्ञानिक को भी इसमें शामिल करे। इसके साथ ही बीज, रसायन और दूसरी सेवाओं के लिए कंपनी अपने अनुसार सर्विस तय कर सकती है।
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