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Shani ke Upay: आज ही शुरू कर दें इस मंत्र का जप, शनि बना देगा जन्मकुंडली में राजयोग

Shani ke Upay: ज्येष्ठ माह की अमावस्या को शनिदेव का जन्म होने के काऱण इसे शनि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन शनिदेव की प्रसन्नता के निमित्त उपाय करने से तुरंत फल मिलता है। इसके साथ ही शनि की साढ़े साती, ढैय्या तथा महादशा का अशुभ प्रभाव भी कम होता है। […]

Edited By : Sunil Sharma | Updated: May 18, 2023 17:15
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Shani ke Upay: ज्येष्ठ माह की अमावस्या को शनिदेव का जन्म होने के काऱण इसे शनि जयंती के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन शनिदेव की प्रसन्नता के निमित्त उपाय करने से तुरंत फल मिलता है। इसके साथ ही शनि की साढ़े साती, ढैय्या तथा महादशा का अशुभ प्रभाव भी कम होता है। यदि किसी व्यक्ति की जन्मकुंडली में शनि प्रतिकूल है या अशुभ असर दे रहा है तो ज्योतिष के उपायों से उसे अनुकूल बनाया जा सकता है। जानिए ऐसे ही एक उपाय के बारे में

ज्योतिषी मोहर सिंह लालपुरिया के अनुसार महाराज दशरथ कृत शनि स्तोत्र का पाठ करना शनि के समस्त दुष्प्रभावों को दूर कर देता है। इस शनि स्तोत्र (Shani ke Upay) के पाठ से भाग्योदय होता है और व्यक्ति को जीवन में सफलता मिलने लगती है। यह स्तोत्र निम्न प्रकार हैं

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दशरथ कृत शनि स्तोत्र 

दशरथ उवाच:
प्रसन्नो यदि मे सौरे ! एकश्चास्तु वरः परः॥
रोहिणीं भेदयित्वा तु न गन्तव्यं कदाचन्। सरितः सागरा यावद्यावच्चन्द्रार्कमेदिनी॥
याचितं तु महासौरे ! नऽन्यमिच्छाम्यहं। एवमस्तुशनिप्रोक्तं वरलब्ध्वा तु शाश्वतम्॥
प्राप्यैवं तु वरं राजा कृतकृत्योऽभवत्तदा। पुनरेवाऽब्रवीत्तुष्टो वरं वरम् सुव्रत॥

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दशरथकृत शनि स्तोत्र:
नम: कृष्णाय नीलाय शितिकण्ठ निभाय च। नम: कालाग्निरूपाय कृतान्ताय च वै नम:॥1॥
नमो निर्मांस देहाय दीर्घश्मश्रुजटाय च। नमो विशालनेत्राय शुष्कोदर भयाकृते॥2॥
नम: पुष्कलगात्राय स्थूलरोम्णेऽथ वै नम:। नमो दीर्घाय शुष्काय कालदंष्ट्र नमोऽस्तुते॥3॥
नमस्ते कोटराक्षाय दुर्नरीक्ष्याय वै नम:। नमो घोराय रौद्राय भीषणाय कपालिने॥4॥
नमस्ते सर्वभक्षाय बलीमुख नमोऽस्तुते। सूर्यपुत्र नमस्तेऽस्तु भास्करेऽभयदाय च॥5॥
अधोदृष्टे: नमस्तेऽस्तु संवर्तक नमोऽस्तु ते। नमो मन्दगते तुभ्यं निस्त्रिंशाय नमोऽस्तुते॥6॥
तपसा दग्ध-देहाय नित्यं योगरताय च। नमो नित्यं क्षुधार्ताय अतृप्ताय च वै नम:॥7॥
ज्ञानचक्षुर्नमस्तेऽस्तु कश्यपात्मज-सूनवे। तुष्टो ददासि वै राज्यं रुष्टो हरसि तत्क्षणात्॥8॥
देवासुरमनुष्याश्च सिद्ध-विद्याधरोरगा:। त्वया विलोकिता: सर्वे नाशं यान्ति समूलत:॥9॥
प्रसाद कुरु मे सौरे ! वारदो भव भास्करे। एवं स्तुतस्तदा सौरिर्ग्रहराजो महाबल:॥10॥

दशरथ उवाच:
प्रसन्नो यदि मे सौरे ! वरं देहि ममेप्सितम्। अद्य प्रभृति-पिंगाक्ष ! पीडा देया न कस्यचित्॥

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।

First published on: May 18, 2023 05:12 PM

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