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Vadh Review: संजय मिश्रा और नीना गुप्ता की वध आपको सन्न कर देगी !

Vadh Review: एक हत्या, चाहे वो किसी की भी हो, किसी भी हालात में हो… क्या वो वध हो सकती है ? वध का मतलब है, बुराई के ख़ात्मे के लिए, सज्जनों की रक्षा के लिए एक शैतान का ख़ात्मा। संजय मिश्रा और नीना गुप्ता की वध की पहली झलक ही दिल दहला देने वाली […]

Edited By : Ritu Shaw | Updated: Dec 12, 2022 13:17
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Vadh Review: संजय मिश्रा और नीना गुप्ता की वध आपको सन्न कर देगी !

Vadh Review:

एक हत्या, चाहे वो किसी की भी हो, किसी भी हालात में हो… क्या वो वध हो सकती है ? वध का मतलब है, बुराई के ख़ात्मे के लिए, सज्जनों की रक्षा के लिए एक शैतान का ख़ात्मा। संजय मिश्रा और नीना गुप्ता की वध की पहली झलक ही दिल दहला देने वाली है। वैसे पिछले कुछ दिनों में परिवार और अपनों की रक्षा के लिए, बुरों का ख़ात्मा करना और फिर उन्हे बचाने के लिए किसी भी हद तक जाने की कहानियां खूब आईं और खूब चली भी हैं। दृश्यम की मिसाल सामने है, मलयालम में सुपरस्टार मोहनलाल के साथ और हिंदी में अजय देवगन के साथ इस कहानी की बताने वाली दोनो फिल्मों ने ज़बरदस्त तारीफ़ें और कामयाबी अपने नाम की है। ओटीटी पर सुष्मिता सेन की कहानी आर्या भी तकरीबन ऐसी ही कहानी है। मगर वध, इसके एक कदम आगे जाती है।

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वध, ग्वालियर में अकेले रहने वाले एक बुजुर्ग जोड़े की कहानी है, जिसमें मास्टर शंभुनाथ मिश्रा हैं और उनकी पत्नी मंजु मिश्रा हैं। एक छोटे शहर में रिटायर्ड आम से भी थोड़ी कमतर ज़िंदगी बिता रहे मास्टर जी पर एक ओर बैंक के स्टडी लोन का दबाव है, तो दूसरी ओर बेटे को अमेरिका भेजने के लिए उन्होने भारी ब्याज पर पैसे देने वाले प्रजापति पांडे से भी अच्छा खासा कर्ज़ लिया हुआ है। पहले ही सीन से वध बताना शुरू कर देती है, कि मिश्रा जी के बेटे अमेरिका पहुंचकर शादी कर चुके हैं, फ्लैट खरीद चुके हैं, बाप बन चुके हैं और मां-बाप को भारी कर्ज़ के बोझ के साथ पीछे छोड़ चुके हैं। मगर मास्टर जी और उनकी पत्नी मंजू जी हार नहीं मान रहे हैं, वो पड़ोस की एक बच्ची नैना का जन्मदिन अपनी बेटी की तरह मनाते हैं, उसे पढ़ाते हैं।

दूसरी ओर अपने कर्ज़ की आड़ में प्रजापति पांडे हर बार मिश्रा जी को ज़लील करता है और ऐसी हरकतें करता है कि मास्टर जी और उनकी पत्नी शर्म से नज़रें झुका लें। हर बार एक कमज़ोर और मज़बूर शख़्स की तरह मास्टर जी और उनकी पत्नी, प्रजापति के हर ज़ुल्म के सामने सिर झुका लेते हैं। मगर जब मासूम नैना पर, पांडे अपनी बुरी नज़र डालता है, तो मास्टर जी उस हैवान का वध कर देते हैं। इस वध के बाद, हत्या को छिपाने-बताने, अपराध बोध और पुलिस के साथ पांडे के बॉस से बचने के लिए चूहे-बिल्ली का खेल शुरु हो जाता है।

वध, की कहानी सीधी है, लेकिन इसमें एक बहस है कि एक बुरे शख़्स की हत्या, क्या अपराध है या फिर नैतिकता के साथ दिया गया दंड ? कानून की नज़रों में ये अपराध, फिल्म में हमेशा वध की ओर झुका नज़र आता है। आप बहस कर सकते हैं कि उनके पास और क्या रास्ता था, फिल्म भी क्लाइमेक्स तक इसे सही साबित करती है…. लेकिन मनोहर कहानियां जैसी अपराध कथाओं वाले ट्विस्ट के साथ, वध एक ऐसे मुकाम तक पहुंचती है, जो वो सजा से तो बच जाते हैं… मगर उनका अपना सब कुछ छूट जाता है। आपके दिल में कसक रह जाती है।

एक आम आदमी के विद्रोह और फिर मजबूरी में किए अपराध की सीधी कहानी है, फिर इसमें मनोहर कहानियां वाला ट्विस्ट है।

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राजीव बरनवाला और जसपाल संधू ने वध को लिखा भी और डायरेक्ट भी किया है। कोरोना के चलते फिल्म रिलीज़ के लिए दो साल तक इंतज़ार करती रही है। वध, कहीं चेहरे पर मायूस सी मुस्कुराहट लाती है, तो कहीं खौफ़ की परछाईं। पांडे की हत्या का सीन, दर्शकों को ध्यान में रखते हुए, फिल्म में दिखाया नहीं गया है, लेकिन उसकी आवाज़ फिल्म को देखने के कई दिनों बाद तक आपके कानों में गुंजेगी।

वध जैसी कहानी के लिए संजय मिश्रा और नीना गुप्ता जैसे कलाकारों को चुनना, दरअसल लीक से हटकर किया गया एक ऐसा फैसला है, जो इस फिल्म को शानदार बना देता है। 30 साल से कॉमेडी और कैरेक्टर रोल्स के साथ अपने हुनर का लोहा मनवाने वाले संजय मिश्रा को मास्टर शंभुनाथ मिश्रा के किरदार में देखकर आप दहल जाएंगे। मंजू मिश्रा बनी, नीना गुप्ता, तो ऐसी हैं जो किरदार को ओढ़ लेती है और खुद, खो जाती हैं। प्रजापति पांडे बने सौरभ सचदेवा से आपको नफ़रत होगी, तो इंस्पेक्टर शक्ति सिंह का थोड़ा करप्ट और थोड़ी अच्छी नीयत वाला मिजाज़ आपको चौंकाएगा।

वध के क्लाइमेक्स और इसके मिजाज़ को लेकर आप बहस कर सकते हैं, लेकिन इस फिल्म को इन्गोर नहीं कर सकते।

वध को 3.5 स्टार।

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First published on: Dec 08, 2022 05:33 PM

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