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Rama Ekadashi 2023: रमा एकादशी पर आज जरूर पढ़ें यह कथा, विष्णु जी पूरी करेंगे हर इच्छा!

Rama Ekadashi 2023: रमा एकादशी कार्तिक कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहते हैं, जिसके निमित्त आज व्रत रखा जा रहा है। आइए जानते हैं व्रत-कथा।

Edited By : Dipesh Thakur | Updated: Nov 9, 2023 08:44
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Rama Ekadashi 2023: आज रमा एकादशी का पावन व्रत है। रमा एकादशी का व्रत हर साल कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को रखा जाता है। माता लक्ष्मी का एक नाम रमा भी है और इस एकादशी के दिन श्रीहरि भगवान विष्णु के साथ-साथ माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है।

दिवाली में पहले रखा जाने वाला यह एकादशी व्रत काफी महत्वपूर्ण माना जाता है। मान्यता है कि रमा एकादशी के दिन विधिवत पूजा करने के साथ व्रत रखते हैं। इसके साथ ही व्रत के दौरान इस व्रत कथा को पढ़ना या फिर सुनना चाहिए। माना जाता है कि इस कथा का पाठ करने से सभी कष्टों और पापों से छुटकारा मिल जाता है।

रमा एकादशी की व्रत कथा

काफी समय पहले एक नगर में मुचुकंद नाम के एक प्रतापी राजा रहते थे। चंद्रभागा नाम की उनकी एक पुत्री थी। राजा ने अपनी बेटी का विवाह राजा चंद्रसेन के बेटे शोभन के साथ कर दिया। शोभन एक समय बिना खाए नहीं रह सकता था। शोभन एक बार कार्तिक मास के महीने में अपनी पत्नी के साथ ससुराल आया, तभी रमा एकादशी व्रत पड़ा। चंद्रभागा के गृह राज्य में सभी रमा एकादशी का नियम पूर्वक व्रत रखते थे और ऐसा ही करने के लिए शोभन से भी कहा गया। शोभन इस बात को लेकर परेशान हो गया कि वह एक पल भी भूखा नहीं रह सकता है तो वह रमा एकादशी का व्रत कैसे कर सकता है।

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वह इसी परेशानी के साथ पत्नी के पास गया और उपाय बताने के लिए कहा। चंद्रभागा ने कहा कि अगर ऐसा है तो आपको राज्य के बाहर जाना पड़ेगा, क्योंकि राज्य में ऐसा कोई व्यक्ति नहीं है जो इस व्रत नियम का पालन न करता हो। यहां तक कि इस दिन राज्य के जीव-जंतु भी भोजन नहीं करते हैं। आखिरकार शोभन को रमा एकादशी उपवास रखना पड़ा, लेकिन पारण करने से पहले उसकी मृत्यु हो गयी।

चंद्रभागा ने पति के साथ खुद को सती नहीं किया और पिता के यहां रहने लगी। उधर एकादशी व्रत के पुण्य से शोभन को अगले जन्म में मंदरांचल पर्वत पर आलीशान राज्य प्राप्त हुआ। एक बार मुचुकुंदपुर के ब्राह्मण तीर्थ यात्रा करते हुए शोभन के दिव्य नगर पहुंचे। उन्होंने सिंहासन पर विराजमान शोभन को देखते ही पहचान लिया। ब्राह्मणों को देखकर शोभन सिंहासन से उठे और पूछा कि यह सब कैसे हुआ।

तीर्थ यात्रा से लौटकर ब्राह्मणों ने चंद्रभागा को यह बात बताई। चंद्रभागा बहुत खुश हुई और पति के पास जाने के लिए व्याकुल हो उठी। वह वाम ऋषि के आश्रम पहुंची। चंद्रभागा मंदरांचल पर्वत पर पति शोभन के पास पहुंची। अपने एकादशी व्रतों के पुण्य का फल शोभन को देते हुए उसके सिंहासन व राज्य को चिरकाल के लिये स्थिर कर दिया। तभी से मान्यता है कि जो व्यक्ति इस व्रत को रखता है वह ब्रह्महत्या जैसे पाप से मुक्त हो जाता है और उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी ज्योतिष पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।

First published on: Nov 09, 2023 08:36 AM

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