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Dev Diwali 2022: देव दिवाली के दिन आज धरती पर आएंगे देवतागण, जानें कथा और महात्म्य

Dev Diwali 2022: आज देव दिवाली का पावन पर्व है। इसे देवताओं की दिवाली भी कहते हैं। मान्यता के मुताबिक इस दिन देवतागण दिवाली मनाते हैं। देव दिवाली दिपावली के ठीक 15 दिन बाद आता है। देव दिवाली का पावन पर्व कार्तिक महीने की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। जबकि देव दिपावली का पावन […]

Edited By : Pankaj Mishra | Updated: Nov 7, 2022 06:03
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Dev Diwali 2022: आज देव दिवाली का पावन पर्व है। इसे देवताओं की दिवाली भी कहते हैं। मान्यता के मुताबिक इस दिन देवतागण दिवाली मनाते हैं। देव दिवाली दिपावली के ठीक 15 दिन बाद आता है।

देव दिवाली का पावन पर्व कार्तिक महीने की अमावस्या तिथि को मनाई जाती है। जबकि देव दिपावली का पावन पर्व कार्तिक माह की पूर्णिमा तिथि को मनाई जाती है। इस दिन स्नान, दान, व्रत और दीपदान का खास महत्व है। साथ ही इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा अर्चना से जातक के जीवन सुख और समृद्धि आती है।

देव दिवाली पर करें ये उपाय

कहा जाता है कि देव दिवाली के दिन शाम में दीपदान करने के जातक को कभी भी शत्रु का भय कभी नहीं सताता है और उनके जीवन में सुख-सौभाग्य की वृद्धि होती है। ये दीपदान नदी के किनारे किया जाता है। शास्त्रों में देव दीपावली के दिन गंगा स्नान करने का बहुत महत्व बताया गया है। मान्य्ता है कि इस दिन गंगा स्नान करने से पूरे साल शुभ फल मिलता है। इतना ही नहीं विधि पूर्वक दीपदान से करने पर यम, शनि, राहु और केतु के बुरे प्रभाव कम होते हैं।

भगवान विष्णु ने इसी दिन लिया था मत्स्य अवतार

हिंदू धर्म शास्त्रों के मुताबिक जगत के पालन हार श्री हरी भगवान विष्णु ने इसी दिन मत्स्य (मछली) अवतार लिया था। भगवान विष्णु का मत्स्य अवतार है जो उनके दस अवतारों में से पहला अवतार है। अपने इस अवतार में विष्णुभगवान ने इस संसार को भयानक जल प्रलय से बचाया था। साथ ही उन्होंने हयग्रीव नामक दैत्य का वध भी किया था। कहा जाता है कि हयग्रीव ने वेदों को चुराकर सागर की गहराई में छिपा दिया था।

शिवजी ने दैत्य राजा त्रिपुरासुर तोडा था अहंकार 

देव दिवाली का पावन पर्व दैत्य राजा त्रिपुरासुर पर भगवान शिवजी के विजय उपलक्ष्य में मनाई जाती है। पौराणिक कथा के अनुसार त्रिपुरासुर नाम का एक राक्षस था। उसने अपने आतंक से धरतीलोक पर मानवों और स्वर्गलोक में सभी देवताओं को भी त्रस्त कर रखा था। त्रिपुरासुर के प्रकोप और आतंक से देवतागण भी परेशान हो गए थे। इसके बाद सभी देवता शिव जी के पास पहुंचे और मदद मांगते हुए दैत्य राजा त्रिपुरासुर का अंत करने की प्रार्थना की।

देवताओं की इस विनती को स्वीकार करते हुए शिव जी ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन ही त्रिपुरासुर राक्षस का वध किया था। त्रिपुरासुर राक्ष्य के अंत और उसके आंतक से मुक्ति मिलने पर सभी देवतागण प्रसन्न हुए और उन्होंने स्वर्ग में दीप जलाएं। इसके बाद सभी भोलेनाथ की नगरी काशी में आए और गांगा स्नानकर काशी में भी दीप प्रज्जवलित कर अपनी खुशियां मनाई।

इसके बाद से ही हर साल कार्तिक मास की पूर्णिमा के दिन को देव दिवाली कहा जाने लगा। इस दिन काशी और गंगा घाटों में खास तौर से दीप प्रज्वलित किया जाता है देव दिवाली मनाई जाती है। इस दिन दैत्य राजा त्रिपुरासुर वध हुआ था, इसलिए कार्तिक पूर्णिमा को त्रिपुरी पूर्णिमा और त्रिपुरारी पूर्णिमा के नाम से भी जाना जाता है।

First published on: Nov 07, 2022 05:45 AM

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