पल्लवी झा, नई दिल्ली: देश में हर साल करोड़ों मरीजों के इलाज में मेडिकल डिवाइस जिसमें जांच उपकरण, इक्यूपमेंट से लेकर इम्प्लांट तक का धड़ल्ले से इस्तेमाल हो रहा है। ज्यादातर उपकरणों की गुणवत्ता से लेकर कीमतों तक पर सरकार कोई नियंत्रण नहीं है। लिहाजा अब सरकार की ओर से करीब 1800 तरह के मेडिकल डिवाइस की एक सूची तैयार की गई है जिसे चार श्रेणियों में बांट कर उस पर हर तरह से नियंत्रण करने की तैयारी की है। इन डिवाइसेज को चार श्रेणियों में बांटने के लिए स्टेक होल्डर्स से एक महीने में राय देने के लिए कहा गया है।
फरवरी में स्वास्थ्य मंत्रालय की ओर से एक नोटिफिकेशन जारी किया गया था जिसमें कहा गया था कि सभी तरह के मेडिकल डिवाइसेज को रेगुलेट किया जाएगा। उसी क्रम में अब सेंट्रल ड्रग्स स्टैंडर्ड कंट्रोल ऑर्गेनाइजेशन (सीडीएससीओ) की ओर से 24 तरह की बीमारियों में इस्तेमाल होने वाले मेडिकल डिवाइसेज, उपकरण, जांच मशीन, सॉफ्टवेयर से लेकर इम्प्लांट तक की एक सूची तैयार की है। इन 1800 तरह के उपकरणों और डिवाइस को उनके महत्व और जरुरत के अनुसार चार श्रेणियों में विभाजित किया जाएगा।
चारों श्रेणियों के लिए अलग-अलग तरह से पंजीकरण और लाइसेंस लेने का तरीका और अवधि निधार्रित किया गया है। श्रेणी ए और बी में कम महत्व वाले उपकरण होंगे जबकि श्रेणी सी और डी में ज्यादा महत्व वाले डिवाइस होंगे। खास तरह के डिवाइसेज को बनाने वाले या इंपोर्ट करने वाली कंपनियों को स्टेट ड्रग्स कंट्रोलर की ओर से लाइसेंस दिया जाएगा जबकि सी और डी श्रेणी वाले डिवाइसेज को सेंट्रल ड्रग्स कंट्रोलर की ओर से लाइसेंस दिया जाएगा। हालांकि अलग-अलग श्रेणी में आने वाले डिवाइसेज को पंजीकरण और लाइसेंस के लिए लंबा समय देने का निर्णय लिया गया है।
इससे क्या फायदा होगा
वर्तमान में भारत में करीब 58 हजार करोड़ रुपये का मेडिकल डिवाइस इंडस्ट्री और इम्प्लांट का बाजार है। 37 तरह के मेडिकल डिवाइसेज और इम्पलांट को छोड़ कर बाकी किसी भी तरह की डिवाइस या इम्पलांट पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। कंपनियां प्रोडक्ट देश में बना रही है या विदेश से आयात होकर आ रहा है उसकी क्वालिटी से लेकर कीमत पर सरकार का कोई नियंत्रण नहीं है। न तो इन्हें लाइसेंस लेना पड़ता और न ही पंजीकरण कराना पड़ता है।
अब जबकि सरकार ने रेगुलेट करने का आदेश दे दिया है, सभी तरह की डिवाइस की गुणवत्ता पर सरकार का नियंत्रण होगा। बिना पंजीकरण और लाइसेंस के व्यवसाय नहीं कर सकेंगे। ऐसी स्थिति में कुछ खामियां सामने आने पर सरकार ऐसी कंपनियों के खिलाफ ड्रग्स एंड कॉस्मेटिक्स एक्ट के तहत कार्रवाई कर सकती है। यही नहीं एमआरपी पर हर वर्ष 10 फीसदी से ज्यादा कीमत नहीं बढ़ा सकती। रेगुलेट करने के बाद यह भी रास्ता साफ हो जाएगा कि सरकार जरुरत पड़ने पर इम्प्लांट और डिवाइसेज की कीमतों को नियंत्रित भी कर सकती है।
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