नई दिल्ली: आईडी फ्रेश फूड कंपनी के मालिक पीसी मुस्तफा ने गुरुवार को दिल्ली के सरकारी स्कूलों के बच्चों को उद्यमिता के टिप्स दिए। उन्होंने कहा कि उद्यमी सोच हो, तो एक दिहाड़ी मजदूर का बेटा भी 1500 करोड़ की कंपनी का मालिक बन सकता है। ब्रेकफास्ट किंग मुस्तफा ने दिल्ली की शिक्षा नीति की सराहना करते हुए कहा कि एक गरीब मजदूर होने के बावजूद मेरे पिताजी का सपना हमें अच्छी शिक्षा दिलाना था। मैंने इंजीनियरिंग करके विदेशों में नौकरी की। फिर वापस आकर अपनी कंपनी खोली। अब लगता है कि नौकरी में मैंने अपनी जिंदगी के छह साल बर्बाद किए। देश-विदेश में आज आईडी फ्रेश फूड कंपनी के 21000 स्टॉल हैं।
मुस्तफा ने एंटरप्रेन्योरशिप माइंडसेट कुरिकुलम क्लास में दिल्ली के सरकारी स्कूलों के बच्चों से बात की। इस दौरान बच्चों के सवालों के जवाब में मुस्तफा ने अपने ‘इडली‘ और ‘वड़ा‘ निर्माण की तकनीक पर दिलचस्प जानकारियां दीं। उन्होंने कहा कि आज हमारे स्क्वीज एंड फ्राई से एक मिनट में वड़ा बन जाता है। लेकिन यह तकनीक विकसित करने में हमें तीन साल लगे। मुस्तफा ने कहा कि स्टूडेंट्स को उद्यमिता सिखाने का दिल्ली सरकार का यह कोर्स काफी उपयोगी है। मैंने भी नौकरी छोड़ते हुए यही संकल्प लिया था कि दूसरों को नौकरी देनी है।
उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने कहा कि सामान्य दिनों में यह संवाद किसी एक स्कूल में होता। लेकिन अभी आनलाइन होने के कारण सभी बच्चों को शामिल होने का मौका मिल रहा है। उन्होंने कहा कि केरल ्के वायनाड जैसे छोटे से गांव से निकले श्री मुस्तफा की सफलता काफी प्रेरक है। एक दिहाड़ी मजदूर का छठी कक्षा में फेल बेटा आज 1500 करोड़ की कंपनी का मालिक है। सिसोदिया ने कहा कि हम अपने बच्चों में ऐसी ही उद्यमी समझ पैदा करना चाहते हैं ताकि वे भी मुस्तफा की तरह सफल उद्यमी बन सकें।
इस दौरान बच्चों ने मुस्तफा से दिलचस्प सवाल किए। निखिल ने पूछा कि बिजनेस शुरू करने की सही उम्र क्या है। मुस्तफा ने कहा कि मैंने दस साल की उम्र में ही बिजनेस शुरू कर दिया था। अरिशा ने पूछा कि आपने जीवन में क्या गलती की? मुस्तफा ने कहा कि मैंने जिंदगी के छह साल एक कंपनी में नौकरी करके खराब कर दिए। काश, मैं व्यापार पहले शुरू कर पाता।
एक स्टूडेंट ने पूछा कि बिजनेस का आइडिया कहां से आता है? इस पर मुस्तफा ने कहा कि बचपन में एक रिश्तेदार की दुकान पर बैठकर वह अक्सर देखते थे कि महिलाएं 'इडली-वड़ा' का बेटर खरीद कर ले जाती हैं। इसे घर पर बनाना मुश्किल होने के कारण घटिया क्वालिटी का बेटर भी महंगे दाम पर बिक जाता था। इससे उन्हें इसका आइडिया आया। मुस्तफा ने कहा कि अपने आसपास देखें कि लोगों को किस चीज की जरूरत है, उस पर काम करें तो अच्छा उद्यमी बन सकते हैं। यही उद्यमी सोच है।
एक स्टूडेंट ने पूछा कि आपने अंग्रेजी कैसे सीखी? मुस्तफा ने कहा कि मैंने मलयाली में स्कूल में पढ़ाई की। मुझे रोना आता था कि अंग्रेजी नहीं जानता। फिर अंग्रेजी अखबार पढ़ना और अंग्रेजी के टीवी चैनल देखना शुरू किया। लोगों के साथ अंग्रेजी में बात करने लगा। गलतियां होती थी, लेकिन सीखने का यही तरीका है। मैंने बेहिचक अंग्रेजी बोलना शुरू किया और फिर तो हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में जाकर लेक्चर भी दिया।
सिसोदिया ने कहा कि सफल होने के लिए आपको नेतृत्व के गुण विकसित करने होंगे। पांच साल पहले हम भी कह सकते थे कि स्कूलों की हालत बहुत खराब है, सत्तर साल में कुछ नहीं हुआ। लेकिन हमने ऐसे बहाने खोजने के बजाय स्कूलों को ठीक करने का भरपूर प्रयास किया।
इस एंटरप्रेन्योर इंट्रेक्शन का आयोजन एससीईआरटी, दिल्ली ने किया। ईएमसी के जरिए नवीं से बारहवीं तक के बच्चों में उद्यमी सोच विकसित की जा रही है। इस वर्ष इस प्रोग्राम के तहत डॉ. ब्लोस्सोम कोच्चर, अर्जुन मल्होत्रा, किरण मज़ुमदार शॉ और अंशु गुप्ता जैसे उद्यमियों से बच्चों का संवाद हो चुका है।
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