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सरकार का ‘मिशन मौसम?’ क्या? टेक्नोलॉजी से रुकेंगी प्राकृतिक आपदाएं

Mission Mausam: भारतीय वैज्ञानिक पांच साल के अंदर प्राकृतिक आपदाओं को रोकने की राह पर काम कर रहे हैं। इसके लिए सरकार ने इस पहल के लिए शुरुआत में 2000 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं।

Mission Mausam: देश में हर साल बारिश के मौसम में भूस्खलन, बिजली गिरना, हिमस्खलन उफनती नदियां, बाढ़ आने जैसी प्राकृतिक आपदाएं आती हैं। जिनकी वजह से बड़े पैमाने पर जान माल का नुकसान होता है। इन्हीं सब को देखते हुए सरकार ने 'मिशन मौसम' शुरू करने का फैसला किया है। भारतीय वैज्ञानिक आने वाले पांच सालों में इस तरह की प्राकृतिक आपदाओं को रोकने पर काम कर रहे हैं। इसके लिए सरकार ने 2000 करोड़ रुपये आवंटित भी कर दिए हैं।

अपनी इच्छा से रोकी जा सकेगी बारिश?

इस परियोजना का लक्ष्य मौसम के पूर्वानुमानों में सुधार करना और त्वरित अपडेट के लिए चैट जीपीटी जैसा ऐप लाना है। भारतीय मौसम वैज्ञानिकों को उम्मीद है कि अगले पांच सालों में उनके पास न केवल बारिश बढ़ाने के लिए पर्याप्त विशेषज्ञता होगी, बल्कि कुछ क्षेत्रों में ओलावृष्टि और बिजली गिरने के साथ-साथ इसे इच्छानुसार रोका भी जा सकेगा। उदाहरण के तौर पर समझें तो किसी खास दिन अगर बारिश को रोकना चाहते हैं तो वो रोकी जा सकेगी। ये भी पढ़ें... 36 घंटे में 47 मौत…राजस्थान-UP-MP में बाढ़, सड़कें ब्लॉक और स्कूल बंद; देखें बारिश ने कैसे मचाया हाहाकार?

2000 करोड़ रुपए का बजट

सरकार ने मिशन मौसम के लिए 2000 करोड़ रुपये का बजट दिया है। इससे मौसम विभाग को अपग्रेड किया जाएगा। रिपोर्ट्स के मुताबिक, देश में हर साल मौसमी आपदाओं के चलते लगभग 10000 लोगों की मौत होती है,लेकिन अब बहुत से लोगों की जान बचाई जा सकती है। देश में आने वाली किसी आपदा को लेकर लोग पहले से अलर्ट हो सकेंगे। मिशन शुरू करने का फैसला प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की अध्यक्षता में हुई केंद्रीय मंत्रिमंडल की बैठक में हुआ है।

मौसम जीपीटी

वर्तमान में चैट जीपीटी ने बहुत तेजी से अपने पैर जमाए हैं। इसी की तर्ज पर भारत मौसम GPT लाने की तैयारी कर रहा है। ये मिशन सफल होता है तो मौसम जीपीटी भी चैट जीपीटी की तरह ही काम करेगा। वैज्ञानिकों का कहना है कि इसके जरिए पहले से ही मौसम की जानकारी मिल जाएगी, जो टेक्स्ट या ऑडियो फॉर्म में हो सकती है।

विदेशों में इसका प्रयोग

आपको बता दें कि बारिश को दबाने और बढ़ाने की तकनीकों का उपयोग पहले से ही अमेरिका, कनाडा, चीन, रूस और ऑस्ट्रेलिया सहित अन्य देशों में सीमित तरीके से क्लाउड सीडिंग, विमान का उपयोग करके किया जा रहा है। इनमें से कुछ देशों में फलों के बगीचों और अनाज के खेतों को होने वाले नुकसान को रोकने के लिए ओलावृष्टि को कम करने के उद्देश्य से क्लाउड सीडिंग परियोजनाएं शुरू की गई हैं, जिन्हें ओवरसीडिंग कहा जाता है। ये भी पढ़ें... महाराष्ट्र में गैस लीक से ‘हाहाकार’, दहशत में लोग; क्यों सता रहा भोपाल त्रासदी का डर?


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