कोलकाता। मृत बेटे के अस्पताल में स्टोर किए गए स्पर्म पर पिता के दावे को कलकत्ता हाईकोर्ट ने खारिज कर दिया है। अदालत ने कहा कि मृत्यु तक मृतक के उसकी विधवा के साथ वैवाहिक संबंध थे। इसलिए मृतक के अलावा सिर्फ उसकी पत्नी का अधिकार अस्पताल में सुरक्षित किए गए उसके स्पर्म पर है।
याचिकाकर्ता पिता ने दलील दी थी कि उसका बेटा थैलेसीमिया का मरीज था। उसने भविष्य में इस्तेमाल के लिए अपना स्पर्म दिल्ली के एक अस्पताल में सुरक्षित कराया था। बेटे के निधन के बाद उसके पिता ने स्पर्म लेने के लिए अस्पताल प्रशासन से कॉन्टैक्ट किया। इधर अस्पताल प्रशासन ने उनसे बताया कि इस मामले में उन्हें मृतक की पत्नी से सहमति लेनी होगी।
गौरतलब है कि देश में पहली बार वर्ष 2008 में एक महिला पूजा पति सुरक्षित कराए गए स्पर्म से मां बनी थी। पूजा अपने पति के स्पर्म से कृत्रिम गर्भधारण कराना चाह रही थी। इसी दौरान वर्ष 2006 में उनकी मौत हो गई। इधर पूजा को पता चला कि स्पर्म बैंक में पति के स्पर्म सुरक्षित हैं। ऐसे में उसने इसके जरिए गर्भधारण किया और पति की मौत के दो साल बाद मां बनी। इस दौरान वो बेहद खुश थी और बोली कि मैं चिल्लाकर दुनिया को ये बताना चाहती हूं कि मेरे पति लौट आए हैं।
मृत इंसानों के स्पर्म सुरक्षित करने की यूं हुई शुरुआत :
सबसे पहले पूरी दुनिया में अमेरिका में मृत इंसानों के स्पर्म को सुरक्षित करने का सिलसिला वर्ष 1970 से शुरू हुआ था। डॉ केपी रॉथमैन मृत व्यक्तियों के शुक्राणु को 48 घंटे के भीतर निकालकर सुरक्षित कर देते हैं। ये जानकर एक महिला गेबी वर्नोफ ने उनसे संपर्क किया। महिला के पति की मौत के 30 घंटे के भीतर ही उन्होंने स्पर्म निकालकर सुरक्षित कर दिया। इसके बाद उसी स्पर्म की मदद से महिला बाद में मां बन सकी।
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