नई दिल्ली: साल 1993 में बॉलीवुड की एक सुपरहिट फिल्म आई थी, जिसका नाम था बाजीगर। इस फिल्म का एक मशहूर डायलॉग है 'हारकर जीतने वाले को बाजीगर कहते हैं'। बिहार की राजनीति में भी कुछ ऐसा ही दिखाई दे रहा है, जिस नौजवान नेता को कल तक सियासी नौसखिया माना जा रहा था। वो अचानक बिहार की चुनावी बाजी पलटता हुआ दिखाई दे रहा है। 10 नवंबर को नतीजे भले जो भी आएं, मगर इतना तो तय है कि बिहार में एक नये नेता का उदय हो चुका है।
बिहार की जनता-जनार्दन की कड़ी परीक्षा में तेजस्वी उत्तीर्ण होने लायक अंक लाते हैं या उस तरफ से अभी और प्रतीक्षा का आदेश आता है, ये तो 10 नवंबर को ही तय होगा। मगर चुनावी पखवाड़े में एक बात पत्थर की लकीर की तरह तय हो गई और वो ये कि तेजस्वी के तौर पर बिहार को अगली पीढ़ी का पहला नेता मिल चुका है।
आखिर सवा साल में ऐसा क्या हुआ कि लोकसभा की लड़ाई में शून्य पर सिमट चुकी लालटेन में तेजस्वी ने चमत्कार का ऐसा तेल भरा कि आज वो बिहार की सत्ता के सबसे बड़े बाजीगर बन बैठे? कुछ भी तो नहीं था उनके पास, करिश्माई पिता कभी रांची के रिम्स अस्पताल तो कभी बिरसा मुंडा कारागार में अपनी मुकर्रर सजा काटने को मजबूर हैं। पिछले कुछ सालों में मां राबड़ी राजनीति की रपटीली राह पर खुद की भूमिका सीमित कर चुकी हैं। बड़े भाई तेजप्रताप के असफल वैवाहिक जीवन ने कुनबे के कलह को बीच सड़क पर ले आया और इन सबसे निराश लालू के भरोसेमंद समर्थक और सिपहसलार एक-एक करके पार्टी और उनके छोटे बेटे का साथ छोड़ने लगे। विचलित करने वाले इन तमाम विरोधाभासों के बावजूद तेजस्वी बिहार की सियासी बाजी पलटने के इतने करीब आखिर पहुंच कैसे गए?
दरअसल, तेजस्वी ने इन चुनावों में अपनी सबसे बड़ी कमजोरी को ही अपना सबसे बड़ा हथियार बनाकर मैदान में उतरे। उनकी चुनावी रैलियों में उमड़ने वाले हजारों के इस हुजूम ने ये बात साबित कर दी कि लालू और राबड़ी की पहचान से अलग वो अपना अलग मुकाम बनाने की राह पर आगे बढ़ चुके हैं। विरोधियों ने बार-बार उन्हें अतीत के जंगलराज के युवराज का तमगा देने की कोशिश की, मगर किसी माहिर नेता की तरह तेजस्वी इस बहस में उलझने से साफ-साफ बचते रहे।
तेजस्वी को बखूबी पता था कि पंद्रह सालाना नीतीश सरकार के विरुद्ध इस बार जनता के असंतोष, आक्रोश और टूटी हुई उम्मीदों को अपने पाले में पलटने की पूरी संभावना मौजूद है। तेजस्वी ने जनता के सामने इसी के विकल्प के तौर पर खुद को खड़ा किया और फिर लालू परिवार से अलग संभावनाओं से समृद्ध एक युवा नेता के तौर पर अपनी छवि गढ़ने में कामयाब रहे। अब देखना ये है कि बिहार की सियासत का ये नया तेजस्वी जनता-जनार्दन के दिलों में कितनी जगह बना पाया है।
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