Atal Jayanti: पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की आज 96 जयंती है। इस मौके पर देशभर उन्हें नमन कर श्रद्धांजलि दे रहा है। अपनी कविताओं और भाषणों के लिए हमेशा जाने वाले अटल बिहारी वाजपेयी बीजेपी के संस्थापकों में से एक थे। अटलजी 1996 में पहली बार प्रधानमंत्री बने और उनकी सरकार सिर्फ 13 दिनों तक ही चल पाई थी। 1998 में वह दूसरी बार प्रधानमंत्री बने, तब उनकी सरकार 13 महीने तक चली थी। 1999 में तीसरी बार प्रधानमंत्री बने और 5 सालों का कार्यकाल पूरा किया। 2004 के बाद तबीयत खराब होने की वजह से उन्होंने राजनीति से अपनी दूरी बना ली थी।
मार्च 1998 में अटल बिहारी देश के पहले गैर-कांग्रेसी प्रधानमंत्री बने जिन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। केन्द्र की सत्ता पर काबिज होने के महज दो महीने के अंदर अटल बिहारी ने भारत को न्यूक्लियर पावर घोषित करते हुए पोखरान में 5 न्यूक्लियर टेस्ट को हरी झंड़ी दी। इस फैसले ने देश को एक ऐसे मोड़ पर खड़ा कर दिया जहां पूरी दुनिया भारत के खिलाफ हो गई। वैश्विक स्तर पर आर्थिक प्रतिबंधों के साथ-साथ एक झटके में भारत का अमेरिका, चीन, पाकिस्तान समेत कई अन्य मित्र देशों से रिश्तों के आगे फुल स्टॉप लग गया।
वहीं, देश की पहली बीजेपी सरकार को पूर्व की कांग्रेस सरकार (1991 से 1996) से विरासत में आर्थिक उदारीकरण का फैसला मिला था। इस फैसले के चलते वैश्विक अर्थव्यवस्था में भारत का नया रास्ता तय किया जाना था। खास बात है कि कांग्रेस की इस सरकार और 1998 में बनी अटल बिहारी की सरकार के बीच तीन और प्रधानमंत्री बन चुके थे। इसमें खुद 16 दिन की अटल बिहारी की सरकार थी और लगभग तीन-तीन सौ दिन तक एचडी देवेगौड़ा और इंद्रकुमार गुजराल की सरकार केन्द्र पर काबिज थी। जाहिर है, आर्थिक उथल-पुथल के साथ-साथ देश में राजनीतिक अस्थिरता की भी माहौल था।
वहीं भारत की आर्थिक स्थिति का जायजा 1998-99 के आर्थिक सर्वेक्षण में विस्तार से बताए गए अंतरराष्ट्रीय आर्थिक माहौल से लगाया जा सकता है। आर्थिक सर्वेक्षण के मुताबिक इस दौरान पूर्वी एशिया के देशों की जीडीपी में तेज गिरावट दर्ज हो रही थी. इंडोनेशिया की जीडीपी 15 फीसदी और दक्षिण कोरिया और थाइलैंड की जीडीपी में 5 से 7 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई थी. इसके अलावा दुनिया की पांच बड़ी अर्थव्यवस्थाओं में जापान मंदी के दौर से गुजर रहा था और 1991 में यूएसएसआर के विघटन के बाद से ही लगातार रूस की आर्थिक स्थिति बेहद नाजुक थी। दुनियाभर में ऐसी आर्थिक स्थिति के चलते 1998 में ग्लोबल जीडीपी में 2 फीसदी की गिरावट दर्ज हुई थी।
लिहाजा, साफ है कि मार्च 1998 में सरकार की बागडोर संभालने के बाद देश की अर्थव्यवस्था बेहद गंभीर मोड़ पर खड़ी थी। ऐसे में सरकार बनाने के कुछ दिनों बाद ही न्यूक्लियर टेस्ट के फैसले से भारतीय अर्थव्यवस्था के सामने सबसे बड़ा खतरा अमेरिका समेत ताकतवर देशों से आर्थिक प्रतिबंध का था।तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने भारत के फैसले को अनुचित करार देते हुए भारत से सभी आर्थिक संबंधों पर तत्काल प्रभाव से प्रतिबंध का ऐलान कर दिया. रक्षा उपकरण समेत टेक्नोलॉजी के सभी समझौतों को निरस्त कर दिया गया। साथ ही अमेरिका ने भारत को दी गई सॉवरेन क्रेडिट को रोक दिया और सभी अंतरराष्ट्रीय आर्थिक संस्थाओं पर भारत को कर्ज जारी रखने का दबाव बनाना शुरू कर दिया. अमेरिका की तर्ज पर जापान ने भी भारत के साथ सभी रिश्तों को खत्म करते हुए सख्त आर्थिक प्रतिबंधों का ऐलान कर दिया।
वैश्विक कारोबार में छाई सुस्ती और भारत की घरेलू स्थिति के चलते 1998 में आर्थिक चुनौतियां बढ़ती जा रही थीं। न्यूक्लियर टेस्ट से कुछ दिनों पहले जारी हुए सीएसओ आंकड़ों के मुताबिक 1996-97 में 7.8 फीसदी की विकास दर के बाद 1997-98 में विकास दर लुढ़क कर 5 फीसदी के पास पहुंच गई (हालांकि यह पहला आंकड़ा था जिसे 1993-94 के आधार पर जारी किया गया था)। वहीं इस दौरान महंगाई का आंकड़ा बेहद गंभीर था। मई में टेस्ट से लेकर सितंबर 1998 तक महंगाई 8.8 फीसदी के उच्चतम स्तर पर जा चुकी थी।
गौरतलब है कि पिछले साल 16 अगस्त 2018 को लंबी बीमारी के बाद उनका निधन हो गया था। अटलजी के निधन के बाद बीजेपी ने उनकी अस्थियों को देश की 100 नदियों में प्रवाहित किया था और इसकी शुरुआत हरिद्वार में गंगा में विसर्जन के साथ हुई थी। पूर्व पीएम अटल बिहारी वाजपेयी को 2014 में देश के सर्वोच्च सम्मान 'भारत रत्न' से सम्मानित किया गया था।
आपको बता दें कि सिर्फ प्रधानमंत्री रहने के दौरान नहीं कई बार विपक्ष में रहते हुए भी अटल बिहारी वाजपेयी ने ऐसा काम किया, जिसकी वजह से विपक्ष के लीडर के तौर पर भी उनको काफी सम्मान मिला।
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