नई दिल्ली: तेजस्वी यादव की अगुवाई में महागठबंधन ने एनडीए को कड़ी टक्कर दी, लेकिन वह बहुमत से आंकड़े तक नहीं पहुंच पायी। हालांकि, RJD बिहार विधानसभा में सबसे बड़ी पार्टी के तौर पर उभरती दिख रही है। वहीं, तेजस्वी को उम्मीद थी कि उनकी लालटेन की रौशनी विरोधियों को दंग कर देगी।
तेजस्वी यादव को पूरी उम्मीद थी कि उनकी रैलियों में जुटने वाला जनसैलाब उन्हें सूबे के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर बैठा देगा? उनको भरोसा था कि अबकी बार लालटेन के सामने कोई नहीं टिक पाएगा। लेकिन EVM खुलने के कुछ घंटे बाद ही तेजस्वी की उम्मीदों पर पानी फिरने लगा।
ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर तेजस्वी यादव की रणनीति में कहां चूक हुई, जिससे आरजेडी सत्ता से दूर रह गयी।
तेजस्वी यादव ने 250 से ज्यादा चुनावी सभाएं और रैलियां की। उनकी रैलियों में भारी भीड़ उमड़ी, इससे उन्हें लगने लगा कि हवा लालटेन के पक्ष में है। लेकिन तेजस्वी की रैलियों में उमड़ी भीड़ का एक बड़ा हिस्सा स्कूली छात्रों का था, जो वोटर नहीं थे।
मतलब, तेजस्वी की रैलियों में जमा भीड़ वोटबैंक में तब्दील नहीं हो पायी। 31 साल के तेजस्वी के 10 लाख सरकारी नौकरी के वादे पर बिहार के लोग पूरी तरह से भरोसा नहीं हुआ। तेजस्वी अपनी हर रैली में कमाई, दवाई और पढ़ाई की बात करते थे, लेकिन बिहार के लोग ये नहीं समझ पा रहे थे कि आखिर तेजस्वी 10 लाख सरकारी नौकरियां कहां से देंगे?
बिहार के लोग ये भी हिसाब लगाने लगे कि जिस सूबे की स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी चरमराई हो, वहां सबके लिए दवाई का इंतजाम तेजस्वी कहां से करेंगे? बेहतर पढ़ाई के वादे पर विपक्षियों ने तंज कसना शुरू कर दिया।
बिहार के लोग ये नहीं समझ पा रहे थे कि जब मुख्यमंत्री पिता और मुख्यमंत्री मां का लाडला होने के बाद भी तेजस्वी कॉलेज का मुंह नहीं देख पाए, वो भला दूसरों के लिए बेहतर पढ़ाई का वादा किस मुंह से कर रहे हैं।
महागठबंधन को सबसे ज्यादा झटका लगा कांग्रेस के स्ट्राइक रेट से
कांग्रेस जितनी लड़ी उसके अनुपात में बहुत कम जीत पायी। वहीं, सीआईएम (एल) का स्ट्राइक रेट बहुत ही शानदार रहा। महागठबंधन की छतरी के नीचे आने का लेफ्ट के पूरा फायदा मिला, लेकिन लेफ्ट के कैडर का फायदा लालटेन को नहीं मिल पाया।
तेजस्वी यादव की रणनीति पर भी विश्लेषण शुरू हो गया। अब कहा जा रहा है कि RJD ने तेजस्वी यादव के चेहरे पर चुनाव लड़ा। प्रचार की कमान खुद तेजस्वी यादव ने संभाली और सीनियर नेताओं को भी किनारे कर दिया। टिकट बंटवारे में भी तेजस्वी की ही चली, जिससे भीतरखाने पार्टी के सीनियर नेता नाराज हो गए। इसके साथ ही तेजस्वी ने लालू यादव और राबड़ी देवी के चेहरे को भी पोस्टरों से हटा दिया।
आरजेडी की सीटें कम होने की एक बड़ी वजह रणनीति में चूक भी माना जा रहा है। तेजस्वी यादव ने पार्टी के कई सीनियर नेताओं की सीटें भी बदल दी, जिसका खामियाजा आरजेडी को उठाना पड़ा। बिहार में कांग्रेस को ज्यादा सीटें देना भी तेजस्वी की रणनीति में एक बड़ी चूक के तौर पर देखा जा रहा है।
तेजस्वी अपनी रणनीति को लेकर इतना ज्यादा कॉन्फिडेंट थे कि उन्होंने 15 साल तक बिहार की कमान संभालने वाले अपने माता-पिता को भी RJD के पोस्टरों से दूर कर दिया। शायद उन्हें लग रहा था कि लालू और राबड़ी की तस्वीरें उनकी जीत की राह में मुश्किलें खड़ी कर सकती है। तेजस्वी ने तूफानी प्रचार और बेरोजगार नौजवानों के जख्मों को सहलाते हुए पहले राउंड में बढ़त बना ली। ऐसे में एनडीए ने अपनी रणनीति में थोड़ा बदलाव किया और आरजेडी की सबसे कमजोर नस को दबाना शुरू किया। प्रधानमंत्री मोदी ने तेजस्वी को जंगलराज का युवराज कहते हुए प्रचंड प्रहार किया।
तेजस्वी ने बड़ी मेहनत से लालू के MY यानी मुस्लिम प्लस यादव वोटबैंक को विस्तार देते हुए इसे MYMY का समीकरण तैयार किया था। मतलब मुस्लिम प्लस यादव वोटबैंक में तेजस्वी में महिला और युवाओं को जोड़कर RJD का सामाजिक आधार बढ़ाने की कोशिश की। लेकिन जैसे ही बिहार की सियासी फिजा में जंगलराज की बातें शुरू हुईं, तेजस्वी के नए सामाजिक आधार का बड़ा हिस्सा बिदकने लगा।
दूसरे चरण से बाजी पलटने लगी। लोगों के दिमाग में 90 के दशक का बिहार घूमने लगा तो युवाओं को लगा कि कहीं 10 लाख सरकारी नौकरियों का वादा सिर्फ चुनावी सब्जबाग तो नहीं। ऐसे में लोगों ने महागठबंधन की जगह एनडीए के शासन में अपना भविष्य ज्यादा चमकदार देखा और लालटेन थामे आरजेडी कार्यकर्ता सोचते रह गए कि देखते ही देखते क्या से क्या हो गया?
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