नई दिल्ली: केबीसी में जाने का सपना हर किसी का होता है। न केवल केबीसी की हॉटसीट तक पहुंचने का, बल्कि यहां से बड़ी धनराशि जीतने का भी, लेकिन बड़ी धनराशि जीतने के बाद की जिंदगी कैसी होती होगी? करोड़पति बनने के बाद क्या होता होगा? यदि आप करोड़पति बन जाएं तो आप इस पैसे का क्या करेंगे?
अमिताभ बच्चन अक्सर यह सवाल पूछते नजर आते हैं और लोग अपने अपने कारण भी बताते हैं, लेकिन केबीसी 5 में पहली बार 5 करोड़ रुपए जीतने वाले मोतिहारी चंपारण, बिहार के सुशील कुमार की जिंदगी 5 करोड़ जीतने के बाद जहन्नुम बन गई।
सुशील ने 2 नवंबर 2011 को यह धनराशि जीती थी। सुशील मनरेगा में कम्प्यूटर इंस्ट्रक्टर के तौर पर काम करते थे और महज 6 हजार रुपए ही कमाते थे। केबीसी में 5 करोड़ जीतने के बाद वे नेशनल सेलिब्रिटी बन गए। लेकिन इसके बाद उनकी जिंदगी कैसे गुजरी, खुद सुशील कुमार ने सितंबर में अपने फेसबुक से पोस्ट कर इसकी विस्तार से कहानी बताई...
सुशील ने लिखा, 2015-2016 मेरे जीवन का सबसे चुनौती पूर्ण समय था, कुछ बुझाइए नहीं रह था क्या करें। लोकल सेलेब्रिटी होने के कारण महीने में दस से पंद्रह दिन बिहार में कहीं न कहीं कार्यक्रम लगा ही रहता था। इसलिए पढ़ाई लिखाई धीरे धीरे दूर जाती रही।
उसके साथ उस समय मीडिया को लेकर मैं बहुत ज्यादा सीरियस रहा करता था और मीडिया भी कुछ कुछ दिन में पूछती रहती, आप क्या कर रहे हैं? मैं बिना अनुभव के कभी ये बिजनेस कभी वो करता, ताकि मैं मीडिया में बता सकूं कि मैं बेकार नही हूं। जिसका परिणाम ये होता था कि वो बिजनेस कुछ दिन बाद डूब जाता था।
इसके साथ केबीसी के बाद मैं दानवीर बन गया था और गुप्त दान का चस्का लग गया था महीने में लगभग 50 हजार से ज्यादा ऐसे ही कार्यों में चला जाता। इस कारण कुछ चालू टाइप के लोग भी जुड़ गए थे और हम गाहे-बगाहे खूब ठगा भी जाते थे जो दान करने के बहुत दिन बाद पता चलता था।
पत्नी के साथ भी सम्बन्ध धीरे धीरे खराब होते जा रहे थे, वो अक्सर कहा करती थी कि आपको सही गलत लोगों की पहचान नहीं है और भविष्य की कोई चिंता नहीं है, ये सब बात सुनकर हमको लगता था कि वह हमको नहीं समझ पा रही है। इस बात पर खूब झड़गा हो जाया करता था ।
हालांकि इसके साथ कुछ अच्छी चीजें भी हो रही थी दिल्ली में मैंने कुछ कार लेकर अपने एक मित्र के साथ चलवाने लगा था ,जिसके कारण मुझे लगभग हर महीने कुछ दिनों दिल्ली आना पड़ता था। इसी क्रम में मेरा परिचय कुछ जामिया मीलिया में पढ़ाई कर रहे लड़कों से हुआ, फिर आईआईएमसी में पढ़ाई कर रहे लड़के फिर उनके सीनियर, फिर जेएनयू में रिसर्च कर रहे लड़के, कुछ थियेटर आर्टिस्ट आदि से परिचय हुआ।
जब ये लोग किसी विषय पर बात करते थे तो लगता था कि अरे! मैं तो कुएं का मेढ़क हूं, मैं तो बहुत चीजों के बारे में कुछ नही जानता। अब इन सब चीजों के साथ एक लत भी साथ जुड़ गई, शराब और सिगरेट।
एक समय ऐसा आया कि अगर सात दिन रुक गया तो सातों दिन इस तरह के सात ग्रुप के साथ अलग अलग बैठकी हो जाती थी। इन लोगों को सुनना बहुत अच्छा लगता था चूंकि ये लोग जो भी बात करते थे मेरे लिए सब नया नया लगता था बाद, इन लोगों की संगति का ये असर हुआ कि मीडिया को लेकर जो मैं बहुत ज्यादा सीरियस रहा करता था वो सीरियसनेस धीरे धीरे कम हो गई।
जब भी घर पर रहते थे तो रोज एक सिनेमा देखते थे। हमारे यहां सिनेमा डाउनलोड की दुकान होती है। जो पांच से दस रुपये में हॉलीवुड का कोई भी सिनेमा हिंदी में डब या कोई भी हिंदी फिल्म उपलब्ध करा देती है (हालांकि नेटफ्लिक्स आदि आने के बाद उन सैकड़ों का रोजगार अब बंद हो गया)
कैसे आई कंगाली की खबर ये थोड़ा फिल्मी लगेगा...उस रात प्यासा फिल्म देख रहा था और उस फिल्म का क्लाइमेक्स चल रहा था जिसमें माला सिन्हा से गुरुदत्त साहब कर रहे हैं कि मैं वो विजय नही हूं, वो विजय मर चुका। उसी वक्त पत्नी कमरे में आई और चिल्लाने लगी कि एक ही फ़िल्म बार बार देखने से आप पागल हो जाइएगा और और यही देखना है तो मेरे रूम में मत रहिये जाइये बाहर।
इस बात से हमको दुःख इसलिए हुआ कि लगभग एक माह से बातचीत बंद थी और बोला भी ऐसे की आगे भी बात करने की हिम्मत न रही और लैपटॉप को बंद किये और मुहल्ले में चुपचाप टहलने लगे।
अभी टहल ही रहे थे तभी एक अंग्रेजी अखबार के पत्रकार महोदय का फोन आया और कुछ देर तक मैंने ठीक ठाक बात की बाद में उन्होंने कुछ ऐसा पूछा जिससे मुझे चिढ़ हो गई और मैंने कह दिया कि मेरे सभी पैसे खत्म हो गए और दो गाय पाले हुए हैं। उसी का दूध बेचकर गुजारा करते हैं उसके बाद जो उस न्यूज़ का असर हुआ उससे आप सभी तो वाकिफ होंगे ही।
उस खबर ने अपना असर दिखाया जितने चालू टाइप के लोग थे वे अब कन्नी काटने लगे मुझे लोगों ने अब कार्यक्रमो में बुलाना बंद कर दिया और तब मुझे समय मिला की अब मुझे क्या करना चाहिए।
उस समय खूब सिनेमा देखते थे लगभग सभी नेशनल अवार्ड विनिंग फ़िल्म,ऑस्कर विनिंग फ़िल्म ऋत्विक घटक और सत्यजीत रॉय की फिल्म देख चुके थे और मन में फिल्म निदेशक बनने का सपना कुलबुलाने लगा था। इसी बीच एक दिन पत्नी से खूब झगड़ा हो गया और वो अपने मायके चली गई बात तलाक लेने तक पहुंच गई।
तब मुझे ये एहसास हुआ कि अगर रिश्ता बचाना है तो मुझे बाहर जाना होगा और फ़िल्म निर्देशक बनने का सपना लेकर चुपचाप बिल्कुल नए परिचय के साथ मैं आ गया।
अपने एक परिचित प्रोड्यूसर मित्र से बात करके जब मैंने अपनी बात कही तो उन्होंने फिल्म सम्बन्धी कुछ टेक्निकल बातें पूछीं, जिसको मैं नही बता पाया तो उन्होंने कहा कि कुछ दिन टी वी सीरियल में कर लीजिए, बाद में हम किसी फ़िल्म डायरेक्टर के पास रखवा देंगे।
फिर एक बड़े प्रोडक्शन हाउस में आकर काम करने लगा। वहां पर कहानी, स्क्रीन प्ले, डायलॉग कॉपी, प्रॉप कॉस्टयूम, कंटीन्यूटी और न जाने क्या करने देखने समझने का मौका मिला उसके बाद मेरा मन वहां से बेचैन होने लगा। वहा्र पर बस तीन ही जगह आंगन, किचन, बेडरूम ज्यादातर शूट होता था और चाह कर भी मन नहीं लगा पाते थे।
हम तो मुम्बई फ़िल्म निर्देशक बनने का सपना लेकर आए थे और एक दिन वो भी छोड़ कर अपने एक परिचित गीतकार मित्र के साथ उसके रूम में रहने लगा और दिन भर लैपटॉप पर सिनेमा देखते देखते और दिल्ली पुस्तक मेला से जो एक सूटकेस भर के किताब लाये थे
उन किताबों को पढ़ते रहते।
लगभग छः महीने लगातार यही करता रहा और दिनभर में एक डब्बा सिगरेट खत्म कर देते थे पूरा कमरा हमेशा धुंआ से भरा रहता था। दिनभर अकेले ही रहने से और पढ़ने लिखने से मुझे खुद के अंदर निष्पक्षता से झांकने का मौका मिला और मुझे ये एहसास हुआ कि
मैं मुंबई में कोई डायरेक्टर बनने नही आया हुआ।
मैं एक भगोड़ा हूं, जो सच्चाई से भाग रहा है।
असली खुशी अपने मन का काम करने में है।
घमंड को कभी शांत नही किया जा सकता।
बड़े होने से हजार गुना ठीक है अच्छा इंसान होना।
खुशियां छोटी छोटी चीजों में छुपी होती हैं।
जितना हो सके देश समाज का भला करना जिसकी शुरुआत अपने घर/गांव से की जानी चाहिए।
हालांकि इसी दौरान मैंने तीन कहानी लिखी जिमें से एक कहानी एक प्रोडक्शन हाउस को पसंद भी आई और उसके लिए मुझे लगभग 20 हज़ार रुपये भी मिले।
(हालाँकि पैसा देते वक्त मुझसे कहा गया कि इस फ़िल्म का आईडिया बहुत अच्छा है कहानी पर काफी काम करना पड़ेगा, क्लाइमेक्स भी ठीक नही है आदि आदि और इसके लिए आपको बहुत ज्यादा पैसा हमलोगों ने पे कर दिया है।)
इसके बाद मैं मुम्बई से घर आ गया और टीचर की तैयारी की और पास भी हो गया साथ ही अब पर्यावरण से संबंधित बहुत सारे कार्य करता हूं। जिसके कारण मुझे एक अजीब तरह की शांति का एहसास होता है साथ ही अंतिम बार मैंने शराब मार्च 2016 में पी थी उसके बाद पिछले साल सिगरेट भी खुद ब खुद छूट गया।
अब तो जीवन में हमेशा एक नया उत्साह महसूस होता है और बस ईश्वर से प्रार्थना है कि जीवन भर मुझे ऐसे ही पर्यावरण की सेवा करने का मौका मिलता रहे इसी में मुझे जीवन का सच्चा आनंद मिलता है।
बस यही सोचते हैं कि जीवन की जरूरतें जितनी कम हो सके रखनी चाहिए। बस इतना ही कमाना है कि जो जरूरतें वो पूरी हो जाये और बाकी बचे समय में पर्यावरण के लिए ऐसे ही छोटे स्तर पर कुछ कुछ करते रहना है।
Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 and Download our - News24 Android App. Follow News24 on Facebook, Google News.