मनीष कुमार, नई दिल्ली: देश में आर्थिक परेशानी की वजह से किसानों की घटना आम है। सूखे और बाढ़ की समस्या से परेशान देश का किसान पहले कर्ज लेता है और उसके बाद कर्ज नहीं चुका पाने की स्थिति में खुदकुशी करने को मजबूर होता है। इन सबके बीच केंद्र सरकार ने मंगलवार को लोकसभा में कहा कि उसके पास 2016 से कर्ज में डूबे होने और दिवालियापन के कारण किसानों के खुदकुशी का आंकड़े उपलब्ध नहीं है। द्वारा आत्महत्या करने के राज्यवार आंकड़े 2016 के बाद से उपलब्ध नहीं हैं।
लोकसभा में प्रतापराव जाधव के प्रश्न के लिखित उत्तर में कृषि एवं कृषि कल्याण मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा, कि सरकार के पास 2016 और उसके बाद से किसानों की खुदकुशी के आंकड़े उपलब्ध नहीं है। उन्होंने कहा कि 2014 और 2015 के दौरान ऋणग्रस्तता और दिवालियापन के कारण किसानों द्वारा आत्महत्या किये जाने संबंधी राज्यवार आंकड़े हैं। लेकिन यह आंकड़ा 2016 के बाद से उपलब्ध नहीं है।
सरकार की मानें तो वर्ष 2014 में ऋणग्रस्तता और दिवालियापन के चलते देश के 1,163 किसानों ने आत्महत्या की थी तो वर्ष 2015 में यह संख्या बढ़कर 3,097 हो गई। आंकड़ों के मुताबिक 2014 में 1,163 किसानों ने आत्महत्या की थी जिनमें महाराष्ट्र से 857, तेलंगाना से 208, कर्नाटक से 51 और आंध्र प्रदेश से 36 किसानों की आत्महत्या के मामले शामिल हैं। जबकि 2015 में यह संख्या बढ़कर 3,097 हो गई। इसमें महाराष्ट्र के सबसे ज्यादा 1,293 किसानों ने आत्महत्या की है। दूसरे नंबर पर कर्नाटक है जहां के 946 किसानों ने कर्ज के चलते अपनी जान दी है। इस दौरान तेलंगाना के 632, आन्ध्रप्रदेश के 154 और मध्यप्रदेश के 13 किसानों ने आत्महत्या की है।
इसके बावजूद सरकार ने किसानों द्वारा लिए गए फसली ऋण को माफ करने से इंकार किया है। सरकार ने स्पष्ट किया है किसानों के कर्ज माफी की उनकी कोई योजना नहीं है। अपने जवाब में कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा कि कृषि राज्यों का विषय है। राज्य इस क्षेत्र के विकास के लिए कदम उठाती है। लेकिन इसके साथ ही केंद्र सरकार कृषि क्षेत्र के विकास के लिए नीतिगत फैसलों के जरिये और बजटीय आवंटन के जरिये राज्यों को सपोर्ट की मदद करती है।
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